हिमाचल प्रदेश सियासत: बगावत का सुर छेड़कर नरम पड़े विक्रमादित्य सिंह, सुबह दिया इस्तीफा शाम को वापस लिया, जानें वजह

  • विक्रमादित्य सिंह ने राज्यसभा चुनाव के एक दिन बाद दिया था इस्तीफा
  • सीएम सुक्खू के मनाने के बाद फैसला वापस लिया
  • पिता के अनादर और सीएम के नेतृत्व से थे नाराज

Anchal Shridhar
Update: 2024-02-28 18:44 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले कांग्रेस नेता विक्रमादित्य थोड़े समय बाद ही नरम पड़ गए। उन्होंने राज्यसभा चुनाव के नतीजे आने के एक बाद बुधवार को सुबह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने राज्यसभा चुनाव में हार के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खू जिम्मेदार बताते हुए उन पर विधायकों के प्रति लापरवाही बरतने और अपने दिवंगत पिता वीरभद्र सिंह का अनादर करने का आरोप लगाया था। हालांकि उन्होंने कुछ ही समय बाद अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। बता दें कि विक्रमादित्य हिमाचल की सुक्खू सरकार में लोक निर्माण विभाग मंत्री हैं।

इस्तीफा वापस लेने की वजह बताते हुए विक्रमादित्य ने कहा, ''मैंने पार्टी की ओर से भेजे गए पर्यवेक्षकों से बात की है। संगठन एक व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण है। संगठन को मजबूत रखना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। पार्टी के व्यापक हित और पार्टी की एकता के लिए मैं अपने इस्तीफे पर दबाव नहीं डालूंगा जिसे मुख्यमंत्री ने आज पहले खारिज कर दिया था।'' कहा जा रहा है कि सीएम सुक्खू ने ही उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने खुद मीडिया से बात करते हुए कहा था कि विक्रमादित्य उनके भाई जैसे हैं और वो उनसे इसको लेकर बात कर लेंगे। उन्होंने कहा था, ''उनसे (विक्रमादित्य सिंह) बात कर लेंगे, ऐसी कोई बड़ी बात नहीं। वो हमारे भाई हैं, वो मेरे साथ कई बार बात कर चुके हैं। अगर ऐसी बात होती है तो उस पर उनसे बात कर लेंगे, उसमें कोई बड़ी बात नहीं है।''

इस्तीफा देते समय कही थी ये बात

मंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा करते समय विक्रमादित्य ने कहा था, ''मैं अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री और राज्यपाल को सौंप रहा हूं। मुझे अपमानित और कमजोर करने की कोशिश की गई लेकिन आपत्तियों के बावजूद मैंने सरकार का समर्थन किया।'' उन्होंने आगे कहा था कि वह राज्यसभा चुनाव के दौरान हुए घटनाक्रम से पूरी तरह आहत हैं। विक्रमादित्य ने कहा, ''कांग्रेस पार्टी ने लोगों से वादे किए थे और उन वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी हमारी है और मैं अपने समर्थकों से सलाह करने के बाद अपनी आगे की रणनीति तय करूंगा।'' इसके अलावा उन्होंने कहा था कि विधानसभा उनके पिता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नाम पर लड़ा गया था। उस समय हर पोस्टर और होर्डिंग पर उनकी तस्वीर थी। लेकिन जीत बाद जब उनकी प्रतिमा लगाने की बात आई तो सरकार इसके लिए जमीन तक उपलब्ध नहीं करा पाई।

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