विधानसभा चुनाव 2023: छत्तीसगढ़ के धमतरी में कई राजनीतिक दांव पेंच, धम्म की धरती पर बारी बारी से मिलता है बीजेपी कांग्रेस को मौका

  • धम्म की धरती धमतरी
  • प्राचीन काल में पवित्र कुंड के नाम से था चर्चित
  • सिहावा, धमतरी ,कुरूद तीन विधानसभा सीट

ANAND VANI
Update: 2023-09-10 12:12 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ का धमतरी जिला धम्म और तरई वाक्यांश से मिलकर बना हुआ है। धमतरी का नाम धम्म तरई से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ धम्म का मैदान । यह नाम क्षेत्र की बौद्ध जड़ों का संकेत है। धमतरी छत्तीसगढ़ क्षेत्र के उपजाऊ मैदानों में स्थित है। धमतरी जिले में दो विधानसभा सीट धमतरी और सिहावा आती है। सिहावा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। वहीं धमतरी और कुरूद सामान्य सीट है।

धमतरी विधानसभा सीट

धमतरी विधानसभा में कई राजनीतिक दांव पेंच देखेने को मिलते है। चुनाव में मतदाताओं के मन पर कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां जाति का मिलाजुला समीकरण देखने को मिलता है। को नकारते हुए मतदाता हालांकि 2008 के परिसीमन के बाद जनता का मूड़ कई इलाकों में एक जैसा नजर आता है। सीट पर साहू समाज का बोलबाला है। यहां करीब 27 फीसदी मतदाता साहू समाज के बताए जाते है। 11 फीसदी आदिवासी वोटर्स भी चुनाव पर असर डालते है। जनता के विश्वास पर खरे उतरने वाले प्रत्याशी पर ही जनता विश्वास दिखाई दत है। कृषि के साथ साथ व्यापार का एक बड़ा केंद्र है। चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच दिखाई देता है।

2003 में बीजेपी से इंदर चोपड़ा

2008 में कांग्रेस से गुरूमुख सिंह होरा

2013 में कांग्रेस से गुरूमुख सिंह होरा

2018 में बीजेपी से रंजना साहू

सिहावा विधानसभा सीट

सिहावा विधानसभा का ज्यादातर इलाका जंगल से घिरा हुआ है। अनुसूचित जनजाति आरक्षित इस विधानसभा सीट पर आदिवासी बाहुल होने के साथ साथ ओबीसी की संख्या भी बहुतायत है। ओबीसी मतदाता भी चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। यहां की जनता बारी बारी से बीजेपी कांग्रेस को मौका देती है। तीसरे दल का उम्मीदवार बीजेपी कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुसीबत बन जाता है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी चुनाव में दम खम तो दिखाती है, लेकिन उसे जीत में तब्दील करने में नाकाम होती है। सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा बदहाल स्थिति में है। बिजली की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी क्षेत्र की अहम प्रॉब्लम है।

2003 में बीजेपी से पिंकी ध्रुव

2008 में कांग्रेस से अंबिका मरकाम

2013 में बीजेपी से श्रवण मरकाम

2018 में कांग्रेस से लक्ष्मी ध्रुव

कुरूद विधानसभा सीट

कुरूद विधानसभा सीट सामान्य सीट है। यहां से 2003, 2013, 2018 में बीजेपी ने और 2008 में कांग्रेस ने जीत हासिल की। कुरूद की पहचान पूरे प्रदेश में सूखी मछली की मंडी के रूप में है। पैसा और पावर यहां की पॉलिटिक्स को तय करते है। परिसीमन के बाद मगरलोड इलाके के 90 गांव इस विधानसभा में अलग हुए और भाखरा क्षेत्र के 42 गांव इसमें शामिल किए गए थे। तब बीजेपी को यहां झटका लगा था। लेकिन बाद के चुनाव में फिर से बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। विधानसभा में साहू वोटर्स की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन कुर्मी समुदाय का मतदाता भी चुनाव को प्रभावित करता है। कृषि,बेरोजगारी,अवैध उत्खनन, स्वास्थ्य सुविधा औऱ भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे हावी है।

2003 में बीजेपी से अजय चंद्राकर

2008 में कांग्रेस से लेखराम साहू

2013 में बीजेपी से अजय चंद्राकर

2018 में बीजेपी से अजय चंद्राकर

 छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

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