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RNTU संवाद कार्यक्रम: गुरु शिष्य परंपरा पर भारतीय शिक्षा मंडल एवं आरएनटीयू के संयुक्त तत्वावधान में संवाद कार्यक्रम का आयोजन

- व्यास पूजन/ गुरु पूर्णिमा पर संवाद कार्यक्रम का रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में हुआ आयोजन
- गुरु शिष्य परंपरा सभ्यता एवं संस्कृति की परंपरा है - डॉ हरिहर गुप्ता, प्रांत अध्यक्ष, भारतीय शिक्षा मंडल मध्य भारत प्रांत
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी भी गुरु शिष्य परंपरा का नहीं हो सकती है विकल्प- डॉ आर पी दुबे, कुलपति
- प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति विद्यार्थी को जिज्ञासु बनने की प्रेरणा देती है - डॉ संगीता जौहरी , कुलसचिव
भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल तथा भारतीय शिक्षा मंडल मध्य भारत प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में गुर पूर्णिमा के उपलक्ष्य में व्यास पूजा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें गुरु शिष्य परंपरा पर संवाद एवं परिचर्चा का आयोजन भी रखा गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर (डॉ) हरिहर गुप्ता, प्रांत अध्यक्ष भारतीय शिक्षा मंडल तथा विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रोफेसर मनोज सिंह, एक्सीलेंस महाविद्यालय भोपाल उपस्थित रहे। इस अवसर पर प्रोफेसर हरिहर गुप्ता ने कहा कि जीवन में गुरु का महत्व भगवान से भी अधिक होता है इसीलिए कहा भी गया है 'गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाएं , बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।' वह गुरु ही है जो एक मनुष्य की चेतना को इस स्तर तक विकसित कर देता है कि साधारण सा आदमी भी ईश्वर को पा जाता है। गुरु ही व्यक्ति को अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है। समाज में जब-जब भी अनीति और अनैतिकता फैली है इस देश के गुरुओं अर्थात शिक्षकों ने ही उन्हें दूर करने का बीड़ा उठाया है। चाणक्य और चंद्रगुप्त का उदाहरण हम सबके सामने है। वहीं प्रोफेसर मनोज सिंह ने कहा कि विद्यार्थी अपने गुरुओं का सम्मान करें और उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करते रहें तभी विद्यार्थियों का जीवन सफल और सार्थक हो सकता है।
विश्वविद्यालय की कुलसचिव डॉ संगीता जौहरी ने कहा कि आज के समय में छात्र छात्राओं के भीतर की जिज्ञासा समाप्त हो रही है। आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनके भीतर कोई सवाल ही नहीं है। आज हर एक विद्यार्थी को यह सवाल खुद से करना चाहिए कि उनके भीतर सवाल क्यों नहीं हैं? सवाल ही मनुष्य को चैतन्य बनाते हैं अन्यथा फिर पशुओं और मनुष्यों में अंतर ही क्या रहा?
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आर पी दुबे ने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा से जितना छात्र छात्राओं को सीखने की आवश्यकता है उतना ही शिक्षकों को भी सीखने की आवश्यकता है। आजकल कृत्रिम बुद्धिमत्ता का बढ़ता प्रयोग कहीं न कहीं गुरु शिष्य के संबंधों को कमजोर कर रहा है लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एआई कभी भी गुरु शिष्य परंपरा की बराबरी नहीं कर सकती। एआई सिर्फ आपको जानकारी दे सकती है परंतु असली अनुभवजन्य ज्ञान तो सिर्फ और सिर्फ गुरु ही दे सकते हैं।
कार्यक्रम में मुख्य उपस्थिति डॉ दुर्गा पांडे, प्रिंसिपल इंस्टीट्यूट आफ फार्मेसी, डॉ नीलेश शर्मा, डीन विधि संस्थान, डॉ नाईश ज़मीर, विभागाध्यक्ष, डॉ संगीता आम्टे व डॉ प्रीति शर्मा मानविकी एवं उदार कला संकाय, डॉ अतुल लूंबा, डॉ रेखा गुप्ता कार्यक्रम अधिकारी राष्ट्रीय सेवा योजना सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्रा उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन श्री गब्बर सिंह व सुश्री माधवी पाटकर ने किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में मुख्य भूमिका रिपांशु कुमार, वैष्णवी, आकाश जाटव, पायल साहू, माक्शी ढकोलिया इत्यादि की रही।
Created On :   17 July 2025 7:50 PM IST