मध्य प्रदेश: पांच सदी की पथराई प्रतीक्षा का युग समाप्त - नरेंद्र सिंह तोमर

पांच सदी की पथराई प्रतीक्षा का युग समाप्त - नरेंद्र सिंह तोमर

डिजिटल डेस्क, भोपाल। श्री रामचरित मानस के अयोध्या कांड में वर्णित है कि जब प्रभु श्री राम रावण का वध करके अयोध्या लौटे तो अनेक प्रकार के शकुन हो रहे हैं, नगाड़े बज रहे हैं और नगर के नर−नारियों को दर्शन से कृतार्थ करके प्रभु अपने भवन को जा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी का लिखा यह दोहा शब्दशः पुनः अवतरित हो रहा है।

"होहिं सगुन सुभ बिबिधि बिधि बाजहिं गगन निसान।,

पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान। "

पांच सदियों से अधिक के लंबे संघर्ष, प्रतीक्षा और वेदना का युग समाप्त हो रहा है। टेंट में विराजे हमारे आराध्य भव्य मंदिर में 22 जनवरी को पधार रहे हैं। स्वतंत्रता के अमृत काल में घट रहे इस एतिहासिक कालखण्ड में सारे शुभ शकुन कुछ वैसे ही हो रहे हैं जैसे कि त्रेता में प्रभु श्री राम के अयोध्या लौटने पर हुए थे। राम जन्मभूमि के लिए चले लंबे संर्घष की सुखद परिणिति हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन एवं कुशल नेतृत्व में पूर्ण हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक निर्णय के उपरांत यदि राम मंदिर के अलौकिक प्रांगण निर्माण के लिए सर्वधर्म से एकमत की सहमति का वातावरण यदि आज राष्ट्र में निर्मित है तो उसमें मोदी जी की नेतृत्व कुशलता ही एक मात्र कारण है।

6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा गिराए जाने के पहले और बाद की भी लंबी संघर्ष की कहानी है। यद्यपि नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक निर्णय के बाद यह विवाद स्वतः समाप्त हो चुका है कि भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में उसी स्थान पर हुआ था जहां राम मंदिर था और बाद में उसे तोड़कर बाबरी ढांचा बना दिया गया। किंतु प्रासंगिकता को देखते हुए इसके एतिहासिक और पौराणिक साक्ष्यों पर एक दृष्टि आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर को लेकर दिए अपने 1045 पन्ने के ऐतिहासिक फ़ैसले में कई किताबों और दस्तावेजों का जिक्र किया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में वृहत धमोत्तर पुराण का जिक्र है, जिसके अनुसान अयोध्या सात पवित्र नगरियों में से एक है, इसके अनुसार- अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांचि, अवन्तिका। पुरी, द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:। इसी तरह वाल्मीकि रामायण से लेकर स्कंद पुराण तक में अयोध्या नगरी और श्री राम के वहां जन्म होने का वर्णन है। यहां तक कि अकबर के शासन काल के दौरान अबुल फजल द्वारा लिखी गई आइने अकबरी में भी अवध का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि इस पवित्र नगरी में त्रेता युग में राजा रामचंद्र रहते थे।

लेकिन दुखद विषय यह है कि यहां राजनीतिक कु-इच्छओं और तुष्टिवाद के चलते राम जन्म भूमि पर भगवान राम के मंदिर की राह में कई वर्षोँ तक रोड़े अटकाए गए। 1853 में नवाब वाजिद अली शाह के शासन से रामलला की जन्मभूमि पर पूजा को रोकने का शुरू हुआ सिलसिला कई दशकों तक चला है। अंग्रेजों ने अपनी फूट डालो और राज करो नीति के तहत राम मंदिर विवाद को सबसे ज्यादा गहराया और मंदिर के भीतर रामलला की पूजा नहीं होने दी। 1950 में राम जन्मभूमि को लेकर शुरू हुई कानूनी लड़ाई 70 दशक तक चली है। राम जन्म भूमि आंदोलन में भारतभूमि के महान संतों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और लाखों कार सेवकों का संघर्ष और तप आज स्मरणीय हैं। इस आंदोलन की धुरी बने संत परमहंस श्री रामचंद्र दास, विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे श्री अशोक सिंघल जी एवं अन्य महापुरूषों का योगदान भी आज याद किया जाना चाहिए। 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से माननीय लालकृष्ण आडवाणी जी के नेतृत्व में शुरू हुई रथ यात्रा और राम जन्मभूमि आंदोलन राम लला के मंदिर निर्माण के युद्ध का एक शंखनाद था जो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब भव्य राम मंदिर में प्रभु श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में पूर्ण हो रहा है। यह प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की दृढ़ संकल्पशक्ति एवं नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम है कि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद संर्पूण देश एक मन-एक मत से प्रभु श्री राम मंदिर में विराज रहे हैं।

राम हमारी आस्था के सर्वाेच्च शिखर हैं, आराध्य हैं। हमारी जीवनशैली, सामाजिकता, संस्कृति, शासन व्यवस्था में राम समाए हुए हैं। भारतीय संविधान की मूल प्रति में भगवान श्री राम का चित्र अंकित है। संविधान में जहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों का जिक्र है, वहां श्री राम, माता सीता और श्री लक्ष्मण के रावण वध के बाद लंका से अध्योध्या लोटने का चित्र है। यही चित्र हमारे संविधान में राम राज्य की भावना को उद्भूत करता है।

अयोध्या तो इस समय वैश्विक पटल पर छाया ही हुआ है। प्रधानमंत्री जी के ” विकास भी विरासत भी” ध्येय वाक्य पर चलते हुए वाराणसी में ”काशी कारीडोर” उज्जैन में ” महाकाल पथ”, पवित्र चारधाम केदारनाथ,बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री को हर मौसम में निर्बाध सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 900 किलोमीटर लंबी चारधाम सड़क परियोजना, सोमनाथ मंदिर पुनर्निमाण परियोजना, धार्मिक स्थलों के लिए बेहतर रेल एवं हवाई मार्ग की कनेक्टिविटी जैसे कई कार्यों ने एक नया परिदृश्य निर्मित किया है।

अयाेध्या के राजा के रूप में प्रभु श्री राम ने जिस आदर्श शासन व्यवस्था की नींव रखी थी, सदियों से हम उसे ”राम राज्य” के रूप में आत्मसात कर अनुकरण कर रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने केवल राम मंदिर के स्वप्न को साकार करने का भगीरथी कार्य किया है, अपितु समदर्शी, सर्वस्पर्शी, लोककल्याणकारी शासन शैली के माध्यम से राम राज्य की पुनर्स्थापना का भी कार्य किया है। यह संयोग ही है कि स्वतंत्रता के अमृतकाल में हमें मोदी जी के रूप में एक एसा सशक्त और संवेदनशील नेतृत्व मिला है जिन्होंने एक दशक में राष्ट्र पुनर्रुत्थान के कई नए आयाम स्थापित किए हैं। राम राज्य की कल्पना के साकार होने के इस एतिहासिक क्षण के हम सभी साक्षी बन रहे हैं, यह हम सभी के लिए एक ईश्वर प्रदत्त सौगात है।

Created On :   20 Jan 2024 8:34 AM GMT

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