विश्वविद्यालयों को अब लीक से हटकर चलना होगा : कुलपति प्रो. राजाराम

Universities will now have to move out of the box: Vice Chancellor Prof. King Rama
विश्वविद्यालयों को अब लीक से हटकर चलना होगा : कुलपति प्रो. राजाराम
विश्वविद्यालयों को अब लीक से हटकर चलना होगा : कुलपति प्रो. राजाराम

नई दिल्ली, 16 मई (आईएएनएस)। देश में कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट के कारण हुए लॉकडाउन के बाद विश्वविद्यालयों में शिक्षण और प्रशासनिक व्यवस्था के सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ीं हुई हैं। इन चुनौतियों से कैसे निपटा जाए? यह विश्वविद्यालयों के सामने बड़ा सवाल है। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रख्यात भौतिक विज्ञानी प्रो. डॉ. राजाराम यादव ने आईएएनएस से इन चुनौतियों और उनसे निपटने के उपायों पर चर्चा की।

आरएसएस में लंबे समय तक प्रचारक रहे और पूर्व सरसंघचालक रज्जू भैय्या के साथ काम कर चुके प्रो. राजाराम यादव ने देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई की सराहना की। उन्होंने कहा कि दुनिया के दूसरे देशों से जब हम तुलना करते हैं तो आंकड़े भारत के पक्ष में दिखते हैं। यह सब सरकार, प्रशासन, डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मियों और तमाम तरह के कोरोना वॉरियर्स के साझा सहयोग से ही संभव हुआ है। प्रो. राजाराम यादव ने देश की शिक्षा व्यवस्था में नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को भी शामिल करने की जरूरत बताई है। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि विश्वम ग्रामे: प्रतिष्ठतम के सिद्धांत पर चलकर ही भारतीय ग्रामीण व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।

वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के कुलपति प्रो. राजाराम यादव के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान सबसे प्रमुख चुनौती शैक्षिक सत्र को फिर से पटरी पर लाने की है। परीक्षाओं का मौसम चल ही रहा था कि लॉकडाउन हो गया। जिससे कई परीक्षाएं अधर में लटक गईं हैं। परीक्षा के बगैर परिणाम भी जारी नहीं हो सकता। जिससे शैक्षिक सत्र को रेगुलर करने की प्रमुख चुनौती विश्वविद्यालयों के सामने है। ऐसे में परिस्थितियों को देखते हुए परीक्षाओं को कराकर रिजल्ट देने और शैक्षिक सत्र को रेगुलर करने पर ध्यान देना होगा।

कुलपति प्रो. राजाराम ने सुझाव देते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि विश्वविद्यालयों के स्तर से परीक्षा प्रणाली को विकेंद्रित किया जाए। तभी इस दौर में सुरक्षित रूप से परीक्षाओं का संचालन हो सकता है। अभी तक विश्वविद्यालय अपने संबद्ध कॉलेजों के लिए कुछ केंद्र तय कर परीक्षाओं का संचालन करते हैं। ऐसे में अगर परीक्षा केंद्रों की जगह संबंधित कॉलेजों में ही परीक्षा कराने की छूट दी जाए तो विद्यार्थियों को आसानी होगी। उन्हें परीक्षा के लिए दूर नहीं जाना होगा और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए परीक्षा दे सकेंगे। हम अपने विश्ववविद्यालय में अभी तक दो पालियों में परीक्षा कराते हैं। अब तीन पालियों में कराएंगे।

कुलपति प्रो. राजाराम यादव ने कहा कि जहां तक मूल्यांकन की बात है तो इस कार्य में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की योग्यता रखने वाले नेट, पीएचडी योग्यताधारी युवाओं की मदद भी ली जा सकती है। संकट की इस घड़ी में विश्वविद्यालय के मूल्यांकन कार्य से जुड़ने पर ऐसे युवाओं के सामने आर्थिक मुश्किलें भी दूर होंगी। योग्यता रखने वाले युवाओं को जहां कापियां जांचने पर पैसे मिलेंगे वहीं विश्वविद्यालय का मूल्यांकन कार्य भी तेजी से हो सकेगा।

