कच्चेमाल की कीमतों में इजाफा होने से तिरूप्पुर के वस्त्र उद्योग के छह लाख श्रमिकों के समक्ष दो वक्त की रोटी का संकट
- पिछले वर्ष कपास यार्न की कीमत 260 रुपए थी जो इस वर्ष 400 रुपए प्रतिकिलो ग्राम हो गई है
डिजिटल डेस्क, चेन्नई। दक्षिण भारत की गारमेंट राजधानी कहे जाने वाले तिरूप्पुर में लगभग दो हजार औद्योगिक इकाईयां है जो विश्व में अपने उत्पादों का निर्यात करती है और इनके साथ बीस हजार ठेकेदार भी जुड़े हैं।
लेकिन कच्चे माल की कीमतों में इजाफा होने के कारण इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है और इनमें काम करनेवाले छह लाख कामगारों के समक्ष अब दो वक्त की रोटी जुटाने का संकट पैदा हो गया है।
यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कामगारों की संख्या छह लाख है और अब इनके सामने आजिविका का संकट आ गया है क्योंकि कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने का असर पड़ेगा।
तिरूप्पुर एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजा ए षण्मुगन ने आईएएनएस को बताया कि कपास तंतुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्वि हुई है और कपास तंतुओं कीमतों में जोरदार बढ़ोत्तरी होने के बाद इनकी कीमतें पिछले साल की तुलना में 140 रूपए प्रतिकिलो अधिक हो गई है पिछले वर्ष कपास यार्न की कीमत 260 रुपए थी जो इस वर्ष 400 रुपए प्रतिकिलो ग्राम हो गई है।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार कपास तंतुओं की कीमतों में इजाफा होने से इनके मूल्य निर्धारण में काफी अंतर आया है और इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय निर्यातकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा हैं और बंगलादेश तथा वियतनाम के निर्यातकों को फायदा हो रहा है।
उन्होंने मांग की है कि केन्द्र सरकार को कपास यार्न पर लगाई गई प्रति किलोग्राम 11 प्रतिशत आयात ड़्यूटी को वापिस लेना चाहिए।
गारमेंट एक्सपोर्ट से जुड़े एक अन्य कारोबारी मैजेस्टिक कृष्णन ने बताया कि डाई और रसायनों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं और इसका असर बाजार पर पड़ना लाजिमी है।
उन्होंने आईएएनएस को बताया हमारे पास यूरोप और अन्य बाजारों से आर्डर है लेकिन कीमतों के मामले में अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछड़ रहे है और बंगलादेश तथा वियतनाम से पिछड़ हमें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। यहां कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से हमें उन देशों की तुलना में काफी नुकसान हो रहा है।
कीमतों में बढ़ोत्तरी के कारण कई उद्योगों ने बाहर से आर्डर लेने बंद कर दिए हैं क्योंकि आखिरकार निर्यातकों ही इसका घाटा उठाना पड़ता है और हमारे काम धंधे चौपट हो रहे हैं।
तिरूप्पुर की एक अन्य फैक्टरी में काम करने वाले कामगार कुरूपासामी ने कहा आखिर में हमें ही भुगतना पड़ता है क्योंकि अगर इन कंपनियों ने काम करना बंद कर दिया तो हम लोगों पर इसका सीधा असर पड़ेगा । हम जैसे दिहाड़ी मजदूर को ही इसका परिणाम भुगताना पड़ रहा है जो इस काम के अलावा कोई अन्य काम के बारे में नहीं जानते हैं। हमारी रोजी रोटी का जरिया ये ही कंपनियां है और अगर ये बंद हो गई अनेक परिवार तबाह हो जाएंगे क्योंकि हमारे पास आमदनी का कोई अन्य रास्ता नहीं है।
गौरतलब है कि तिरूप्प्पुर में अनेक गारमेंट इंडस्ट्री हैं जो सभी अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के लिए काम करती हैं क्योंकि यहां मजदूरी सस्ती है और इसी वजह यह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। लेकिन अब कीमतें बढ़ने से इस कारोबार में गिरावट आ सकती है।
गौरतलब है कि तिरूप्पुर गारमेंट इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक है और यहां के कारोबारियों का कहना है कि अगर सरकार ने तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया तो यह क्षेत्र तबाह हो जाएगा और यहां काम करने वाले छह लाख लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। इससे न केवल विदेशी मुद्रा का नु़कसान उठाना पड़ेगा बल्कि इस उद्योग की पहचान भी नष्ट हो जाएगी।
(आईएएनएस)
Created On :   6 Jan 2022 4:00 PM GMT