50 हजार बमों को धमाकों से उड़ाया, डिस्पोजल में पहले एक साथी खोया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी 

50 हजार बमों को धमाकों से उड़ाया, डिस्पोजल में पहले एक साथी खोया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी 

Bhaskar Hindi
Update: 2021-01-11 08:36 GMT
50 हजार बमों को धमाकों से उड़ाया, डिस्पोजल में पहले एक साथी खोया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी 

ओएफके की स्पेशल टीम का कारनामा, झांसी से 30 एमएम एडन सेल को डिस्पोज कर लौटे आयुध कर्मी
डिजिटलय डेस्क जबलपुर ।
दो-ढाई साल पहले जिन बमों को डिस्पोज करते वक्त आयुध कर्मी खमरिया के एक कर्मचारी की जान चली गई ऐसे ही 50 हजार बमों को उसी निर्माणी के महारथियों ने धमाकों से उड़ा दिया। झांसी में 4 दिनों तक चले डिस्पोजल को पूरा करने के बाद टीम वापस लौट आई है। महकमे के साथ प्रशासन का सीना भी फक्र से चौड़ा है।   आयुध निर्माणी खमरिया के जीएम रविकांत की ओर से आधा दर्जन विशेषज्ञों की स्पेशल टीम को 30 एमएम एडन सेल के डिस्पोजल की जिम्मेदारी सौंपते हुए बबीना, झांसी रवाना किया गया। इससे ठीक पहले इन्हीं बमों के डिस्पोजल के दौरान पुलवामा में एक ओएफके कर्मी धरमवीर की मौत हो गई थी और एक चार्जमैन गंभीर रूप से घायल हुआ था। इसके बावजूद टीम ने हिम्मत नहीं हारी और चीफ सेफ्टी ऑफीसर कैलाश चंद्र के नेतृत्व में महज 4 दिनों के भीतर पूरे आउट डेटेड असलहे को डिस्पोज कर दिया। टीम में प्रभात जायसवाल, राकेश पासवान, कुनाल पटेल सहित आधा दर्जन कर्मी शामिल रहे। गौरतलब है कि निर्माणियों में बनने वाले गोला-बारूद को एक समय बाद नष्ट करना जरूरी हो जाता है और इसकी जिम्मेदारी भी सेना के साथ आयुध कर्मियों पर होती है। 
ऐसे होता है डिस्पोजल
आर्मी के डिस्पोजल बेस पर भारी भरकम गड्ढा किया जाता है। इसके बाद बेहद सावधानी के साथ बमों को नीचे सतह पर उतारा जाता है। जानकारों का कहना है कि शिफ्टिंग की यही प्रक्रिया सबसे खतरनाक मानी जाती है। बमों को रखने के बाद इन पर हाई क्वालिटी के बारूद का छिड़काव होता है। जूट की रस्सी फ्यूल में भिगोकर दूर तक ले जाई जाती है। इसके बाद पूरे गड्ढे को कई टन रेत और मिट्टी से भर दिया जाता है। ऐसी व्यवस्था जुटाई जाती है जिससे कि गड्ढा भरने के बाद भी जूट की रस्सी से आग बमों तक पहुँचाई जा सके। आखिरी काम चिंगारी छुलाने का होता है।   
कदम-कदम पर जोखिम 
>    टाइम लिमिट खत्म होने के साथ आयुध के साथ कई तरह की दिक्कतें जुट जाती हैं। 
> कई सेंसर की एक्टिवनेस कम और ज्यादा हो जाती है। कभी अपने आप भी धमाके हो जाते हैं। 
> ट्रांसपोर्टिंग के साथ-साथ नीचे शिफ्ट करने में दो बमों में निश्चित दूरी रखनी होती है। 
> हल्की सी रगड़ अथवा झटके से भी बमों में विस्फोट हो सकता है। 
> पुलवामा में बमों को ले जाते वक्त विस्फोट हो गया था, जिसमें कुल 6 आयुध कर्मियों ने जान गवां दी थी। 
 

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