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Nagpur News: डॉ. भागवत ने कहा - भारत में एकता में ही विविधता है, श्री ज्ञानेश्वरी के अंग्रेजी संस्करण का विमोचन

- भक्ति आधारित ज्ञान और कर्म का आह्वान
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का बयान
- भारत में एकता में विविधता है
Nagpur News. भक्ति आधारित ज्ञान और कर्म का आह्वान करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि भारत में एकता में विविधता है। भले ही यह कहा जाता रहा है कि इस देश में विविधता में एकता है, लेकिन यहां एक से ही अनेक की सृष्टि हुई है। एक की अभिव्यक्ति विविध रूपों में हुई है। एक पेड़ के सभी पत्ते समान आकार और रंग के नहीं होते हैं, फिर भी हम पत्ते को देखकर जान लेते हैं कि किस वृक्ष का पत्ता है। यह एकत्व की अनुभूति है। रविवार को साइंटिफिक सभागृह लक्ष्मी नगर में आयोजित संत ज्ञानेश्वर रचित श्री ज्ञानेश्वरी के अंग्रेजी संस्करण के विमोचन समारोह में डॉ. भागवत बोल रहे थे।
भाव बिना भगवान नहीं
सरसंघचालक ने कहा कि भक्ति अगर पक्षी है, तो उसका एक पंख ज्ञान है और दूसरा पंख कर्म है। ज्ञान और कर्म के संयोग से ही परम पद प्राप्त होता है। समारोह मंच पर डॉ. सुरेंद्र सूर्यवंशी, डॉ. तुकाराम गरुड, डॉ. मीरा गरुड उपस्थित थे। डॉ. भागवत ने आगे कहा कि भारत में ही सत्य की खोज हुई। यहां के ऋषि-मुनियों और संतों ने पीढ़ी दर पीढ़ी समाज के अंतिम व्यक्ति तक यह संदेश पहुंचाया कि संपूर्ण सृष्टि ही भगवान का स्वरूप है। सब कुछ ईश्वर ही हैं। ईश्वरत्व का प्रगटीकरण विविध रूपों में हुआ है। जड़, चेतन परस्पर पूरक हैं। माताएं अपने बच्चों से कहती हैं कि रात में पेड़ को मत छुओ, पेड़ सो रहे हैं। पेड़ में भी ईश्वरत्व को देखना हमारी संस्कृति ने मनुष्य को सिखाया है। भाव बिना भगवान नहीं मिलते हैं। आत्मीयता का व्यवहार हो।
अच्छा आचरण हो
डॉ. भागवत ने कहा कि श्रीमदभागवत गीता में सभी समयकाल का ज्ञान है। सकल उपनिषद का ज्ञान गीता है। हमारे देश के भक्त, ज्ञानी और कर्मशील थे, इसलिए समाज में उत्तम व्यवस्था थी। उसी आदर्श को जीने की आवश्यकता है। अच्छा आचरण हो। परिवार व पीढ़ी की उन्नति इसी में है। मातृभाषा और संस्कृत का प्रयोग कम हो रहा है। ऐसा न हो कि विदेश से लोग हमें संस्कृत पढ़ाने आएं। मूल भारतीय भाषा के अंग्रेजी अनुवाद में मूल भाव का आना अत्यंत कठिन है। धर्म और राष्ट्र के लिए अंग्रेजी में शब्द नहीं है। ऐसे में एक मूल शब्द के लिए सुसंगत और समतुल्य शब्दों को परखा जाता है, इसलिए मूल को पढ़ना आवश्यक है। कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ. सुरेंद्र सूर्यवंशी ने रखी। डॉ. तुकाराम गरुड ने वारकरी संप्रदाय के महत्व को रेखांकित किया। संचालन शुभांगी चिंचालकर ने किया।
Created On :   1 Dec 2025 6:26 PM IST













