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- Where is the khichdi of politics cooked in the heart of politics?
पॉलिटिकल खिचड़ी नेशनल डिश: राजनीति की हांडी में पकने वाली सियासत की खिचड़ी कहां पिछड़ी

हाईलाइट
- जातियों के मसाले की सियासी खिचड़ी का हल्ला बोल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकतंत्र के त्योहार चुनाव में देश के हर कोने में एक चीज की हर जगह, घर के कोने से लेकर सुर्खियों की स्क्रीन तक चर्चा होने लगती है और जुबानों से लेकर सोशल मीडिया पर खूब हल्ला बोलती है। बीरबल के जमाने से चर्चित खिचड़ी को देश के राजनेताओं ने भारतीय राजनीति में ऐसा महान दर्जा दे रखा है कि नेशनल पॉ़लिटिकल डिश, लंच डिप्लोमेसी,गरीब टूरिज्म, दलित पर्यटन जैसे शब्दों से संबोधित होने लगी है। यूपी के चुनावी माहौल में दलित ओबीसी वर्ग को अपने पाले में करने के लिए हर दल प्रयास कर रहा है
चुनावों के तमाम शोरगुलों में इसके चर्चे अलग ही अंदाज में दिखते है। सियासत का भाग्य तय करने चुनावों में शराब मुर्गा की पार्टिओं का खूब जिक्र किया जाता है, लेकिन इसके इतर चार दिवारी में गरीब की थाली में परोसी गई सियासत की खिचड़ी के मजा मिजाज और चर्चे अलग ही नजर आते है। जिस दिन सत्ताधारी पिछड़े गरीब की थाली में परोसी गई खिचड़ी को खाते है, तो वह खिचड़ी कोई आम खिचडी नहीं मानी जाती, थाली तक पहुंचे बड़े बड़े कैमरे और बड़े बड़े नेता उस खिचड़ी को आम से खास बनाते हुए सियासत की खिचड़ी बना डालते है।
आजादी के कई दशकों के बाद भी जातीय सम्मेलन और सहभोज का सिलिसला सियासत में तेज हो गया है। हर पार्टी न केवल सामाजिक आर्थिक बल्कि शासन प्रशासन और सियासत में पिछड़े वर्ग को अपने पाले में करना चाहती है। यूपी चुनाव की तारीख की घोषणा होने के बाद दल बदल और टीका टिप्पणियों के बीच में गरीब की थाली सोशल मीडिया पर साझा होने लगती है। कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में पीएम मोदी अपील के बाद कोरोना की पहली लहर में छज्जे और बालकनी से बजने वाली थाली गरीब के घर में चमकने लगती है। तो कभी सियासत से मिलने के लिए गरीब की थाली सितारा होटल में पहुंच जाती है।
मोदी का गरीब टूरिज्म बना बीजेपी का चुनावी स्टंट
साल 2022 के शुरूआत में ही पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में दलित और पिछड़े समाज की भूमिका अहम है। चुनाव को देखते हुए वोटरों को अपने पक्ष में करने और लुभावने के लिए हर राजनैतिक दल दलितों-पिछड़ों के यहां जा रहे हैं। समाज से लेकर देश की राजनीति में जातीयों का जहर घुला हुआ है। चुनावों में इस जातीय समीकरण का महत्व और अधिक अहम हो जाता है। दल-बदल और टीका-टिप्पणियों के बीच तरह-तरह के स्टंट अपनाए जा रहे है। सियासत की राजनीति में नेताओं का एक बड़ा पुराना और चर्चित करतब है गरीबों और दलितों के यहां जाकर भोजन करना। इस तरह के कृत्य को पीएम मोदी कभी ‘गरीब टूरिज्म’ कहा करते थे। लेकिन आज-कल बीजेपी नेता इस तरह के धतकर्म में अधिक लिप्त होते नजर आ जाते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सोच सियासत से दूर समानता के लक्ष्य के उद्देशय से आगे बढ़कर दलितों को थाली तक सीमित रखने के विचार से आगे बढ़कर साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सहयोगी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को गरीब पिछड़े दलितों से संपर्क करने और उनके साथ खाना खाने और उनकी समस्याओं को सुनने समाधान करने का निर्देश दिया था। उस समय पीएम के आह्वान का पालन करने वाले मंत्री रविशंकर ने खाना खाने के लिए दलित को ही सितारा होटल में बुला लिया जिस पर विपक्ष ने खूब हंगामा किया और सियासत गरमा गई। विपक्ष ने मंत्री की इस लंच डिप्लोमेसी पर खूब तंज कसे
