न INDIA न NDA, 2024 में ये दल होंगे असल किंगमेकर, जिसे मिलेगा इनका साथ उसी के सिर पर सजेगा ताज! छुटपुट दलों का ये है बड़ा सियासी गणित

न INDIA न NDA, 2024 में ये दल होंगे असल किंगमेकर, जिसे मिलेगा इनका साथ उसी के सिर पर सजेगा ताज! छुटपुट दलों का ये है बड़ा सियासी गणित
  • मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता जोर पकड़ रही है।
  • इन नेताओं की अपने राज्य में है मजबूत पकड़।
  • खबर में समझें दलों की पृष्टभूमि।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश का विपक्ष अब INDIA हो चुका है और पक्ष यानी सत्ताधारी पार्टी का गठबंधन NDA के नाम से पहले से ही है। मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता जोर पकड़ रही है। तैयारी जोरदार है, कई पुराने दल एक साथ एक मंच पर आए हैं और सारे पॉलीटिकल ईगो ताक पर रख कर एक होने का दावा भी कर रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी दल है जिन्हें न एनडीए बनना पसंद है और न ही INDIA। वो अपनी पुरानी पहचान पर कायम है और एकला चलो की तर्ज पर किसी का साथ देने या मिलने के लिए तैयार नहीं है। ऐसा जरूरी नहीं कि इन दलों को विचारधारा से परेशानी हो। हो सकता है ये दल वेट एंड वॉच की स्थिति में है। जिस वक्त सियासी तेल की धार समझ आएगी, उस वक्त सही दिशा का रुख कर लेंगे। अगर एक गठबंधन के पक्ष में भरपूर वोट नहीं डले तो, न NDA और न ही INDIA, ये बचे खुचे नजर आ रहे दल ही असल किंगमेकर होंगे।

लोकसभा में ये दल किस तरह किंगमेकर बन सके हैं, इसे समझने के लिए हमें इन दलों की पृष्टभूमि को समझना होगा।

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस)-

के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का पुराना नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति था। केसीआर की पार्टी ने 2009 में अलग राज्य तेलंगाना की मांग को लेकर आंदोलन जारी रखा और 2014 में आंध्र प्रदेश से विभाजित होकर तेलंगाना अलग राज्य बना। तेलंगाना को अलग राज्य बनाये जाने का ज्यादा क्रेडिट केसीआर की पार्टी को मिला। नतीजा यह हुआ की टीआरएस ने राज्य के विधानसभा चुनाव में 119 में से 63 सीटें जीतीं। वहीं 2018 में भी फिर से बड़ी जीत हासिल करते हुए 88 सीटें जीतकर सरकार बनाई।

राष्ट्रीय राजनीति में केसीआर ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की तरह नीति अपनाए हुए थे। हालांकि साल 2021 के आखिर से उनका रुख बदला और भाजपा की नीतियों की खुलकर आलोचना करने लगे। बाद में टीआरएस को एक राष्ट्रीय पार्टी बनाने का संकेत दिया। उन्होंने पार्टी का नाम बदलकर बीआरएस में तब्दील कर दिया। पार्टी ने महाराष्ट्र और एमपी में भी अपनी जमीन तैयार करना शुरू कर दिया है। इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने है जिसका असर सीधे 2024 के लोकसभा चुनाव मे देखने को मिलेगा।

बीआरएस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी कुल 119 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक पर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई थी। वहीं कांग्रेस को यहां पर 3 सीटें और AIMIM को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन हालिया स्थिति को देखें तो राज्य के विधानसभा चुनाव में बीआरएस,कांग्रेस और बीजेपी तीनों ही पार्टियां आमने सामने होंगी लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक जानकार यह मान रहे हैं कि यहां पर सीधी टक्कर बीआरएस और बीजेपी के बीच होगी। हालांकि कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस को भी कम नहीं आंका जा सकता। इसकी मुख्य वजह यह है की आंकड़ो को देखें तो यहां दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ही है।

बीआरएस की ताकत को आंकड़ो से समझें

तेलंगाना विधानसभा चुनाव-2018 (कुल सीटें-119)

तेलंगाना में हुए लोकसभा चुनाव-2019 के नतीजे (कुल सीटें-17)


बीजू जनता दल

विपक्षी एकता के महागबंधन की मीटिंग में शामिल न होने वाले नेताओं में प्रमुख नाम ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक का भी है। बीजू जनता दल के चीफ नवीन पटनायक का नाम ओडिशा (Odisha) के इतिहास में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान है।

2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को मिलाकर मजबूत गठबंधन बनाने में जुटे नीतीश कुमार ने पटनायक से भी मुलाकात की थी। लेकिन अगले ही दिन पटनायक ने साफ कर दिया था कि वह महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे।

