केंद्र ने धर्मातरण कानूनों के खिलाफ तीस्ता के एनजीओ की याचिका का विरोध किया

Center opposes Teestas NGO plea against conversion laws
केंद्र ने धर्मातरण कानूनों के खिलाफ तीस्ता के एनजीओ की याचिका का विरोध किया
नई दिल्ली केंद्र ने धर्मातरण कानूनों के खिलाफ तीस्ता के एनजीओ की याचिका का विरोध किया
हाईलाइट
  • आपराधिक कार्यवाही

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र ने सोमवार को हाईकोर्ट में तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ द्वारा राज्य सरकारों द्वारा पारित धर्मातरण कानूनों के खिलाफ याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वह धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी हैं और विभाजनकारी राजनीति करती हैं।

गृह मंत्रालय ने एनजीओ सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा दायर एक याचिका के लिखित जवाब में कहा : याचिकाकर्ता दंगा प्रभावित लोगों की पीड़ा का फायदा उठाने के लिए भारी धन इकट्ठा करने का दोषी है, जिसके लिए आपराधिक कार्यवाही की गई है। तीस्ता सीतलवाड़ और याचिकाकर्ता के अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ मामले चल रहे हैं।

इसने आगे कहा, सार्वजनिक हित की सेवा की आड़ में याचिकाकर्ता जानबूझकर और गुप्त रूप से जासूसी करता है, समाज को धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के प्रयास में विभाजनकारी राजनीति करता है। याचिकाकर्ता संगठन की इसी तरह की गतिविधियां असम सहित अन्य राज्यों में चल रही हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता यहां सार्वजनिक हित में कार्य करने का दावा करता है। आगे कहा गया है, न्यायिक कार्यवाही की एक श्रृंखला से, अब यह स्थापित हो गया है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 (एनजीओ) कुछ चुनिंदा राजनीतिक हित के इशारे पर अपने दो पदाधिकारियों के माध्यम से अपने नाम का उपयोग करने की अनुमति देता है और इस तरह की गतिविधि से कमाई भी करता है।

केंद्र ने याचिकाकर्ता के लोकस स्टैंडी पर सवाल उठाते हुए कहा कि तत्काल याचिका में की गई प्रार्थना अन्य याचिका में भी की गई है, जिसकी जांच इस अदालत द्वारा की जाएगी, जो सभी आवश्यक और प्रभावित पक्षों को सुनने के अधीन होगी। एनजीओ ने उत्तर प्रदेश सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पारित कानूनों को चुनौती दी है। गुजरात और मध्य प्रदेश सरकारों ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें संबंधित उच्च न्यायालयों के धर्मातरण पर उनके कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने दलील दी कि राज्य के कानूनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर संबंधित जजों को सुनवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा, मुझे इन याचिकाओं पर गंभीर आपत्ति है। वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. एनजीओ सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस का प्रतिनिधित्व कर रहे सिंह ने कहा कि इन राज्य कानूनों के कारण लोग शादी नहीं कर सकते और स्थिति बहुत भयावह हो सकती है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के धर्मातरण विरोधी कानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। मुस्लिम संगठन ने तर्क दिया कि ऐसे कानून अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले दंपतियों को परेशान करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए बनाए गए हैं। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने स्थानांतरण याचिका सहित सभी मामलों की सुनवाई शुक्रवार को तय की।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक नया आवेदन दायर किया गया है, जिसमें आग्रह किया गया है कि कथित जबरन धर्मातरण से जुड़े मामलों को पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ द्वारा उठाया जाए, क्योंकि वे संविधान की व्याख्या से जुड़े हैं। ताजा आवेदन अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर किया गया है, जो याचिकाकर्ताओं में से एक है।

 

आईएएनएस

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Created On :   30 Jan 2023 11:30 PM IST

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