गंगा समेत देश की प्रमुख नदियों के प्रदूषण स्तर में सुधार के नहीं दिख रहे संकेत

Notable signs of improvement in pollution level of rivers including Ganga
गंगा समेत देश की प्रमुख नदियों के प्रदूषण स्तर में सुधार के नहीं दिख रहे संकेत
गंगा समेत देश की प्रमुख नदियों के प्रदूषण स्तर में सुधार के नहीं दिख रहे संकेत
हाईलाइट
  • केन्द्र सरकार भले ही गंगा नदी को 2019 तक लगभग 80 प्रतिशत साफ करने का दावा कर रही हो
  • लेकिन केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार देश की राष्ट्रीय नदी गंगा सहित कई प्रमुख नदियों में प्रदूषण स्तर इतना बढ़ा है
  • 69 नदियों में सीमा से अधिक सीसा पाया गया और 137 नदियों में लोहा सीमा से अधिक था।
  • अध्ययन के दौरान जल आयोग ने देश की 16 नदी घाटियों (रिवर बेसिन) के पानी का परीक्षण किया।
  • केन्द्रीय जल आयोग द्वारा हाल में नदियों मे

सुनील निमसरकर, नई दिल्ली। केन्द्र सरकार भले ही गंगा नदी को 2019 तक लगभग 80 प्रतिशत साफ करने का दावा कर रही हो, लेकिन केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार देश की राष्ट्रीय नदी गंगा सहित कई प्रमुख नदियों में प्रदूषण स्तर इतना बढ़ा है कि इसमें सुधार के दूर-दूर तक कोई संकेत नही दिख रहे है। केन्द्रीय जल आयोग द्वारा हाल में नदियों में प्रदूषण स्तर के संबंध में किए अध्ययन के अनुसार महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देश की 42 प्रमुख नदियों में कम से कम दो विषाक्त भारी धातुएं तय सीमा से अधिक पाये गए है।

अध्ययन के दौरान जल आयोग ने देश की 16 नदी घाटियों (रिवर बेसिन) के पानी का परीक्षण किया। इन नदियों से पानी का नमूना तीनों मौसम के दौरान लिया गया। 69 नदियों में सीमा से अधिक सीसा पाया गया और 137 नदियों में लोहा सीमा से अधिक था। हालांकि देश की सबसे लंबी गंगा नदी, जिसे पिछले तीन दशकों से विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा साफ कराया जा रहा है, लेकिन आयोग का अध्ययन बताता है कि इस नदी में पांच प्रदूषित भारी धातु क्रोमियम, तांबा,निकल, सीसा और लोहा मिला है।

आयोग ने देशभर की नदियों के 414 स्थानों से पानी के नमूने भी एकत्र किए थे। परीक्षण के बाद इनमें से 136 स्थानों का पानी उपयोग लायक पाया गया जबकि 168 स्थानों के पानी में लौह की मात्रा अधिक पाई गई जिसके कारण वह पीने योग्य नहीं था। अध्ययन के मुताबिक देश के पांच राज्यों महाराष्ट, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और असम की नदियां सबसे अधिक प्रदूषित हैं। उलेखनीय यह है कि इन प्रदूषित नदियों की सफाई के लिए केंद्र सरकार ने चालू वर्ष के लिए 8880 करोड़ रुपये घोषित राशि का मात्र दस फीसदी ही खर्च किया गया है।

शहरी सीवेज के कारण नदियों में प्रदूषण बढ़ा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत में प्रतिदिन 61,948 मिलियन लीटर शहरी सीवेज उत्पन्न होता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी की माने तो शहरों में बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 38 फीसदी ही है। शेष सीवेज बिना उपचार के ही सीधे नदियों में बहा दिया जाता है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र का सीवेज शामिल नहीं है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि अकेले बडी संख्या में सीवेज प्रोजेक्ट या एसटीपी के निर्माण से ही नदियां प्रदूषण मुक्त नहीं होंगी। उन्होंने बताया कि सीएसई द्वारा कराए एक अध्ययन में शहरों में बने एसटीपी का विश्लेषण कर बताया है कि देश के 71 शहरों के एसटीपी नदियों से जुडे ही नहीं है। इसलिए अर्द्धनिर्मित सीवेज नेटवर्क और बिना किसी विशिष्ट योजना के डिजाइन किए गए सीवेज से नदियों को प्रदूषण से मुक्त नहीं कराया जा सकता।

Created On :   4 Jun 2018 4:00 PM GMT

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