बिहार में वर्चुअल बना प्रचार का हथियार!

Becomes a weapon of propaganda in Bihar!
बिहार में वर्चुअल बना प्रचार का हथियार!
बिहार में वर्चुअल बना प्रचार का हथियार!

पटना, 12 जून (आईएएनएस)। बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने कोरोना संकटकाल में अपनी चुनावी रणनीतियों में बदलाव करते हुए वर्चुअल पॉलिटिक्स पर जोर देना शुरू कर दिया है।

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह की वर्चुअल रैली से प्रदेश में वर्चुअल पॉलिटिक्स की शुरुआत हो चुकी है। अब जदयू भी कार्यकर्ताओं का वर्चुअल सम्मेलन कर उन्हें चुनाव में जीत का मंत्र दे रही है। अन्य पार्टियां भी अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करते हुए वर्चुअल संपर्क पर जोर दे रही हैं।

भाजपा द्वारा सात जून को आयोजित वर्चुअल रैली की सफलता के बाद सबकी नजर अब इस तरह की रैलियों पर है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल कहते भी हैं, सात जून को बिहार में इंटरनेट के माध्यम से 39 लाख से अधिक लोगों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की डिजिटल रैली को देखा, जबकि एक करोड़ से अधिक लोगों ने टीवी पर रैली देखी।

इधर, जदयू भी अब वर्चुअल कांफ्रेंस के जरिए कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में जुटी है। जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार वर्चुअल सम्मेलन के जरिए लगातार कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं। पिछले चार दिनों से नीतीश कार्यकर्ताओं से जिलावार रूबरू हो रहे हैं और उन्हें जीत का मंत्र दे रहे हैं।

वहीं, राजद भी सोशल मीडिया पर अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को सक्रिय करने में जुटी है। पार्टी के नेता फेसबुक और ट्विटर के अलावा दूसरे माध्यमों के जरिए अपने कार्यकर्ताओं से जुड़ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान तेजस्वी यादव फेसबुक और ट्विटर से लगातार समर्थकों से जुड़े रहे।

विपक्षी महागठबंधन की घटक कांग्रेस ने भी अपने सदस्यता अभियान को डिजिटल माध्यम से गति दे रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ़ मदन मोहन झा ने कहा, लाखों की संख्या में लोग कांग्रेस से जुड़ना चाहते हैं। हम डिजिटली उन्हें दल का सदस्य बनाएंगे। हालांकि यह प्रक्रिया पहले से ही जारी है, अब उसमें तेजी लाई जाएगी। राज्य स्तर से लेकर पंचायत स्तर तक यह अभियान चलेगा।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने सांसदों, अलग-अलग विभागों, संकायों, जिलाध्यक्षों और विधायकों के साथ भी बैठक करेगी।

राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर भी इस बदलाव को सही मानते हैं। उन्होंने कहा, भाजपा का दावा है कि अमित शाह की रैली को एक करोड़ लोगों ने सुना, तो डिजिटल माध्यमों से इतने अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में यदि कोई दल समर्थ है, तो फिर मैदानों में वास्तविक रैली पर करोड़ों रुपये खर्च करने की कोई मजबूरी नहीं रह जानी चाहिए।

किशोर कहते हैं कि विशेष परिस्थितियों में ही पुराने एवं खर्चीले तरीके को अपनाया जा सकता है। उन्होंने कहा, कहा तो यहां तक जा रहा है कि बिहार जनसंवाद में उतना ही खर्च आया जितना राज्य के बड़े नेता का जेब खर्च होता है।

किशोर का मानना है कि कोरोना महामारी की विदाई के बाद भी ऐसी अभासी रैली जारी रही, तो इस गरीब देश के अरबों रुपये बचेंगे।

ऐसा नहीं है कि पहले के चुनावों में डिजिटली प्रचार नहीं होता था, लेकिन हाल के दिनों में यह डिजिटलीकरण राजनीति का विस्तार माना जा रहा है। वैसे, बिहार चुनाव को लेकर औपचारिक रूप से प्रचार की शुरुआत अभी नहीं हुई है, लेकिन इतना तो तय मामना जा रहा है कि इस बार का चुनाव प्रचार भी अन्य चुनावों से अलग होगा।

Created On :   12 Jun 2020 11:31 AM GMT

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