जेएनयू कैंपस में पुलिस को समय से एंट्री मिलती तो नहीं होती हिंसा!

Violence does not happen if the police get entry on time in JNU campus!
जेएनयू कैंपस में पुलिस को समय से एंट्री मिलती तो नहीं होती हिंसा!
जेएनयू कैंपस में पुलिस को समय से एंट्री मिलती तो नहीं होती हिंसा!
हाईलाइट
  • जेएनयू कैंपस में पुलिस को समय से एंट्री मिलती तो नहीं होती हिंसा!

नई दिल्ली, 6 जनवरी (आईएएनएस)। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) कैंपस में पुलिस को समय से एंट्री मिलती तो शायद हिंसा की घटना टाली जा सकती थी। ऐसा प्रत्यक्षदर्शियों का भी कहना है। खुद स्पेशल सीपी आर.एस. कृष्णया का भी मानना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन से लिखित अनुमति पाने के बाद ही पुलिस अंदर जा सकी। तब तक पुलिस को गेट पर इंतजार करना पड़ा।

बहरहाल, जेएनयू में हिंसा क्या विश्वविद्यालय प्रशासन की ढिलाई की वजह से हुई या फिर पुलिस की, कब विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस को फोन किया, कब पुलिस पहुंची और कब लिखित में अनुमति मिली। इन सब बिंदुओं पर जांच जारी है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी कमिश्नर को फोन कर रिपोर्ट तलब की है। नकाबपोश गुंडे किस संगठन से जुड़े हैं, इसकी भी तफ्तीश जारी है।

सूत्रों का कहना है कि छात्रों के रजिस्ट्रेशन के आखिरी दिन रविवार को सर्वर बंद होने को लेकर दोपहर में डेढ़ बजे से ही लेफ्ट और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) कार्यकर्ताओं के बीच झड़प शुरू हुई। एबीवीपी का आरोप था कि लेफ्ट विंग के छात्रों ने सर्वर रूम बंद कर दिया है जिससे रजिस्ट्रेशन नहीं हो पा रहा है। इस बीच लगभग 3.30 बजे एबीवीपी के कुछ कार्यकर्ताओं ने पेरियार हॉस्टल में अपने ऊपर हमले की पुलिस को सूचना दी। उन्होंने कहा कि एबीवीपी के छात्रसंघ चुनाव के प्रत्याशी रहे मनीष की बुरी तरह पिटाई हुई है। कुछ ही मिनट में वसंत कुंज थाने से पुलिस जेएनयू गेट पर पहुंच गई। इस बीच पुलिस ने कैंपस में घुसने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति मांगी। चार बजे तक पुलिस की चार से पांच गाड़ियां मेन गेट पर पहुंच गई थीं।

सूत्रों का कहना है कि उधर बाहर पुलिस अनुमति के इंतजार में खड़ी रही, तब तक अंदर दर्जनों की संख्या में लाठी, डंडे और लोहे की रॉड लेकर पहुंचे नकाबपोश अराजक तत्वों ने हमला बोल दिया। यह पूरी घटना करीब पांच से छह बजे के बीच हुई। इस घटना में 60 से अधिक छात्र घायल बताए जाते हैं। लेफ्ट विंग के छात्र जहां एबीवीपी कार्यकतार्ओं पर हमले का आरोप लगा रहे हैं तो एबीवीपी पदाधिकारी हिंसा के पीछे लेफ्ट स्टूडेंट्स का हाथ बता रहे हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि जब परमीशन लेटर पाकर पुलिस अंदर पहुंची तब तक खूनी खेल को अंजाम दिया जा चुका था।

स्पेशल सीपी आरएस कृष्णया ने मीडिया से कहा, जब हमें लिखित में अनुमति मिली तब जाकर ही पुलिस कैंपस में दाखिल हुई।

स्पेशल सीपी के इस बयान से माना जा रहा है कि पुलिस को अगर लिखित अनुमति मिलने में देरी नहीं हुई होती तो शायद कैंपस में हिंसा की घटना न होती।

हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन के सूत्रों का कहना है कि जब कैंपस में नकाबपोश गुंडों के घुसने की सूचना मिली थी, तभी फोन कर पुलिस बुलाई गई। किस वक्त प्रशासन ने पुलिस को फोन किया, घटना वास्तव में किस समय हुई, अभी इसको लेकर अलग-अलग बयानबाजी चल रही है।

पुलिस सूत्रों का कहना है कि उन्होंने लिखित अनुमति का इंतजार इसलिए किया क्योंकि उच्चस्तर से उन्हें कई मौकों पर नसीहत जारी हो चुकी है कि बगैर विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के कैंपस में न घुसें। इससे पूर्व जेएनयू सहित कुछ विश्वविद्यालयों में बगैर अनुमति के पुलिस के घुसने पर विवाद हो चुका है।

Created On :   6 Jan 2020 3:30 AM GMT

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