बाबरी विध्वंंस : 26 साल बीत गए, लेकिन आज भी वैसी ही है अयोध्या
- बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के 26 साल बीत चुके हैं।
- बुधवार को बाबरी मस्जिद की यादें फिर से जीवित हो उठीं।
- सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले की सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी है।
डिजिटल डेस्क, अयोध्या। बाबरी मस्जिद का ध्वस्त हुए 26 साल बीत चुके हैं। अब तक केंद्र में 6 सरकारें आईं और गईं लेकिन अयोध्या में वही हाल हैं जो आज से 26 साल पहले हुआ करते थे। सत्तापक्ष हो या विपक्षी दल सभी पार्टियां इस मुद्दे पर बातें तो बहुत करती हैं, लेकिन ये बातें महज वोटों की राजनीति के इर्द-गिर्द रहती हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी लंबे समय से इस मामले की सुनवाई जारी है लेकिन इसे राजनीतिक दलों का खेल कहें या कुछ और कि आज तक न तो बाबरी विध्वंस के मामले में कोई फैसला आया और न ही उस विवादित जमीन पर आखिर किसका हक है, इस पर कोई फैसला। अयोध्या में हाल
क्या हुआ था 5 दिसंबर, 1992 के दिन
राम मंदिर बनवाने को लेकर 5 दिसंबर 1992 की शाम तक लाखों कारसेवकों ने अयोध्या में अपना डेरा डाल लिया था। जय श्रीराम के नारे से पूरा अयोध्या गूंज रहा था। कारसेवकों के हाथों में केसरिया रंग के झंडे इस बात की गवाही थे कि अयोध्या में इस बार कुछ बड़ा होने वाला है। कारसेवकों को 12बजे से सरयू तट पर कारसेवा करनी थी। कारसेवकों, वीएचपी, बजरंग दल का कहना था कि ये सभी लोग सरयू नदी से एक-एक मुट्ठी बालू लाकर विवादित 2.77 एकड़ में बने गड्ढे को भरेंगे।
6 दिसंबर, 1992
6 दिसंबर 1992 की सुबह, बाकी सुबहों से अलग थी। पूरी अयोध्या कारसेवकों के जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठी थी। विवादित ढांचे के पास रामकथा कुंज था, जहां आम दिनों पर साधू, लोगों को कथा सुनाया करते थे, लेकिन उस दिन वहां साधू और लोग नहीं, बल्कि कारसेवक जमा थे। वहां बने मंच से बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ मुरली मनोहर जोशी ,महंत रामचंद्र दास परमहंस, राजमाता विजयराजे सिंधिया, अशोक सिंघल, प्रमोद महाजन, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती सहित कई राजनेता, संत और धर्माचार्य कारसेवकों को संबोधित कर रहे थे। तभी कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।
यूं गिरा दिया गया ढांचा
विवादित ढांचे के पीछे से कुछ लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। ऐसा कहा गया कि सुरक्षाबलों ने शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए लोगों को राम के दर्शन से रोका है। कारसेवकों ने आव देखा न ताव सुरक्षाबलों को धकेलते हुए, विवादित ढांचे पर चढ़ाई शुरू कर दी। लाखों की भीड़ देख सुरक्षाबल भी पीछे हट गए। देखते ही देखते ढांचे के तीनों गुंबदों पर कारसेवकों ने कब्जा कर लिया। मंच से नेताओं और धर्माचार्य ने रोकने की कोशिश की, लेकिन कारसेवकों ने किसी की भी नहीं सुनी। कुदाल लिए हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर चुके थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 15 से ज्यादा कारसेवक मारे गए। दोपहर 2:45 बजे तक पहला, शाम 4 बजे तक दूसरा और लगभग 5 बजे तक तीसरा गुंबद ढहा दिया गया।
आज भी ताजा हैं यादें
आज भी वहां के लोगों में उस घटना की यादें ताजा हैं। जहां एक तरफ स्थानीय लोग उस डरावनी रात से अभी तक उबर नहीं पाए हैं, वहीं राजनेता इसपर राजनीति में जुटे हैं। शिवसेना, कांग्रेस और बाकी सभी राजनीतिक पार्टियां जहां विवादित ढांचे वाले स्थान पर राम मंदिर बनवाने को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव डाल रही है। वहीं साधू संत खुद से मंदिर बनवाने की धमकी दे रहे हैं। खैर इस विवादित ढांचे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है। यह देखने वाली बात होगी कि रामलला कब स्थापित होते हैं, लेकिन स्थानीय लोग इन सभी से ज्यादा शायद शांति चाहते हैं।
क्यों गिराई गई बाबरी मस्जिद
बीजेपी समेत कई हिन्दु संगठनों का मानना है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है और इस जगह पर पहले राम मंदिर हुआ करता था। जिसे बाबर के सेनापति मीर बांकी ने 1530 में तोड़कर यहां पर मस्जिद बना दी थी। तभी से हिंदू-मुस्लिम के बीच इस जगह को लेकर विवाद चलता रहा है। माना जाता है कि मुगल सम्राट बाबर के शासन में राम के जन्म स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया। मस्जिद बाबर ने बनवाई इसलिए इसे बाबरी मस्जिद कहा गया। 1853 में हिंदुओं ने आरोप लगाया कि राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई, इसके बाद दोनों के बीच हिंसा हुई।
Created On :   5 Dec 2018 11:30 PM IST