साहित्यकार ही रख सकते हैं ऐसे समय में सही बात : मधुप पांडे

साहित्यकार ही रख सकते हैं ऐसे समय में सही बात : मधुप पांडे

Anita Peddulwar
Update: 2018-04-18 07:40 GMT
साहित्यकार ही रख सकते हैं ऐसे समय में सही बात : मधुप पांडे

डिजिटल डेस्क,नागपुर। यह बड़ा ही दु:खद समय है, जब रेप  जैसे जघन्य अपराध में भी धर्म और पार्टी के नाम को आगे किया जा रहा है। दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति किसी भी धर्म और जाति का नहीं होता है, वह सिर्फ दोषी होता है, अपराधी होता है और उसे सजा हर हाल में मिलनी चाहिए। जब चारों ओर एक-दूसरे पर आरोप लगाए जा रहे हों तब उस संकट की घड़ी में एक साहित्यकार ही होता है, जो सही बात रख सकता है। समाज के सामने सचाई रख सकता है। यह बात कवि मधुप पांडे ने दैनिक भास्कर कार्यालय में चर्चा के दौरान कही। मंगलवार 17 अप्रैल को उनका जन्मदिन कार्यालय में मनाया गया। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य नागरिक डॉ. सिंधू गणवीर, एड.रमणिक कौर दडियाल, बिजय बिस्वाल, कल्पना शर्मा, बी.सी.भरतिया, पं.प्रशांत गायकवाड़ प्रमुखता से उपस्थित थे। सभी ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएंं दी। 

उन्होंने इस अवसर पर अपने चिर-परिचित अंदाज में साहित्यिक शैली में कहा कि बेटी का वास्तविक स्वरूप कुछ ऐसा है जैसे- 

मुख मंडल पर स्वर्ण आभा, जैसे ललित ललाम है बेटी
शीर्ष पर आशीष शुभमंगल, चरण कमल प्रणाम है बेटी
निर्झर-सी है निर्मल निश्छल, निर्विकार निष्काम है बेटी
सुबह बनारस-सी अतिसुंदर, सुखद अवध की शाम है बेटी
पतित पावन सुखद सुहावन, बहुत ही सुंदर नाम है बेटी
जब-जब उसकी ओर निहारो, लगता है चारों धाम है बेटी

लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य की स्थितियां बिगड़ती हुई दिखाई  पड़ रही हैं जिन्हें देखकर लगता है जैसे-
जवानी की  दहलीज पर 
कदम रखती हुई  कुंवारी बहन की 
तार-तार हो गई चोली को देखकर
विवाह योग्य अविवाहित बेटी के 
चारों ओर  मंडराती हुई
गिद्दाें की  टोली को देखकर 
मैंने  जी, हां मैंने 
अपनी बहन-बेटियों का 
घर से निकलना बंद कर दिया है,
क्योंकि आजकल मेरे दोस्तों की 
आंखों में भी  नाखून उग आए हैं।

मधुप पांडेय की रचनाओं में वर्तमान में मासूम बच्चियां जिस तरह दरिंदगी का शिकार हो रही है उसकी वेदना साफ तौर पर झलकती दिख रही है। अपनी रचनाओँ के माध्यम से बच्चियों की सुरक्षा पर चिंता जताई।

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