संकष्टी गणेश चतुर्थी : इस पूजा से नकारात्मक प्रभाव होंगे दूर

Sankashti Ganesh Chaturthi: Negative effects will be eliminated by this worship
संकष्टी गणेश चतुर्थी : इस पूजा से नकारात्मक प्रभाव होंगे दूर
संकष्टी गणेश चतुर्थी : इस पूजा से नकारात्मक प्रभाव होंगे दूर

डिजिटल डेस्क। संकष्टी गणेश चतुर्थी पर श्री विघ्नहर्ता गणेशजी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं। इस माह संकष्टी गणेश चतुर्थी 19 अगस्त सोमवार को मनाई गई। संकष्टी चतुर्थी को ‘संकट चौथ’, ‘संकटहरा चतुर्थी’ तथा ‘गणेश संकष्टी चौथ’ भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत भारत में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम तथा दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी का महत्व और पूजा विधि...

महत्व
संकष्टी के दिन भगवान गणपति की पूजा से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं।  शांति बनी रहती है। ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी घर में आ रही सारी विपदाओं को दूर करते हैं और व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन भी बहुत शुभ माना जाता है। 

पूजन मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11:58 बजे से 12:50 तक।

विघ्नहर्ता और संकटमोचन 
गणेश भगवान को विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है। मान्यता है कि गणेश भगवान का मात्र नाम जप करने से सभी प्रकार के संकट टल जाते हैं तथा सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा जीवन की अप्रत्याशित चुनौतियों-बाधाओं से दूर रहने के लिए गणपति को अर्पित कुछ विशेष व्रत करना भी लाभकारी रहता है जिनमें “संकष्टी चतुर्थी” भी एक है।

विनायक चतुर्थी तथा संकष्टी चतुर्थी
हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने 2 चतुर्थी आती हैं - विनायक चतुर्थी तथा संकष्टी चतुर्थी। हर माह के शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि यानि कि चौथे दिन विनायक चतुर्थी आती है, वहीं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को “संकष्टी चतुर्थी” मनाई जाती है।

पूजन विधि
पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर अपना मुख रखें। भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र सामने रखकर किसी स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं। अब फल फूल, अक्षत, रोली और पंचामृत से भगवान गणेश को स्नान कराएं। इसके बाद पूजा करें और फिर धूप, दीप के साथ श्री गणेश मंत्र का जाप करें।

गणेश जी को तिल से बनी चीजों का भोग लगाएं। तिल का लड्डू या मोदक का भोग लगाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं। इसके बाद संभव होतो ये तीन उपाय कर सकतें हैं जो शत्रु बाधा शुभ कर्मों में लाभ प्राप्त होता है

1- शत्रु नाश हेतु नीम की जड़ के गणपति के सामने "हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा" का जप करें। लाल चंदन, लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं। पूजनादि कर मध्य पात्र में स्थापित कर दें तथा नित्य मंत्र जपें। शत्रु वशी हो तथा घोर से घोर उपद्रव भी शांत हो जाते हैं। 

2- कुम्हार के चॉक की मिट्टी से अंगूठे के बराबर मूर्ति बनाकर उपरोक्त तरीके से पूजन करें तथा 101 माला "ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं" की जप कर हवन करें। नित्य 11 माला करें तथा चमत्कार स्वयं देख लें।

3- “ॐ सिद्ध बुद्धि महागणपति नमः” 
इस मंत्र का जाप करें। व्रत करने वाले लोग संध्या को संकष्टी व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। यदि शुभ मुहूर्त में पाठ किया गया तो फल जरूर मिलता है।

व्रत कथा
सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहा करता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका नहीं। बर्तन कच्चे रह गए, बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया, लेकिन बालक की माता ने उस दिन गणोश जी की पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो गणेश जी से प्रार्थना की।

सवेरे कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था, डरकर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणोश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। तब से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।
 

Created On :   17 Aug 2019 3:54 AM GMT

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