सड़क पर उतरा विपक्ष, मायावती सिर्फ ट्वीट तक सीमित

लखीमपुर खीरी हिंसा सड़क पर उतरा विपक्ष, मायावती सिर्फ ट्वीट तक सीमित

Anupam Tiwari
Update: 2021-10-07 19:03 GMT
सड़क पर उतरा विपक्ष, मायावती सिर्फ ट्वीट तक सीमित

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद पूरे देश में आक्रोश है। विपक्षी पार्टियां बीजेपी सरकार को घेरने में जुट गई है व यूपी की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहीं हैं। बता दें कि लखीमपुर खीरी में रविवार को हुई हिंसा में अब तक 8 लोगों की जान जा चुकी है। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष पर तिकुनिया में प्रदर्शन कर रहे किसानों को गाड़ी से रौंदने का आरोप है। इस मामले में सियासत तेज हो गई है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस अवसर को भुनाने में कोई कसर तक नहीं छोड़ी, यूपी में सरकार के विरोध में कांग्रेस के दो-दो मुख्यमंत्री उतर आए और  लखीमपुर खीरी मुद्दे  को और तूल दे दिया। हालांकि पंजाब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी तो प्रियंका व राहुल गांधी के साथ लखीमपुर खीरी जाकर मृतक परिजन से मुलाकात कर पंजाब सरकार की तरफ से 50-50 लाख रूपए की आर्थिक मदद करने का  एलान भी किया। लेकिन छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल लखनऊ एयरपोर्ट से ही वापस हो गए थे तथा बाद में छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से भी मृतक चार किसान व पत्रकार परिजन को 50-50 रूपए देने का एलान किया था। राहुल गांधी और प्रियंका पूरी ताकत के साथ इस हिंसा को लेकर आक्रामक दिखे और यूपी सरकार को बैकफुट में लाकर खड़ा कर दिया। आखिरकार अब यूपी पुलिस ने केंद्रीय मंत्री के बेटे को शुक्रवार को पुलिस के सामने हाजिर होकर अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस भी जारी कर दिया है। बता दें कि केंद्रीय मंत्री के बेटे के खिलाफ पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी है।

आगामी विधान सभा चुनाव को देखते हुए यूपी की सभी राजनीतिक पार्टियां अब बहती गंगा में हाथ धोने के लिए जुट गई हैं। प्रियंका गांधी की यूपी में सक्रियता से सपा व बसपा में बेचैनी हो गई है। जहां यूपी में बसपा व सपा मजबूत विपक्ष मानें जाते थे, वहीं अब कांग्रेस पार्टी आगे की लाइन में आकर खड़ी हो गई है।  सही मायने तो लखीमपुर खीरी घटना में  पीड़ित परिजनों के लिए न्याय दिलाने की असली लड़ाई प्रियंका गांधी ने लड़ी। यहां तक कि प्रियंका गांधी को तीन दिन तक पुलिस हिरासत में रखा गया था। आगामी विधान सभा चुनाव में सपा और बसपा  अबकी बार अपनी जीत को लेकर आश्वस्त तो है लेकिन जमीन पर राजनीतिक लड़ाई लड़ने में फिसड्डी साबित दिख रहीं हैं।

गुरूवार को अखिलेश यादव येन केन प्रकारेण मृतक परिजनों से मुलाकात किया और वहीं से घोषणा किया कि मेरी सरकार बनते ही  मृतक परिजनों को दो-दो करोड़ व सरकारी नौकरी दी जाएगी। खैर, अखिलेश यादव ने अपनी खानापूर्ति कर दी लेकिन मायावती अभी तक पीड़ित परिजनों से मिलना उचित नहीं समझा और केवल ट्वीटर पर ही लखीमपुर घटना पर दुख बयां की। अब सवाल राजनीतिक गलियारों में सवाल उठना शुरू हो गए है कि आखिर में मायावती बीजेपी सरकार के खिलाफ खुलकर जमीन पर  क्यों नहीं उतर रहीं है? तो जवाब यही आ रहा कि मायावती बीजेपी से ज्यादा सपा और कांग्रेस को अपना विरोधी मानती है। उनके तार कहीं न कहीं बीजेपी से जुड़े हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि उनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति की तलवार लटकती रहती है।

बसपा की रणनीति सड़क पर उतरना नहीं

मायावती के ट्वीट भी सरकार की उदासीनता पर होते हैं। उनके ट्वीट भी कभी बीजेपी के प्रति बहुत आक्रामक नहीं होते हैं। वैसे भी बसपा की रणनीति कभी भी सड़क पर उतरने की नहीं रही है। कांशीराम भी गांव-गांव घूमकर संगठन बनाते थे लेकिन सड़क पर नहीं उतरते थे। आज भी पार्टी की यही रणनीति है। मायावती को विश्वास है कि उनका वोटबैंक कहीं नहीं जाएगा। लेकिन इस तरह की राजनीति मायावती को भारी पड़ सकती है।

  मोदी पर हमलावर होना पड़ सकता है भारी

ऐसा माना जाता है कि बीएसपी सुप्रीमो को पता है कि बीजेपी और उनका वोट बैंक अलग है। बीजेपी को पिछड़ा और सवर्ण वोट मिलता है। मायावती का अपना दलित वोट बैंक हैं। इस बार वह दलित-ब्राह्मण कॉम्बिनेशन लेकर चल रही हैं। मायावती ने पार्टी ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के लिए पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन भी किया, जिसका नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने किया था। यह सही है कि ब्राह्मण कहीं न कहीं यूपी सरकार से नाराज है लेकिन इसके बावजूद वह फिलहाल मोदी की बुराई नहीं सुनने के मूड में नजर नहीं आता।

केंद्रीय जांच एजेंसियों का भय

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीति वोट के लिए होती है। मायावती का अपना वोट बैंक है। मायावती सड़क पर उतर भी जाएं तब भी उनके वोट बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मायावती को ऐसी राजनीतिक की जरूरत नहीं है। वह अच्छे से जानती हैं कि सड़क पर उतरने या आक्रामक होने से उन्हें कोई राजनीति लाभ नहीं हो सकता है। इसके अलावा जिस भी नेता ने साफ-सुथरी राजनीति नहीं की है, वह सब डरे हुए हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों की तलवार ऐसे नेताओं पर लटकी है, मायावती भी उनमें से एक हैं, वह जानती हैं कि अगर वह बीजेपी को लेकर ज्यादा हमलावर हुईं तो उन्हें नुकसान हो सकता है और जांच एजेंसियों की रडार में आ सकती हैं।

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