जिले में शराबबंदी भी बेअसर, 4 महीने में बिक गई करीब 2 अरब की शराब

जिले में शराबबंदी भी बेअसर, 4 महीने में बिक गई करीब 2 अरब की शराब

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-08 10:22 GMT
जिले में शराबबंदी भी बेअसर, 4 महीने में बिक गई करीब 2 अरब की शराब

डिजिटल डेस्क,नागपुर। शराबबंदी के बाद भी शराब की बिक्री कम होने की बजाय और बढ़ गई है। हाइवे से 500 मीटर के दायरे में आने वाली शराब दुकानें बंद होने के बावजूद जिले में शराब की बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा है। शराब उत्पादन पर नागपुर जिले को पिछले चार महीने में 1 अरब 90 करोड़ 59 लाख 22 हजार 227 रुपए की शराब बिकी है।  

गौरतलब है कि शराब पीने वालों ने पिछले साल के शराब बिक्री के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। शराब बिक्री का ग्राफ हर महीने बढ़ता ही जा रहा है। आबकारी विभाग के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो अप्रैल 2016 से जुलाई 2016 इन 4 महीने में जिले को देशी, अंग्रेजी व बीयर से 1 अरब 29 करोड़ 47 लाख 73 हजार 541 रुपए का राजस्व मिला था। वहीं इस साल अप्रैल से जुलाई तक 1 अरब 90 करोड़ 59 लाख 22 हजार 227 रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ है। पिछले साल की अपेक्षा इस साल 61 करोड़ 11 लाख 48 हजार 686 रुपए का ज्यादा राजस्व मिला है।आबकारी विभाग के राजस्व में इस बार 47.20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 

1 अप्रैल 2017 से हाइवे से 500 मीटर के दायरे में आने वाली शराब दुकानें जैसे बीयर बार, वाइन शॉप व देशी शराब दुकानें बंद हुई हैं। नागपुर जिले में भी बड़े पैमाने पर शराब दुकानें बंद हुई हैं। शराब बंदी के बाद ऐसा माना जा रहा था कि शराब बिक्री पर इसका असर होगा और सरकारी राजस्व में कमी आएगी। ऐसा तो हुआ नहीं उल्टा शराब का उत्पादन बढ़ने के साथ ही राजस्व भी बढ़ता ही जा रहा है।

बिक्री पर नहीं, उत्पादन पर टैक्स 
सरकार शराब पर जो टैक्स लगाती है, वहीं आबकारी विभाग का राजस्व होता है। सरकार शराब बिक्री पर टैक्स नहीं लगाती। शराब उत्पादन पर टैक्स लगाती है। यानी शराब जिस फैक्ट्री में बनकर बाहर निकलती है, वहीं उस पर टैक्स लग जाता है। फैक्टरी से शराब जिस जिले में जाएगी,  राजस्व उस जिले को मिलता है। शराबी जितने ज्यादा होंगे, उतनी शराब की मांग ज्यादा होती है और फैक्ट्री से संबंधित जिले में शराब भेजी जाती है। 

शराब पर 60 फीसदी तक टैक्स 
शराब जितनी महंगी मिलती है, वास्तव में उतनी महंगी होती नहीं है। शराब पर करीब 60 फीसदी तक टैक्स लगाया जाता है। मोटे तौर पर देखे तो 100 रुपए की शराब की असल कीमत 40 रुपए होती है। इसके अलावा शराब दुकानदार अपने स्तर पर भी 10 रुपए ज्यादा लगाते हैं। एमआरपी से ज्यादा पैसे लेने पर किसी के आपत्ति जताने पर उसे परमिट लेकर आने के लिए कहते हैं। एमआरपी से 10 रुपए ज्यादा लेने वाले दुकानदारों पर आबकारी विभाग ठोस कार्रवाई करता दिखाई नहीं देता। आबकारी अधिकारियों की मिलिभगत के आरोप भी लगते रहते हैं। 

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