स्कूली दस्तावेजों में नाम की गलती, सैनिक भर्ती में आ रही बाधा, हाईकोर्ट पहुंचा मामला
स्कूली दस्तावेजों में नाम की गलती, सैनिक भर्ती में आ रही बाधा, हाईकोर्ट पहुंचा मामला
डिजिटल डेस्क, नागपुर। स्कूली दस्तावेजों में नामों की गलती का खामियाजा एक युवक को भुगतने की नौबत आन पड़ी है। फलस्वरुप युवक ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ की शरण ली है। वाशिम जिले के ब्राम्हणवाड़ा निवासी श्रीकृष्ण वासुदेव गंगावने के दसवीं कक्षा के दस्तावेजों में नाम की त्रुटि के कारण उसे चयनित नहीं किया जा रहा है। राज्य शिक्षा मंडल अमरावती तमाम प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी दस्तावेज में सुधार नहीं कर रहा है, जिसके कारण सेना में नियुक्ति रुकी हुई है।
मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर हाईकोर्ट ने मामले में प्रतिवादी आर्मी रिक्रुटिंग ऑफिस, राज्य शिक्षा मंडल अमरावती, वाशिम माध्यमिक शिक्षाधिकारी और नाथूराम नारायणदास मुंदडा विद्यालय मालेगांव को नोटिस जारी कर 3 अप्रैल तक जवाब मांगा है। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड. आनंद परचुरे और रोहित वैद्य ने पक्ष रखा।
यह है प्रकरण
याचिकाकर्ता के अनुसार उसने मार्च 2014 में हुई दसवी कक्षा की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने स्कूल से टीसी ली और 11वीं कक्षा में आर्ट्स में प्रवेश लिया। इधर उसके ध्यान में आया कि उसके 10वीं कक्षा की टीसी में पिता का नाम गलत छपा है। याचिकाकर्ता के अनुसार उसके पिता का नाम वासूदेव है, लेकिन टीसी में उसके पिता का नाम वसंता छपा आया था। ऐसे में उसने अपने स्कूल की मदद से अमरावती विभागीय शिक्षा उपसंचालक के पास जरूरी सुधार के लिए आवेदन किया था। उपसंचालक ने स्कूल को टीसी में जरुरी बदलाव करने की अनुमति दी। इसके बाद तमाम कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद सितंबर 2018 में गवर्मेंट गैजेट में भी इसका प्रकाशन किया गया।
इधर फरवरी में भारतीय सेना में भर्ती के लिए हुई जरूरी परीक्षाएं उसने उत्तीर्ण की। फिजिकल और मेंटल टास्क पूरे किए। उसे सेना में भर्ती के लिए कॉल लेटर भी आया, लेकिन बीती 10 मार्च को जब याचिकाकर्ता ने आर्मी कार्यालय में रिपोर्ट किया तो उसे जानकारी दी कि तकनीकी खामियों के कारण उसका चयन नहीं किया जा सकता। कारण दिया गया कि उसकी दसवीं की अंकसूची और टीसी में नाम मेल नहीं खा रहा है। ऐसे में याचिकाकर्ता ने अपने कनिष्ठ महाविद्यालय के नाम से जरूरी सुधार के लिए बोर्ड में आवेदन किया, लेकिन बोर्ड ने समय रहते यह सुधार नहीं किया। ऐसे में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली है।