यूपी की चुनावी खिचड़ी
देश के सबसे बड़े राज्य में एक बहुत बड़ा बर्तन चढ़ाया जा चुका है। चुनावी चूल्हा चालू है। चुनावी घोषणा से पहले चर्चा में बने नाराज बुद्धि वर्ग ब्राह्मण से चर्चा, चुनावी घोषणा के बाद से पलट गई, इस सियासत की खिचड़ी ने तब और पकना शुरू कर दिया जब बीजेपी से नाराज होकर कई ओबीसी नेता सपा में शामिल हो गए। फिर बीजेपी ने अपना स्टंट बदल दिया और अपनी लंच डिप्लोमेसी स्टार्ट कर दी। योगी आदित्यानाथ अपनी सियासत की खिचड़ी में फिर उस वर्ग को भुनाना चाहते है जिनके बलबूते पर वो 2017 में गद्दी पर बैठे थे। सबसे अधिक आरक्षित सीट जीतने वाली बीजेपी अपने दलित और ओबीसी वर्ग को साधने में लंगी है। जो यूपी की राजनीति का सबसे बड़ा मसाला है।
मकर संक्रांति के मौके पर सीएम योगी ने गरीब थाली में खाना खाया तो विपक्ष ने उस पर तीखे हमले किए और दलित थाली को सियासत की थाली में लपेट दिया। कुछ दिन पहले सांसद रवि किशन ने भी एक पिछड़े दलित के घर थाली में खाना खाया लेकिन वो थाली प्लास्टिक की निकली तो वह पॉलिटिक्स में विवादित हो गई। महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने पानी पर नहीं पानी पीने वाले बर्तन को ही पॉलिटिक्स में धकेल दिया। मंत्री मलिक ने अपने ट्वीट में कहा कि दलित लोटे में पानी पिये और नेता कागज की गिलास में, वाह बचवा वाह.. ज़िंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा। हालांकि मंत्री नवाब मलिक के इस तंज का अभी तक रवि किशन ने जवाब नहीं दिया है।
चुनावी माहौल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि वंशवाद, और परिवारवाद की राजनीति करने वाले सामाजिक न्याय के समर्थक नहीं हो सकते। भ्रष्टाचार जिनके जीन्स का हिस्सा हो, वे सामाजिक न्याय की लड़ाई नहीं लड़ सकते। उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी ने ही सामाजिक समरसता और न्याय की लड़ाई लड़ी है। सामाजिक न्याय यह है कि शासन की योजनाओं का लाभ हर गरीब को मिले, हर तबके के लोगों को मिले, उनके साथ सामाजिक-आर्थिक भेदभाव न हो। और, यही भाजपा का मूल मंत्र है।
योगी आदित्यनाथ सामाजिक न्याय के तमाम वादे तो करते है लेकिन वो आंकड़ों में नजर नहीं आते, ग्राफिक्स के जरिए समझिए, इन्हें समझकर आप समझ जाएंगे कि आखिरकार चुनावों में नेताओं को समानता और सामाजिक न्याय के चलते गरीब पिछड़े दलित के घर खाना खाने क्यों जाना पड़ता है। योगी सरकार से नाराज ब्राह्मण समाज के साथ साथ समझिए पिछड़ों समाजों की शासन में भागीदारी।
देश में कहां कहां पकी खिचड़ी
