सरोगेसी से जुड़े मामलों के लिए गठित हुआ राष्ट्रीय बोर्ड

National board constituted for matters related to surrogacy
सरोगेसी से जुड़े मामलों के लिए गठित हुआ राष्ट्रीय बोर्ड
केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को दी जानकारी  सरोगेसी से जुड़े मामलों के लिए गठित हुआ राष्ट्रीय बोर्ड

डिजिटल डेस्क, मुंबई। केंद्र सरकार ने बांबे हाईकोर्ट को सूचित किया है कि सरोगेसी से जुड़े मामले को देखने के लिए राष्ट्रीय बोर्ड का गठन कर दिया गया है और वह कार्यरत भी हो गया है। केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता रुई राड्रिक्स ने कोर्ट को यह जानकारी दी है। इसके मद्देनजर हाईककोर्ट ने सरोगेसी (किराए पर कोख देना) के लिए अपने संरक्षित भ्रूण को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल से दूसरे फर्टिलिटी केंद्र में ले जाने की अनुमति की मांग को लेकर बोर्ड के सामने 1 अगस्त को अपना पक्ष रखने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि है कि बोर्ड दंपति का पक्ष सुनने के बाद उसकी मांग पर दो माह के भीतर निर्णय ले। सरोगेसी  कानून एवं असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नालाजी (एआरटी) अधिनियम में सरोगेसी बोर्ड के गठन का प्रावधान है। चूंकि पहले इस बोर्ड का गठन नहीं हुआ था। इसलिए दंपति ने सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  न्यायमूर्ति एसवी गंगापुरवाला व न्यायमूर्ति श्रीराम मोडक की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता राड्रिक्स ने कहा कि बोर्ड कार्यरत हो गया है। इस बोर्ड के सामने दंपति का पहला मामला सुनवाई के लिए आएगा। 

राज्य सरकार ने भी किया बोर्ड का गठन
इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रही सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने कहा कि राज्य सरकार ने भी सरोगेसी बोर्ड का गठन कर दिया है। केंद्र व राज्य सरकार से जानकारी के मिलने के बाद खंडपीठ ने दंपति को एक अगस्त 2022 को राष्ट्रीय बोर्ड के सामने उपस्थित होने को कहा और बोर्ड को दो माह के भीतर दंपति की मांग पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। वहीं दंपति की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता पीवी दिनेश ने कहा कि बोर्ड के गठन न होने के चलते मेरे मुवक्किलों के अभिभावक बनने का सपना अटका पड़ा था। 

नए कानून से बढ़ी है दंपति की परेशानी 
याचिका में दंपति ने दावा किया है कि उसने पहले ही भ्रूण को एक अस्पताल में सरंक्षित किया था जबकि सरोगेसी से जुड़ा नया कानून इस वर्ष जनवरी महीने में आया है। नए कानून के चलते दंपति दूसरे अस्पताल में अपना भ्रूण नहीं ले जा सकता है। जबकि दंपति का दावा है कि नया कानून उन पर लागू नहीं होता। क्योंकि उन्होंने सरोगेसी की प्रक्रिया नए कानून के आने से पहले शुरु की थी। नए कानून में इस तरह के मामले को देखने के लिए राज्य नियामक बोर्ड के गठन का प्रावधान है। चूंकि यह बोर्ड अस्तित्व में नहीं था। इसलिए दंपित ने सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। सरोगेसी से जुड़े नए कानून के तहत केवल परोपकार के लिए सरोगेसी की छूट है। नए कानून के मुताबिक सिर्फ विवाहित दंपति जिनके पास बच्चा है, वही महिला सरोगेट बन सकती है। कानून की इस अनिवार्यता के चलते अस्पताल ने कोर्ट आए दंपति की सरोगेसी की प्रकिया को रोक दिया है। 

Created On :   16 July 2022 6:52 PM IST

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