ऑनलाइन एजुकेशन सिर्फ आपत्तिकाल में सहायक

लॉकडाउन के बाद से ऑनलाइन एजुकेशन पर और ज्यादा जोर दिए जाने की बात चल रही है? इस सवाल पर वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम यादव ने कहा कि ऑनलाइन एजूकेशन ने जरूर लॉकडाउन के बीच शिक्षण व्यवस्था को गतिशील बनाए रखने में काफी मदद की है। लेकिन क्लास में भौतिक रूप से उपस्थित होकर पढ़ाई करने और ऑनलाइन संसाधनों के जरिए दूरस्थ पढ़ाई करने में बहुत अंतर है। मैं तो इस ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम को कामचलाऊ व्यवस्था ही मानता हूं। समझिए यह आपत्तिकाल की व्यवस्था है।

प्रो. राजाराम यादव ने कहा कि दुनिया के कई देश तकनीक के मामले में हमसे बहुत आगे हैं। वहां इंटरनेट के साधन भी सुगम और सुलभ हैं। फिर भी वहां यूनिवर्सिटी और डिपार्टमेंट जाकर ही छात्र पढ़ाई करते हैं। साइंस और टेक्नोलॉजी की पढ़ाई तो लैब में ही करनी पड़ेगी। अब लैब तो कोई घर में बनाएगा नहीं। हमने पूर्वांचल विश्वविद्यालय में पांच करोड़ की लागत से रिसर्च फैसिलिटीज तैयार की है। यह लैब विश्वविद्यालय ही नहीं देश के काम आने वाली है। अब इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए छात्रों को तो विश्वविद्यालय तक आना ही पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि ऑनलाइन एजुकेशन के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। 30 प्रतिशत से अधिक जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर घरों के होते हैं। हर किसी के पास अच्छे स्मार्ट फोन और इंटरनेट की सुविधा नहीं होती। दूसरी बात अगर संसाधन हैं भी तो गांवों में नेटवर्क बहुत अच्छा नहीं रहता। ऐसे में फिलहाल यह व्यवस्था कामचलाऊ ही है।

प्रो. राजाराम यादव ने कहा कि चूंकि मैं भौतिक विज्ञानी भी हूं। इस नाते मुझे पता है कि ऑनलाइन एजुकेशन में इस्तेमाल होने वाले संचार साधनों साधनों से इलेक्ट्रो विद्युत चुंबकीय तरंगे निकलतीं हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होतीं हैं। मोबाइल रेडिएशन पर कई एक्सपेरिमेंट भी हुए हैं। ऐसे में इस सिस्टम पर बहुत ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं है।

प्रो. राजाराम यादव ने इस बात पर चिंता व्यक्त की आज की शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा हम भूलते जा रहे हैं। हमने एजुकेशन सिस्टम में फिजिकल और मैटेरियल साइंस को आगे रखा मगर स्प्रिचुअल(आध्यात्मिक) और मॉरल एजुकेशन(नैतिक शिक्षा) को अलग कर दिया। चीन ने बुद्ध की शिक्षाओं को यूनिवर्सिटी के सिलेबस से अलग कर दिया। परिणाम दुनिया के सामने हैं। आज हालात इतने खराब हो चुके हैं कि बाजार मजबूत करने के लिए घातक वायरस बनाए जा रहे हैं।

आत्म निर्भरता की शिक्षा पर देना होगा जोर

प्रो. राजाराम यादव का मानना है कि पिछले कई वर्षों से बुनियादी शिक्षा व्यवस्था खराब हुई है। जबकि पुराने समय में प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था उत्कृष्ट होती थी। अमीर हो या गरीब सभी के बच्चे एक साथ पढ़ते थे। लेकिन प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा व्यवस्था में गिरावट के कारण उच्च शिक्षा व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। ऐसे में मेरा मानना है कि हमें कम से कम इंटरमीडिएट तक की शिक्षा व्यवस्था के ढांचे को सुदृढ़ करना होगा। आत्मनिर्भरता की शिक्षा पर ध्यान देना होगा। सिलेबस में आध्यात्मिक, नैतिक शिक्षा को भी जोड़ा जाना जरूरी है।

Created On :   16 May 2020 6:30 PM IST

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