बाटला हाउस मुठभेड़ को हुए 12 साल बाद, घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते निवासी

Residents do not want to miss the event after 12 years of the Batla House encounter
बाटला हाउस मुठभेड़ को हुए 12 साल बाद, घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते निवासी
बाटला हाउस मुठभेड़ को हुए 12 साल बाद, घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते निवासी
हाईलाइट
  • बाटला हाउस मुठभेड़ को हुए 12 साल बाद
  • घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते निवासी

नई दिल्ली, 19 सितम्बर (आईएएनएस)। बाटला हाउस मुठभेड़ (एनकाउंटर) को 12 साल बीत चुके हैं, जिसमें दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने राष्ट्रीय राजधानी और देश के अन्य हिस्सों में हुए विस्फोटों के लिए जिम्मेदार इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के एक प्रमुख आतंकी मॉड्यूल को बेअसर करने का दावा किया था।

जामिया नगर का वह फ्लैट, जहां आतंकवादी ठहरे हुए थे, एक भुतहा (हॉन्टिड) जगह बनी हुई है। यहां तब से कोई भी फ्लैट में नहीं रहता है। इसी फ्लैट में आईएम के आतंकी हथियारों के साथ डटे हुए थे।

सोसायटी में एल-18 के निवासी 12 साल बाद भी उस दिन या उस मुठभेड़ के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहते हैं। कोई भी उस घटनाक्रम को याद तक नहीं करना चाहता है।

यहां अब गली से लेकर सड़क तक घटनाक्रम को याद करने लायक ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता है। स्थानीय लोग अपने दिनचर्या के कामों में लगे रहते हैं और वे ऐसे लोगों को संदिग्ध रूप से देखते हैं, जो 2008 की मुठभेड़ के बारे में बात करता है। यहां तक कि दुकानदार भी इस घटना को लेकर कानाफूसी करते हैं, लेकिन नाम नहीं बताना चाहते।

बाटला हाउस के पास रहने वाली एक मध्यम आयु वर्ग की महिला ने कहा, वह रमजान के दिन थे, जब यह घटना हुई थी और उस समय सभी लोग अपने घरों के अंदर थे, लेकिन जब भीड़ को घटनाक्रम के बारे में पता चला तो लोगों ने इसके बारे में जानना शुरू किया। हालांकि उस दिन से कोई गतिविधि नहीं हुई और क्षेत्र में शांति बनी हुई है।

दिल्ली कांग्रेस मीडिया सेल के साथ काम कर रहे एक पूर्व वीडियो पत्रकार परवेज आलम खान कहते हैं, इलाके के निवासियों को अभी भी नहीं पता कि उस दिन क्या हुआ था, क्योंकि न्यायिक जांच नहीं हुई है। अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि वे इसकी जांच के लिए प्रयास करेंगे, लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सका।

उस घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वह चाणक्यपुरी में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के साथ एक साक्षात्कार की शूटिंग करने के लिए इंतजार कर रहे थे कि तभी उन्हें ऑफिस से बाटला हाउस पहुंचने के लिए कॉल आया, क्योंकि वहां फायरिंग की सूचना मिली थी। तब सुबह के लगभग 10 बजे थे।

उन्होंने कहा, जब हम एक रिपोर्टर के साथ घटनास्थल पर पहुंचे, जो अब एक चैनल में संपादक हैं, तो उस इलाके में भीड़ और पुलिस की मौजूदगी थी। तब पहले ही इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को गोली लग चुकी थी और वह होली फैमिली अस्पताल में थे।

आतंकवाद निरोधी अभियान का संचालन करने वाले विशेष प्रकोष्ठ का नेतृत्व तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त करनैल सिंह कर रहे थे, जिन्होंने इस घटना पर एक पुस्तक बाटला हाउस : एन एनकाउंटर दैट शुक द नेशन लिखी है।

उन्होंने अपनी किताब में मुठभेड़ के संबंध में पूछे जाने वाले कई प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी बताते हैं कि उनकी टीम मुठभेड़ से एक दिन पहले यह जानकारी इकट्ठा करने में कामयाब रही कि एक मोबाइल नंबर जिसका इस्तेमाल आतंकवादी मोहम्मद आतिफ अमीन ने किया था, उसका प्रयोग जयपुर विस्फोट (13 मई, 2008), अहमदाबाद (26 जुलाई, 2008) और 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में हुए सिलसिलेवार विस्फोट में किया गया था।

अपनी किताब में वह बताते हैं कि पुलिस को फ्लैट के अंदर रहने वालों की ओर से गोली चलाए जाने की उम्मीद नहीं थी। यही वजह है कि अफसर सादे कपड़ों में थे और उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट भी नहीं पहनी थी, क्योंकि शुरूआती योजना के अनुसार उन्हें जिंदा पकड़ना था।

वह किताब में उपराज्यपाल (एलजी) ऑफिस में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के साथ हुई मुलाकात के बारे में भी बताते हैं कि उन्हें एनकाउंटर के बारे में जानकारी दी गई थी। उन्होंने कहा कि बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुठभेड़ को लेकर उनकी पीठ थपथपाई थी। इसके अलावा करनैल सिंह बताते हैं कि एक समारोह में भी मनमोहन सिंह ने उनसे कहा था कि आपने अच्छा काम किया है।

बाटला हाउस में मुठभेड़ 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली में सिलसिलेवार विस्फोटों के एक सप्ताह बाद हुई थी।

इंडियन मुजाहिद्दीन के दो कथित आतंकवादी, आतिफ अमीन और उसके साथी की मौत हो गई थी। जबकि दो अन्य मोहम्मद सैफ और जीशान को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके अलावा मोहम्मद साजिद भागने में सफल रहा।

एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा गोली लगने के बाद शहीद हो गए थे।

हालांकि क्षेत्रीय निवासी मुठभेड़ के वर्षों के बाद भी इसे संदेह की निगाहों से देखते हैं और वे अभी भी पुलिस की थ्योरी को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।

एकेके/एएनएम

Created On :   19 Sept 2020 6:00 PM IST

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