नौसेना को मिली स्कॉर्पिन सीरीज की पहली कलवरी पनडुब्बी

नौसेना को मिली स्कॉर्पिन सीरीज की पहली कलवरी पनडुब्बी

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-21 15:05 GMT
नौसेना को मिली स्कॉर्पिन सीरीज की पहली कलवरी पनडुब्बी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सालों इंतजार के बाद नौसेना को स्कॉर्पिन सीरीज की पहली पनडुब्बी कलवरी मिल गई है। भारतीय नौसेना अगले माह एक बड़े समारोह में इस पनडुब्बी को अपने बेड़े में शामिल करने की तैयारी कर रही है। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के बीच नौसेना की मौजूदा पनडुब्बियां पुरानी पड़ रही हैं, इन स्थिति में आधुनिक सुविधाओं वाली यह पनडुब्बी मिलना भारतीय नौसेना की कार्यक्षमता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। मेक इन इंडिया के तहत बनी यह पनडुब्बी दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगा सकती है। यह टॉरपीडो और ऐंटी शिप मिसाइलों से हमले कर सकती है। 

नौसेना में पनडुब्बियों की भारी कमी

नौसेना के बेड़े में फिलहाल शिशुमार क्लास (जर्मन) की चार छोटी, जबकि सिंधुघोष क्लास (रशियन) की नौ बड़ी पारंपरिक पनडुब्बियां हैं, इनमें ज्यादातर 25 साल की औसत उम्र को पार कर चुकी हैं। नौसेना सूत्रों के अनुसार इनमें से आधी पनडुब्बियां ही एक समय में एक साथ उपयोग लायक मिलेंगी। स्कॉर्पिन सीरीज की कुल छह पनडुब्बियां देश में बनाने की योजना है। कलवरी का नाम टाइगर शार्क के नाम पर रखा गया है। कलवरी के बाद दूसरी पनडुब्बी खंदेरी की समुद्र में गतिविधियां जून में शुरू हो गई थीं। इसे अगले साल भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा। तीसरी पनडुब्बी वेला को इसी साल पानी में उतारा जाएगा। बाकी पनडुब्बियों को 2020 तक शामिल करने का लक्ष्य है। 

बड़ी योजना बनाई जानी चाहिए

भारत में सन 1999 में तैयार की गई योजना के अनुसार सन 2029 तक 24 पनडुब्बियां बनाई जानी हैं। पहली परियोजना P75 के तहत स्कॉर्पिन क्लास की छह पनडुब्बियों का निर्माण शुरू किया गया। अगली परियोजना P75i के तहत स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप मॉडल के तहत में छह पनडुब्बियां बनाई जाएंगी, जिसमें कोई निजी भारतीय कंपनी किसी विदेशी भागीदार के साथ मिलकर काम करेगी। हालांकि इसका टेंडर जारी होने में समय लग सकता है। पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि भारत को सन 2050 तक के लिए चरणबद्ध योजना बनाने की जरूरत है। चीन के पास 70 पनडुब्बियां बताई जाती हैं। 

परियोजना में हुआ विलंब

स्कॉर्पिन पनडुब्बियों की परियोजना मुंबई स्थित मझगांव डॉक शिप बिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) और फ्रांस की कंपनी नवल ग्रुप (पूर्व में डीसीएनएस) के सहयोग से चलाई जा रही है। फ्रांसीसी कंपनी टेक्नॉलजी ट्रांसफर भी करेगी। इस परियोजना में पांच साल का विलंब हो चुका है। सन 2005 में रक्षा मंत्रालय ने फ्रांस की कंपनी डीसीएनएस से 23,652 करोड़ रुपये का अनुबंध किया था। कलवरी को सन 2012 में ही नौसेना में शामिल करने की योजना थी। सूत्रों के मुताबिक ऑपरेशन के लिए पूरी तरह से तैयार पनडुब्बी को ही नौसेना को सौंपा जाएगा, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। यही वजह है कि कलवरी के नेवी में शामिल होने में विलंब हुआ है। 

डाटा लीक होने की खबर

स्कॉर्पिन क्लास पनडुब्बियों का डेटा लीक होने की रिपोर्ट पिछले साल अगस्त में सामने आई थी। इसके बावजूद कलवरी का ट्रायल जारी रहा। यह माना गया था कि डेटा भारत से लीक नहीं हुआ। कुछ समय पहले नौसेना ने कलवरी से ऐंटी शिप मिसाइल की पहली बार फायरिंग की, जो सफल रही। ट्रायल में कलवरी का डीप डाइव टेस्ट भी सफल रहा है। इससे पता चलता है कि वह गहराई में पानी के वजन का दबाव झेल सकती है। सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम वैक्यूम टेस्टिंग का काम एक ही दिन में एक ही बार में पूरा हो हो गया। इसमें यह देखा जाता है कि बाहरी हवा पनडुब्बी अंदर न आ सके। 

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