छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: महासमुंद के सियासी मैदान में मतदाता करते है हर बार बदलाव, नहीं चलता जातियों का जादू

महासमुंद के सियासी मैदान में मतदाता करते है हर बार बदलाव, नहीं चलता जातियों का जादू
  • रायपुर संभाग का जिला महासमुंद
  • महासमुंद में चार विधानसभा सीट
  • बारी बारी से बीजेपी कांग्रेस पर जनता भरोसा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल 2023 के अंत में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले है। चुनाव में कुछ महीने ही बाकी है। चुनाव से पहले हम आपको छत्तीसगढ़ राज्य के साथ साथ वहां की हर विधानसभा सीट की चुनावी नब्ज टटोलते हुए वहां के सियासी गणित के बताएंगे। आपको बता दें मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य का पुनर्गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ था। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में 33 जिले व पांच संभाग बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग,सरगुजा,और बस्तर है। 90 विधानसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ राज्य में 51 सीटें सामान्य, 10 सीटें एससी, 29 सीटें एसटी के लिए आरक्षित है। 2003,2008 और 2018 में बीजेपी की सरकार बनी और रमन सिंह सीएम। जबकि 2018 में कांग्रेस की ओर से भूपेश बघेल प्रदेश के मुखिया बने।

प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। आधिकारिक दस्तावेज में छत्तीसगढ़ का प्रथम प्रयोग 1795 में हुआ था। लेकिन छत्तीस किले की वजह से राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। प्रदेश अपनी अद्वितीय , जीवंत संस्कृति की सांस्कृतिक विरासत में समृध्द है। क्षेत्र में कई प्रकार की जनजातियां पाई जाती है।

90 विधानसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ में वतर्मान में कांग्रेस पार्टी की सरकार है। राजनैतिक दलों की बात की जाए तो प्रदेश में कांग्रेस, बीजेपी के साथ जोगी कांग्रेस और बसपा का भी प्रभुत्व है। बंटवारे के समय छत्तीसगढ़ के मुखिया कांग्रेस के अजीत जोगी थे। 2003 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने डॉ रमन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। रमन सिंह ने लगातार तीन बार सरकार चलाई। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीतकर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व में सरकार बनाई।

दो महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले है। सभी राजनीतिक पार्टियां जोर शोर से चुनाव में जुटी हुई है। बीजेपी ने अपनी चुनावी तैयारियों को धार देने के लिए छत्तीसगढ़ में 21 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। चुनावी माहौल को ठीक ठाक से समझने के लिए हम आपको रायपुर संभाग के महासमुंद जिले के सियासी, जातीय और चुनावी समीकरण के बारे में बताएंगे। महासमुंद जिले में महासमुंद समेत सरायपाली,बसना,खल्लारी चार विधानसभा क्षेत्र आते है।

महासमुंद जिले के मतदाता बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस को मौका देते आए है। 2003 में बीजेपी ने जिले की चारों विधानसभा सीटों पर कब्जा किया था, वहीं 2008 के विधानसभा चुनाव में बाजी पलटते हुए चार सीटें कांग्रेस के खाते में गई। 2013 में भी फिर करवट बदली और बीजेपी के पाले में तीन सीटें आई, जबकि एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। 2018 में चारों सीटें पर कांग्रेस के खाते में आई। इस जिले के जातीय समीकरण की बात की जाए तो जातीय समीकरण यहां के बड़े उलझे हुए है। जातियाों का साधने का काम हर दल करता है। लेकिन वोटर्स हर बार अपने भरोसे को बदलते हुए अलग अलग पार्टी पर विश्वास करता है।

महासमुंद विधानसभा सीट

महासमुंद विधानसभा सीट पर सामान्य वोटर्स 22 फीसदी है। जबकि साहू समाज का प्रभाव अधिक है। इलाके में 50 फीसदी ओबीसी वोटर्स है। जिसमें से 20 फीसदी साहू, 12 फीसदी यादव है। जबकि एसटी वोटर्स 17 फीसदी है। जिसमें गोंड़ समुदाय के 12 फीसदी मतदाता है। एससी मतदाताओं की संख्या 11 प्रतिशत है। जाति के आधार पर ही प्रमुख दल चुनाव में चेहरे को मौका देते है। यहां किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं है। 2013 के चुनाव में यहां की जनता ने निदर्लीय चेहरे पर जीत की मोहर लगाई। सांस्कृतिक धरोहर से समृद्ध महासमुंद समोवंशीय सम्राट द्वारा शासित दक्षिण कोश की राजधानी था। यह ज्ञान के केंद्र के रूप में विख्यात था।

