सरकारी कर्मचारी की दूसरी विधवा पत्नी भी पेंशन पाने की हकदार-हाईकोर्ट

 सरकारी कर्मचारी की दूसरी विधवा पत्नी भी पेंशन पाने की हकदार-हाईकोर्ट

Anita Peddulwar
Update: 2020-02-01 12:37 GMT
 सरकारी कर्मचारी की दूसरी विधवा पत्नी भी पेंशन पाने की हकदार-हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई।  सरकारी कर्मचारी की दूसरी विधवा पत्नी भी पेंशन पाने की हकदार है। बांबे हाईकोर्ट ने एक सेवानिवृत्त मुख्याध्यापक की विधवा पत्नी के पेंशन प्रदान करने के आग्रह को स्वीकार करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। मामला कोल्हापुर निवासी रुपा टकेकर (परिवर्तित नाम) से जुड़ा है। 

टकेकर को शिक्षा विभाग ने इस आधार पर पेंशन के लिए अपात्र ठहरा दिया था क्योंकि उसके पास इस बात का प्रमाण नहीं था कि वह अपने पति की उत्तराधिकारी है। लिहाजा उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  याचिका के मुताबिक टकेकर के पति रमेश टकेकर (परिवर्तित नाम) ने पहले 1969 में सपना नाम की महिला से विवाह किया था लेकिन बाद में रमेश ने 1981 में परंपरागत तरीके से सपना से तलाक ले लिया था। फिर रमेश ने 1983 में रुपा  से विवाह कर लिया था। शादी के बाद रमेश ने अपने सर्विस रिकार्ड में रुपा का नाम नॉमिनी के रुप में दर्ज कराया था।

साल 1991 में रमेश अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद उनकी पहली पत्नी ने गुपचुप तरीके से रमेश के सर्विस रिकार्ड से रुपा टकेकर का नाम हटा दिया। इस बीच नवंबर 2011 में रमेश का निधन हो गया।   पति के निधन के बाद टकेकर ने पेंशन के लिए आवेदन किया लेकिन उसे पेंशन के लिए अपात्र ठहरा दिया गया। इसलिए उसने कोर्ट में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति आर.वी मोरे व न्यायमूर्ति सुरेंद्र तावडे की खंडपीठ के सामने टकेकर की याचिका पर सुनवाई हुई। 

इस दौरान सहायक सरकारी वकील आर.एम शिंदे ने महाराष्ट्र सिविल सर्विस (पेंशन) नियमावली के प्रावधानों का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के पति ने दो विवाह किया था। याचिकाकर्ता (टकेकर) की दूसरी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। इसलिए याचिकाकर्ता के विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है और वह पेंशन की हकदार भी नहीं है। 

सरकारी वकील की इस दलील से असहमति व्यक्त करते हुए खंडपीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सिविल सर्विस (पेंशन) नियमावली की धारा 116(6ए) के प्रावधानों के तहत दूसरी विधवा पत्नी भी पेंशन की हकदार है। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को मुख्य रुप से वित्त विभाग के एक परिपत्र के आधार पर पेंशन के लिए अपात्र ठहराया गया है। जिसके मुताबिक कानूनी तरीके से सरकारी कर्मचारी से दोबारा विवाह करनेवाली महिला ही पेंशन की हकदार है। मामले से जुड़े तथ्यों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति ने अपनी पहली पत्नी से परंपरागत तरीके से तलाक ले लिया था। इस जानकारी पर सरकारी वकील ने कोई आपत्ति नहीं जाहिर की है।

याचिकार्ता के पति ने शादी के बाद अपनी दूसरी पत्नी का नाम सर्विस रिकार्ड में नामित(नॉमिनी) भी किया था। याचिकाकर्ता का सर्विस रिकार्ड में नाम 1992 तक था। जिसे बाद में हटवाया गया है। याचिकाकर्ता का नॉमिनी के रुप में उसके पति ने नाम दर्ज करवाया था। यह दर्शाता है कि सरकारी कर्मचारी ने याचिकाकर्ता से विवाह किया था। खंडपीठ ने पाया कि सरकारी कर्मचारी की पहली पत्नी का साल 2015 में निधन हो गया है। अब याचिकाकर्ता ही सरकारी कर्मचारी की विधवा पत्नी के रुप में जिंदा है। याचिकाकर्ता ने अपने विवाह का प्रमाणपत्र भी दिया है। इसलिए वह पेंशन की हकदार है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को पेंशन के लिए अपात्र ठहरानेवाले 25 नवंबर 2018 के निर्णय को रद्द कर दिया और शिक्षा विभाग को आठ सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता की पेंशन से जुड़ी औपचारिकता को पूरा करने का निर्देश दिया।

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