पुण्यतिथि विशेष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ऐसे बने थे देश के पहले राष्ट्रपति, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें

Rajendra Prasad Jayanti: know special things related to his life
पुण्यतिथि विशेष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ऐसे बने थे देश के पहले राष्ट्रपति, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें
पुण्यतिथि विशेष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ऐसे बने थे देश के पहले राष्ट्रपति, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) की आज (28 फरवरी) पुण्यतिथि है। ऐसे में देशभर में याद किया जा रहा है। सादगी की मिसाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व हर किसी को हमेशा से प्रभावित करता रहा। डॉ. प्रसाद ने कई मिसालें देश के सामने रखी थीं। उन्हें राष्ट्रपति के रूप में जितना वेतन मिलता था, उसका आधा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे। 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख योगदान देने वाले डॉ राजेंद्र प्रसाद गांधी के विचारों से भी बहुत प्रभावित थे। इसके अलावा उन्होंने भारत के संविधान निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...

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सादगी की मिसाल
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की सादगी ने हर किसी के दिल को छुआ है। राष्ट्रपति भवन में जाने के बाद भी उन्होंने वहां हमेशा सादगी को सर्वोपरी रखा। वह पहले राष्ट्रपति थे, जो जमीन पर आसन बिछाकर भोजन करते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजी तौर-तरीकों को अपनाने से इनकार कर दिया था।

आजादी में आने से पहले राजेंद्र प्रसाद बिहार के शीर्ष वकीलों में थे। पटना में बड़ा घर था। नौकर चाकर थे, उस जमाने में उनकी फीस भी कम नहीं थी। लेकिन फिर भी वे पूरी जिंदगी साधारण तरीके से जीते रहे।

12 वर्षों तक संभाला पद
बिहार के जीरादेई में 3 दिसंबर 1884 को जन्मे पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। मृदुभाषी डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 12 वर्षों तक भारत के राष्ट्रपति के पद को संभाला। 26 नवंबर 1950 को देश को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने से वे देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। साल 1957 में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना गया और 1962 में वह अपने पद से हट गए। इस दौरान उन्हें "भारत रत्न" से भी नवाजा गया था। 

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शिक्षा
डॉ. राजेंद्र ने सिर्फ 18 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा, प्रथम स्थान से पास की थी। साल 1915 में उन्होंने कानून में मास्टर डिग्री हासिल की, जिसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित भी किया गया। कानून की पढ़ाई करने के बाद वे वकील भी बनें।

उन्होंने लॉ करने से पहले कानून का ज्ञान भी ले लिया था। वे बहुभाषी भी थे। हिंदी के अलावा अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा में भी उनकी अच्छ-खासी कमांड थी। 

स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े 
पढ़ाई में वकालत की पढ़ाई खत्म करने बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। वे बापू से बहुत प्रभावित थे। बापू के 1942 के "भारत छोड़ो आंदोलन" और 1931 के "नमक सत्याग्रह आंदोलन" में उन्होंने अपना योगदान दिया। राजेंद्र प्रसाद का निधन साल 1963 में हुआ था 

Created On :   28 Feb 2021 4:17 AM GMT

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