पटनायक बाकी नेताओं से हैं अलग

विपक्षी महागठबंधन में शामिल न होने की बात कहने वाले नवीन पटनायक ऐसे नेता के रुप में जाने जाते हैं जिनका पूरा फोकस ओडिशा की राजनीति पर ही रहा है। वह हमेशा केंद्रीय मुद्दों से दूरी बनाकर चलते हैं। केंद्र में चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर वर्तमान की मोदी सरकार, पटनायक का कभी बड़ा विवाद नहीं हुआ।

नीतिश की विपक्षी एकता की मुहिम में कांग्रेस मुख्य पार्टियों में शामिल है वहीं नवीन पटनायक की पूरी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ रही है। हालांकि कभी एनडीए का हिस्सा रहे नवीन पटनायक ने 2008 में नाता तोड़ दिया था।

लेकिन जब किसी भी मामले में एनडीए या विपक्ष के समर्थन की बात आती है तो पटनायक अधिकतर न्यूट्रल ही दिखाई देते हैं। एक तरफ तो वह विपक्षी दलों की मीटिंग में भी शामिल नहीं होते। वहीं दूसरी तरफ जब केंद्र सरकार को तीन तलाक, जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने के फैसलों पर जरूरत पड़ी तो पटनायक ने बीजेपी का साथ दिया। इस बार राष्ट्रपति चुनाव में भी बीजद ने एनडीए की प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू का समर्थन किया था।

76 साल के नवीन पटनायक शांत स्वभाव के नेता के रूप में जाने जाते हैं। लगातार 5 बार से ओडिशा की सीएम पटनायक मुद्दों के आधार पर ही कांग्रेस और एनडीए को समर्थन देते आए हैं।

बीजू जनता दल की ताकत आंकड़ों से समझें

ओडिशा विधानसभा चुनाव-2019 (कुल सीटें-147)

ओडिशा में हुए लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे (कुल सीटें-21)


ओडिशा में लोकसभा के साथ ही होंगे विधानसभा चुनाव

ओडिशा उन राज्यों में से एक है जहां पर लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभा के चुनाव भी होते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजद को 42.8 और बीजपी को 38.4 फीसदी वोट मिले। जबकि विधानसभा चुनाव में बीजद को 44.7 और बीजेपी को 32.5 फीसदी वोट मिले थे।

मत प्रतिशत यह बताने के लिए काफी है कि मोदी लहर के बाद भी लोकसभा चुनाव में बीजद अपने वोट बैंक पर काफी हद तक अपने साथ रखने में सफल रही। बीजद को महज 1.3 फीसदी वोट का नुकसान हुआ। यही पार्टी की ताकत को दिखाने के लिए काफी है। वहीं बीजेपी को जिन 16 फीसदी मतों का फायदा हुआ है उसमें कांग्रेस को करीब 12 फीसदी का नुकसान हुआ है। हालांकि सीटों के लिहाज से बीजद को 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 8 सीटों का नुकसान हुआ था वहीं बीजेपी को 7 सीटों का फायदा मिला था।

ओडिशा में 2019 के लोकसभा चुनाव में 21 सीटों में से 12 बीजेडी, 8 बीजेपी और एक में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।

वाईएसआर कांग्रेस

येदुगूरी संदिटी जगन मोहन रेड्डी एक ऐसे भारतीय राजनेता जिनकी अपने राज्य में मजबूत पकड़ है। उन्होंने 2019 में आंध्र प्रदेश के 17वें और मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है। वह वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष भी हैं। आंध्र प्रदेश विधानसभा में उन्होंने 2014 से 2019 के बीच में विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया था। जगन मोहन रेड्डी का जन्म 21 दिसंबर 1972 को आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के जम्मलमदुगु में हुआ था। वह आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी के बेटे हैं।

रेड्डी ने 2004 के आंध्र प्रदेश राज्य चुनावों में कडप्पा जिले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए प्रचार-प्रसार करते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। जगनमोहन रेड्डी को राजनीति विरासत में मिली। उनके पिता वाईएसआर रेड्डी आंध्र प्रदेश के जानेमाने नेता और मुख्यमंत्री रह चुके थे।

2009 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस पार्टी की टिकट पर कडप्पा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए। 2009 में जगनमोहन रेड्डी के पिता वाईएसआर रेड्डी की एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई थी। अपने पिता की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी से उनके रिश्तों में मतभेत धीरे-धीरे बढ़ते गए और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर 2011 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बनाने का फैसला किया।

विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने दर्ज की जोरदार जीत

रेड्डी ने राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पार्टी के लिए काम करना शुरू किया और कई जीत दिलाई। आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने 2019 के कुल 175 सीटों में से 151 सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल की। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के मुखिया जगन मोहन रेड्डी ने राज्य से चंद्रबाबू नायडू की सरकार को उखाड़ फेंका। टीडीपी केवल 23 विधानसभा सीटें में ही जीतने में कामयाब हो पाई। वहीं चुनाव में आगाज करने वाली अभिनेता पवन कल्याण की जन सेना पार्टी (जेएसपी) को एक विधानसभा सीट मिली।

पदयात्रा का मिला फायदा

राजनीति जानकारों की मानें तो जगन मोहन रेड्डी की जीत में अहम भूमिका उनके द्वारा की गई पदयात्रा की है। 2014 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश में कडप्पा से श्रीकाकुलम तक यात्रा निकाली। इस पदयात्रा से उन्होंने जनसंपर्क बढ़ाया जिसका सीधा फायदा उन्हें चुनाव के नतीजों में देखने को मिला। राज्य में पदयात्रा को सत्ता की जाबी माना जाता है। जगन मोहन रेड्डी से पहले पदयात्रा ने राजशेखर रेड्डी, टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू को सरकार में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

लोकसभा चुनाव में भी रेड्डी का चला जादू

विधानसभा चुनाव में रेड्डी की पार्टी ने जोरदार तरीके से जीत दर्ज कर सरकार बनाई। साथ ही लोकसभा चुनाव में राज्य की 25 सीटों में से 22 सीटें जीतने पर कामयाब रही। जो आंध्र प्रदेश के इतिहास में शानदार जीत में से एक है। वहीं टीडीपी को मात्र 3 लोकसभा सीटें ही मिल पाई। राज्य में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को केवल निराशा ही हाथ लगी।

2019 में राज्य में सामने आए चुनावी नतीजो से ही सीएम जगन मोहन रेड्डी की राजनैतिक ताकत का अनुमान लगाया जा सकता है। रेड्डी उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव को लेकर बन रहे किसी भी गठबंधन में शामिल होने से मना कर दिया है।

रेड्डी ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की तरह ही राज्य की राजनीति में ज्यादा फोकस करते हैं। बता दें दोनों ही नेताओं की पार्टी ने मोदी सरकार का समर्थन या फिर सदन में वाकआउट किया है। आंघ्र प्रदेश के सीएम के बारे में कहा जाता है कि वह मुद्दों के आधार पर समर्थन देने का काम करते हैं। लेकिन अभी तक किसी भी गठबंधन में शामिल होने का फैसला नहीं किया है। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के वर्तमान में 22 सांसद है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अगर नतीजे इसी नंबर के आसपास रहते हैं तो नंबर के हिसाब से रेड्डी की पार्टी अहम भूमिका निभा सकती है।


विधानसभा चुनाव-2019 आंध्रप्रदेश (कुल सीटें-175)

लोकसभा चुनाव-2019 आंघ्रप्रदेश (कुल सीटें-25)

बहुजन समाजवादी पार्टी

विपक्षी एकता की मीटिंग में शामिल न होने वाले नेताओं की सूची में प्रमुख नाम बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती का भी है। बता दें मायावती ने पटना में हुई मीटिंग से पहले कई बार यह कहती रही हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा अकेले मैदान में उतरेगी। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यही कारण है कि किसी भी नेता ने मायावती से औपचारिक और अनौपचारित रूप से संपर्क नहीं किया। हालांकि बसपा की तरफ से यह भी कहा गया कि हमारी नजर विपक्षी एकता पर बनी है।

बता दें 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। 80 सीटों वाले यूपी में बसपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं समाजवादी पार्टी मात्र 5 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी।

उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे (कुल सीटें-80)


हालांकि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। बसपा को केवल एक सीट पर ही जीत हासिल मिली थी। इस चुनाव में उसका वोट प्रतिशत करीब 22 फीसदी से घटकर 12 पर रह गया था।

लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर बसपा 'गांव चलो' अभियान के माध्यम से युवाओं का रिपोर्ट कार्ड तैयार करवा रही है। बताया जा रहा है कि पार्टी की रणनीति यह है कि अभियान में बेहतर काम करने वाले युवाओं को पार्टी संगठन में अहम जिम्मेदारियां दी जाएंगी।

राजनैतिक जानकारों का मानना है कि बसपा अगर पार्टी के कार्यकर्ताओं और अपने कोर वोटरों पर फिर से मेहनत करेगी। अगर पार्टी फिर से अपने पक्ष में कोर वोटरों को लाने में कामयाब होती है तो ये तय है कि आने वाले चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकती है।


Created On :   25 July 2023 5:17 PM GMT

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