राजनीति की हांडी पर पकने वाली नेशनल डिश 'पॉलिटिकल खिचड़ी सदियों से हमारे नेताओं को खूब रास आ रही है। राजनीति में सियासी खिचड़ी की अहमियत किससे छिपी है। राष्ट्रीय व्यंजन बन चुकी पॉलिटिकल खिचड़ी इन दिनों बड़ा हल्ला मचा रखी है। ये एक ऐसा राष्ट्रीय व्यंजन है जो सरकारी आग की लौ के बिना भी समाज की धीमी आंच पर भी पक जाती है। ये जातियों के मसाले की ऐसी खिचड़ी है जो इस देश का राष्ट्रीय व्यंजन है, था, और रहेगा। बीजेपी की योगी सरकार से नाराज होकर कई ओबीसी मंत्री और विधायक बीजेपी छोडकर सपा में शामिल हो गए जिससे सपा गदगद हो गई । वहीं भाजपा अपने प्रत्याशियों और खाना खाने वाली नई रणनीति' से पिछड़े समाज को 2017 के चुनाव की तरह एक बार फिर साधने का प्रयास कर रही है।
क्लोजिंग बेल: तेजी के साथ बंद हुआ बाजार, सेंसेक्स 600 अंक से ज्यादा उछला, निफ्टी 16300 के पार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। देश का शेयर बाजार कारोबारी सप्ताह के पांचवे और आखिरी दिन (27 मई 2022, शुक्रवार) तेजी के साथ बंद हुआ। इस दौरान सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही हरे निशान पर रहे। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 632 अंक यानी कि 1.17 फीसदी की बढ़त के साथ 54,885 के स्तर पर बंद हुआ।
वहीं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 182.83 अंक यानी कि 1.13 फीसदी की तेजी के साथ 16352.45 के स्तर पर बंद हुआ।
जबकि बैंक निफ्टी ने 518.40 अंकों की बढ़त के साथ 35613.30 पर सत्र की समाप्ति दी। आयल गैस तथा मेटल में अतिरिक्त सभी क्षेत्र विशेष में तेजी रही, मिड कैप एवं स्माल कैप सूचकांक 1 प्रतिशत बढ़े। निफ्टी के शेयरों में अपोलो हॉस्पिटल, एचडीएफसी लाइफ,टेक महिंद्रा, विप्रो, हीरो मोटर में सर्वाधिक तेजी रही जबकि ओएनजीसी ,एनटीपीसी, भारतीटेली, पावरग्रिड, टाटास्टील सबसे अधिक गिरे।
निफ्टी ने दैनिक आधार के चार्ट पर हैमर कैंडल स्टिक पैटर्न की पुष्टि की है जो तेजी के रुख के बने रहने का संकेत देता है। निफ्टी एसेंडिंग ट्राइंगल फॉर्मेशन में ट्रेडिंग कर रहा है, इसके ऊपरी बैंड को पार करने पर और भी तेजी देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त निफ्टी 15750-16410 के रेंज में भी घूम रहा है, अभी रेसिस्टेंट के निकट है, इसको पार करने पर नई खरीदारी आ सकती है।
निफ्टी ने 21 ऑवरली मूविंग एवरेज के ऊपर समाप्ति दी है, ये भी तेजी का संकेत है।मोमेन्टम संकेतक एमएसीडी एवं स्टॉकिस्टिक दैनिक चार्ट पर सकारात्मक क्रॉसओवर के साथ ट्रेड कर रहे हैं तथा ओवेरसोल्ड क्षेत्र से एक वापसी की है, जो बजार में तेजी दर्शाता है।निफ्टी का शक्तिशाली सपोर्ट 15900 पर है, तेजी की स्थिति में 16410 पर निकट अवधि में अवरोध है।
बैंक निफ्टी का सपोर्ट 34800 तथा अवरोध 36000 है।
बता दें कि, सुबह बाजार बढ़त के साथ खुला था। इस दौरान सेंसेक्स 442 अंक की बढ़त के साथ 54,695 के स्तर पर खुला था। वहीं निफ्टी 138 अंक यानी कि 0.86 फीसदी उछाल के साथ 16,308 के स्तर पर खुला।
पलक कोठारी
शोध सहयोगी
चॉइस ब्रोकिंग (Choice Broking)
Source: Choice India
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक मुफ्त रिज्यूम-बिल्डिंग टूल, जो कि हर उम्मीदवार की जरूरत है, अब Resumod.co पर उपलब्ध है। Resumod एक फ्री ऑनलाइन रिज्यूमे बिल्डर प्रदान करता है जो लगातार नौकरी खोजने वालों के लिए रिज्यूमे बनाने के तरीके को बेहतर बनाता है। हमने हाल ही में अपनी वेबसाइट पर निःशुल्क टूल लॉन्च किया है। नीचे विवरण है|
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