कर्मचारी की वैवाहिक पुत्री भी है अनुकंपा नियुक्ति की हकदार

कर्मचारी की वैवाहिक पुत्री भी है अनुकंपा नियुक्ति की हकदार

Bhaskar Hindi
Update: 2020-03-03 07:50 GMT
कर्मचारी की वैवाहिक पुत्री भी है अनुकंपा नियुक्ति की हकदार

हाईकोर्ट के तीन जजों की लार्जर बैंच ने दिया अहम फैसला, सरकार के एक नियम को ठहराया संविधान के खिलाफ
डिजिटल डेस्क जबलपुर
। एक अहम फैसले में हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि कर्मचारी के निधन के बाद उसकी वैवाहिक पुत्री भी अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार होगी। वैवाहिक पुत्री को इस अधिकार से वंचित करने वाले राज्य सरकार के एक नियम को संविधान के खिलाफ बताते हुए जस्टिस सुजय पॉल, जस्टिस जेपी गुप्ता और जस्टिस नंदिता दुबे की लार्जर बैंच ने सोमवार को यह फैसला सुनाया।
गौरतलब है कि सतना जिले की अमरपाटन तहसील के ग्राम खूटा निवासी मीनाक्षी दुबे की ओर से यह अपील हाईकोर्ट में दायर की गई थी। आवेदक के पिता मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में लाईनमेन के पद पर कार्यरत थे। उनके 5 अप्रैल 2016 को हुए निधन के बाद आवेदक ने अनुकंपा नियुक्ति पाने एक आवेदन बिजली कंपनी को दिया था। उसका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि राज्य सरकार की 12 दिसंबर 2014 की नीति के तहत अनुकंपा नियुक्ति का लाभ सिर्फ पुत्र, अविवाहित पुत्री, विधवा पुत्री या तलाकशुदा पुत्री को ही दिया जा सकता है। इस फैसले के खिलाफ  आवेदक ने एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की, जिसके 8 जनवरी 2019 को खारिज होने पर यह अपील दायर की गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनुभव जैन, सुधा गौतम, आनंद शर्मा और सोनाली विश्वास ने पैरवी की।
बेटी का कहना-भाई घुमक्कड़, माँ का ध्यान कौन रखेगाज
आवेदक मीनाक्षी का कहना था कि उसकी मां काफी वृद्ध हैं और भाई घुमक्कड़ किस्म का होने के कारण अपनी जिम्मेदारियों नहीं निभा रहा है। ऐसे में मां का ध्यान कौन रखेगा। चूंकि वह अपने पति से अलग अपने मायके में रह रही है इसलिए उसे ही अनुकंपा नियुक्ति मिलना चाहिए, लेकिन राज्य सरकार की दिसंबर 2014 की नीति इसके आड़े आ रही है।
दो जजों की बैंच ने मामला भेजा 3 जजों की लार्जर बैंच को
एकलपीठ से याचिका खारिज होने के बाद यह मामला युगलपीठ के समक्ष 8 जनवरी 2020 को सुनवाई के लिए आया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की इन्दौर खण्डपीठ द्वारा मीनाक्षी के मामले पर दिए फैसले को नजीर के रूप में पेश किया गया। इंदौर खंडपीठ के जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली युगलपीठ का मानना था कि बेटी भली विवाहित हो, लेकिन उसको उसके हक से वंचित नहीं किया जा सकता। इस फैसले से इत्तेफाक न रखते हुए मुख्यपीठ जबलपुर के दो जजों की बेंच ने सरकार के नियम को असंवैधानिक ठहराने से इंकार करते हुए मामला चीफ जस्टिस को भेजा था, ताकि लार्जर बैंच अनुकंपा नियुक्ति के मुद्दे पर अपनी राय दे सके।
वैवाहिक पुत्रियों के साथ भेदभाव की शर्त पक्षपातपूर्ण
अपने विस्तृत फैसले में तीन जजों की लार्जर बैंच ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर दिए गए फैसलों का हवाला दिया। लार्जर बैंच ने कहा कि राज्य सरकार के नियम में वैवाहिक पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का जो बंधन लगाया गया, वह पक्षपातपूर्ण है। जब बात बेटे की हो तो उसके विवाह को लेकर कोई बंधन नहीं लगाया गया। ऐसे में बेटी के विवाह को लेकर उससे भेद किया जाना अनुचित है। इस मत के साथ लार्जर बैंच ने इन्दौर खण्डपीठ द्वारा दिए गए फैसले पर मुहर लगाते हुए मामला फिर से सुनवाई के लिए युगलपीठ को भेजा है।

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