2003 में बीजेपी से पूनम चंद्राकर

2008 में कांग्रेस से अग्नि चंद्राकर

2013 में निर्दलीय डॉ विमल चोपड़ा

2018 में कांग्रेस से विनोद सेवन

सरायपल्ली विधानसभा सीट

सरायपल्ली विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। अब तक इस सीट पर दो बार कांग्रेस और दो बार बीजेपी को जीत मिली है। विधानसभा क्षेत्र में कोई भी विधायक दो बार रिपीट नहीं हुआ है। विधानसभा सीट का ज्यादातर हिस्सा जंगल से ढका हुआ है। गाड़ा समुदाय का क्षेत्र में दबदबा है। हालांकि अघरिया और कोलता समुदाय के मतदाताओं की संख्या काफी तादाद में है। जो चुनाव को किसी भी दिशा में मोड़ने की ताकत रखते है। 24 फीसदी एसटी, 11 फीसदी एससी, 18 फीसदी अघरिया और 16 फीसदी कोलता समाज के वोटर्स है।

2003 में बीजेपी से त्रिलोचन पटेल

2008 में कांग्रेस से डॉ हर्षवर्धन भारद्वाज

2013 में बीजेपी से रामलाल चौहान

2018 में कांग्रेस से किस्मत लाल नंद

बसना विधानसभा सीट

महासमुंद जिले की बसना सीट पर कोलता और अघरिया समाज का दबदबा रहा है। दोनों ही समुदाय के वोटर्स चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते है। बसना विधानसभा सीट सामान्य सीट है। बसना सीट कांग्रेस का गढ़ है। हालांकि 2003 में बीजेपी ने इस सीट को कांग्रेस के कब्जे से मुक्त करके इतिहास रचा था। 2003 और 2013 में बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की थी, जबकि 2008 और 2018 में कांग्रेस ने।

बसना सीट अनुसूचित जाति बाहुल्य सीट है। एसटी वोटर्स की संख्या यहां करीब 65 हजार है। जबकि कोलता समाज के वोटर्स 40 हजार, अघरिया समुदाय के 30 हजार मतदाता है। यहां बंपर वोटिंग देखने को मिलती है। जनता जाति कि अपेक्षा विकास पर अधिक फोकस करती है।

सीमेंट कंक्रीट का विकास भले हीविधानसभा में नजर आता है, लेकिन आज भी क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। पेयजल व सिंचाई संकट आज भी बना हुआ है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से लोग परेशान है। इलाके की ज्यादातर जनता और किसान वनों पर निर्भर है। शिक्षा और स्वास्थ्य बदहाल स्थिति में है। रोजगार की कमी के चलते लोग पलायन को मजबूर होते है।

2003 में बीजेपी से डॉ त्रिविकराम भोई

2008 में कांग्रेस से देवेंद्र बहादुर सिंह

2013 में बीजेपी से रूपकुमारी चौधरी

2018 में कांग्रेस से देवेंद्र बहादुर सिंह

खल्लारी विधानसभा सीट

खल्लारी इलाके की जनता परिवर्तन पर विश्वास रखती है। यहां की जनता ने किसी एक नेता के पैर यहां जमने नहीं दिए है। किसी एक दल के नेता का दबदबा लंबे समय से यहां नहीं होने दिया गया है। एक दिलचस्प किस्सा भी यहां देखने को मिलता है। आदिवासी बाहुल्य इलाके होने के बाद भी यहां से कोई आदिवासी नेता विधायक नहीं बना है। सियासी इतिहास की बात की जाए तो जनता का मूड़ यहां बदलता रहा है। जाति समीकरण की बात की जाए तो इलाके में 34 फीसदी अनुसूचित जनजाति, 10 फीसदी एससी,50 फीसदी ओबीसी, 4 फीसदी सामान्य वोटर्स है।

खल्लारी में शिक्षा के लिए स्कूलों की कमी है, जहां स्कूल है वहां टीचर नहीं है। यहीं हाल स्वास्थ्य सुविधाओं का है। चिकित्सालय में डॉक्टर नहीं है। किसानों को सिंचाई के लिए पानी की कमी है। जनता पेयजल के परेशान है। रोजगार परक शिक्षा की कमी के चलते शिक्षित युवा बेरोजगार घूम रहा है। आस्था का धाम मां खिल्लारी कई समस्याओं से एक साथ जूझ रहा है।

2003 में बीजेपी से प्रीतम सिंह दीवान

2008 में कांग्रेस से परेश बगबहरा

2013 में बीजेपी से चुन्नी लाल साहू

2018 में कांग्रेस से द्वारिकाधीश यादव

Created On :   9 Sep 2023 9:58 AM GMT

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