40 साल पहले बिछड़ी पंचूबाई मप्र के दमोह में मिलीं, मुस्लिम परिवार में मिला आसरा

40 years ago,  A missing woman found from Damoh of MP, shelter in Muslim family
40 साल पहले बिछड़ी पंचूबाई मप्र के दमोह में मिलीं, मुस्लिम परिवार में मिला आसरा
40 साल पहले बिछड़ी पंचूबाई मप्र के दमोह में मिलीं, मुस्लिम परिवार में मिला आसरा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। रहस्य, रोमांच की पटकथा पर आधारित फिल्म से कम नहीं है यह दास्तां। मानवता की मिसाल भी। डिप्टी सिग्नल में ईश्वर भक्ति में लीन रहनेवाली पंचूबाई 54 की उम्र में लापता हुईं। उनकी खोजबीन में परिजन परेशान रहे। गांव, शहर की दूरियां नापने का दौर चलता रहा, पर वह नहीं मिलीं। 94 की उम्र में वह परिजनों को मध्य प्रदेश के दमोह जिले में मिलीं। सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसा संभव हो पाया। 40 साल तक अनजान मुस्लिम परिवार ने उन्हें आसरा दिया। बरसों पहले िबछुड़े परिवार से मिलने की खुशी तो है, लेकिन जिस परिवार में 40 साल गुजारे, उसे वह भूल नहीं पा रही हैं। बोलचाल में उनकी जुबां उनकी साथ नहीं दे पाती है। फिर भी वह बार-बार कहती हैं- दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है।

परिजनों के अनुसार, पंचूबाई आरंभ से ही पूजा पाठ व आध्यात्मिक कार्यक्रमों में रुचि रखती थीं। नागपुर के डिप्टी सिग्नल क्षेत्र में पुत्र भैयालाल शिंगणे व पुत्रवधू सुमन के साथ रहती थीं। 50 की उम्र में पहुंचने तक उनकी मानसिक स्थिति में बदलाव आने लगा। वह विक्षिप्त सी हरकतें करने लगीं। परिजनों को बताए बिना वह बस्ती में घूमने चली जाया करती थीं। शिंगणे परिवार बरसों से लकड़ी व्यवसाय से जुड़ा है। पंचूबाई का पोता पृथ्वी शिंगणे बताता है- उसके जन्म के पहले ही दादी लापता हो गई थीं। ननिहाल अमरावती जिले की अचलपुर तहसील में है। 1979-80 की बात है। पिता से मिलकर आने के बहाने पंचूबाई घर से निकली तो वापस नहीं लौटी। उसकी खोजबीन में वर्धा, अमरावती के अलावा गोंदिया जिले के कई रिश्तेदारों तक पहुंचे। पुलिस थाने में शिकायत दी। लेकिन कहीं भी पंचूबाई का पता नहीं चल पाया था।

पंचूबाई को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के कोटातला गांव में आसरा मिला। उसे आसरा देने वाले नूर खां तो नहीं रहे, लेकिन उनके पुत्र इसरार व समीर खान पंचूबाई को परिवार के सदस्य के तौर पर ही मानते हैं। इसरार के अनुसार पंचूबाई राज्य परिवहन की बस से नागपुर से दमोह पहुंची थीं। किसी ट्रक चालक ने उन्हें कोटातला में छोड़ा था। खान परिवार में उन्हें अच्छन मौसी कहा जाता था। इसरार के अनुसार, पंचूबाई की ज्यादातर बात समझ नहीं आती थी। वह मराठी मिश्रित हिंदी बोलती थीं। कई बार नागपुर व खंजनानगर का जिक्र करती थीं, लेकिन घर का पता नहीं बता पाती थीं। मेरा बचपन पंचूबाई की गोद में ही गुजरा। 
लाॅकडाउन शिथिल होते ही पोता पृथ्वी शिंगणे पत्नी के साथ कार से दादी को लेने कोटतला के लिए रवाना हुआ। 17 जून को वह दादी को लेकर नागपुर लौटने लगा, तो कोटतला का माहौल काफी भावुक हो गया। गांव के लोगों को "अच्छन मौसी' से बिछुड़ने का गम था, लेकिन शिंगणे परिवार की इच्छा का सम्मान करते हुए सबने उसे हंसते मुस्कुराते हुए विदा किया। नागपुर में पोते के परिवार में लौटने के बाद पंचूबाई से मिलने के लिए उसके नए-पुराने रिश्तेदार मिलने आने का सिलसिला चल पड़ा। एक-दो को छोड़ वह किसी का नाम तक नहीं जानती है। 

इसरार चाहता था कि पंचूबाई को उसका परिवार मिल जाए। लिहाजा पिता नूर खां की तरह वह भी नागपुर में कई बार आया, लेकिन उसे यहां पंचूबाई के बारे में पता नहीं चला। 2018 में उसने पहली बार पंचूबाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था। तब भी काेई सफलता नहीं मिली। इस बीच गूगल से खंजनानगर की खोज शुरू की। वह भी नहीं मिला। एक बार पंचूबाई ने परसापुर का नाम िलया। गूगल सर्च के माध्यम से इसरार ने परसापुर के अभिषेक का मोबाइल फोन नंबर पाया। उससे संपर्क किया। अभिषेक ने बताया कि परसापुर के पास ही खंजनानगर है। अभिषेक ने पंचूबाई के परिजनों तक पहंुचने में मदद की। किरार समुदाय के सोशल मीडिया नेटवर्क पर पंचूबाई की वीडियो वायरल हुअा, तो उसके पोते तक उसकी जानकारी पहुंची।

 

Created On :   22 Jun 2020 9:09 AM GMT

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