अमरावती : मेलघाट के जंगलों में मौजूद है दुर्लभ प्रजाति के प्राणी

AMRAWATI : Rare species are present in the forests of Melghat
अमरावती : मेलघाट के जंगलों में मौजूद है दुर्लभ प्रजाति के प्राणी
अमरावती : मेलघाट के जंगलों में मौजूद है दुर्लभ प्रजाति के प्राणी

डिजिटल डेस्क,अमरावती। सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध अमरावती के मेलघाट में कुदरती रेहमत है। यहां की हरी-भरी वादियों में वन औषधियों के साथ ही विभिन्न प्रजाति के पशु-पक्षियों ने अपना आसरा बना रखा है। यहां कई पशु-पक्षी ऐसे है जिनके बारे में जानकारी हासिल करने पर कई रौचक विशेषताएं सामने आई ।

दिन में देख सकने वाला उल्लू
मेलघाट के घने जंगलों में उल्लू की करीब 14 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें रानपिंगला नामक प्रजाति का भी उल्लू है जिसकी विशेषता यह है कि यह रात्रि में नहीं बल्कि दिन में भी देख सकता है। आम तौर पर उल्लू रात्रि के समय ही मंडराते हैं, लेकिन मेलघाट के जंगलों में रानपिंगला एकमात्र ऐसा पक्षी है जो दिन में भी नजर आता है। 1997 में हुई खोज के बाद यह पक्षी फिलहाल IUCN के क्रिटिकली रेयर यानी दुर्लभ पक्षियों की कतार में आ गया है। संपूर्ण विश्व के आंकड़ों पर इस प्रजाति के पक्षियों की संख्या पर नजर डालें तो इनकी संख्या 250 से भी कम है।

खास बात यह है कि दोबारा हुई रिसर्च के बाद यानी करीब 29 वर्षों बाद इन पक्षियों की संख्या में इजाफा हो गया है। इसके साथ ही उनकी सुरक्षा पर भी मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प में गंभीरता से ध्यान दिया जा रहा है। मेलघाट का जंगल क्षेत्र करीब 3 हजार चौरस किमी तक फैला हुआ है। इनमें से व्याघ्र प्रकल्प के आसपास सभी अभ्यारण्य और उस सर्कल के परिसर में इन पक्षियों का अस्तित्व दिखाई देता है। यह पक्षी अन्य पक्षियों की तरह ही अपना घोंसला बनाते हैं। दिसंबर माह में घोसला बनाकर फरवरी के दौरान अपने बच्चों को जन्म देता है। चूहा और पेड़ों पर रहने वाले जीव-जंतु इन पक्षियों की खुराक हैं। इस दुर्लभ पक्षी को देखने के लिए दूरदराज के पर्यटक मेलघाट आते हैं।

रसेल वाइपर का भी अस्तित्व
मेलघाट के घने जंगल में खतरनाक वन्य प्राणियों का भी अस्तित्व है। यहां पर कई प्रजाति के सांप है जिनमें रसेल वाइपर नामक खतरनाक सांप का भी समावेश है। मेलघाट के आदिवासी इलाके में इस जहरीले सांप को बहिरी परल कहा जाता है। इसकी लंबाई 5 से 6 फिट तक रहती है। पूरे शरीर कत्थई रंग का होता है और उसमें सफेद रंग की धारियां होती हैं। कत्थई रंग की गोल बिंदियां भी शरीर पर होती है। इस प्रजाति का मादा सांप मई से जुलाई माह के दौरान अंडे देता है जिससे 40 से 60 सपोलों का जन्म होता है। यह सपोले भी बेहद जहरीले होते हैं।

मूल रूप से इन सांपों का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है और कूकर की सीटी के समान यह आवाज निकालते हैं। यदि कोई व्यक्ति इसके नजदीक जाता है तो यह सांप 8 फिट तक छलांग लगाकर डस सकता है। शहर के इर्द-गिर्द और आसपास के खेतों की मेढ़ पर यह सांप नजर आता है। ग्रामीण इलाकों में यह सांप ज्यादातर नजर आते हैं। खेत में काम करने वाले मजदूरों की जान हमेशा ही खतरे में होती है। खेती-बाड़ी को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों और जमीन पर रेंगने वाले अन्य जीव-जंतु इसके शिकार होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से यह सांप काफी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उतना ही इंसान के लिए खतरनाक भी।

Created On :   9 Oct 2017 5:01 AM GMT

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