लव जिहाद विरोधी अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती

Challenge the constitutionality of the Ordinance of Love Jihad
लव जिहाद विरोधी अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती
लव जिहाद विरोधी अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती

मुख्य सचिव, विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव और गृह विभाग को नोटिस
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
मप्र हाईकोर्ट में लव जिहाद को रोकने के लिए लागू किए गए मप्र धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश 2020 की संवैधानिकता को याचिका दायर कर चुनौती दी गई है। याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बैंच ने मुख्य सचिव, विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव और गृह विभाग के अतिरिक्त सचिव को नोटिस जारी कर 8 सप्ताह में जवाब माँगा है। याचिका की अगली सुनवाई 31 मार्च को निर्धारित की गई है।
ये है मामला-यह याचिका साकेत नगर भोपाल निवासी और दिल्ली विश्वविद्यालय में एलएलबी अंतिम वर्ष के छात्र अमृतांश नेमा ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि मप्र सरकार ने 9 जनवरी 2020 को धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश 2020 को लागू किया है। अध्यादेश के अनुच्छेद 2 (1) (सी), 4, 10 और 12 संविधान की मूल धारा के खिलाफ है। इससे संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद 19 में दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार, अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन जीने के अधिकार और अनुच्छेद 25 से 28 में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो रहा है।
इन पर है आपत्ति
याचिका में कहा गया कि मप्र धर्म स्वातंत्र्य कानून 1968 में प्रावधान था कि यदि दबाव डालकर किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो वह व्यक्ति पुलिस और कलेक्टर के पास शिकायत कर सकता है। धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश 2020 में यह प्रावधान कर दिया गया है कि किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तन होने पर संबंधित व्यक्ति के साथ ही उसके माता-पिता और परिजन भी पुलिस और कलेक्टर के पास लिखित शिकायत कर सकते हैं। इससे प्रावधानों का दुरुपयोग होगा। अध्यादेश की परिभाषा में कहा गया है कि यदि व्यक्ति वापस अपने मूल धर्म में आता है तो उसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा। इसके साथ ही धर्म परिवर्तन के 60 दिन पहले कलेक्टर को सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया है, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। पुराने कानून में धर्म परिवर्तन के बाद सूचना देने का प्रावधान था।
10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान 
याचिका में कहा गया कि अध्यादेश में जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर अधिकतम 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। याचिकाकर्ता ने मामले में स्वयं पैरवी करते हुए कहा कि कोई भी अध्यादेश आपात स्थिति में लागू किया जाता है। इस मामले में ऐसी क्या आपात स्थिति थी, जिससे सरकार को अध्यादेश जारी करना पड़ा। प्रारंभिक सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने अनावेदकों से जवाब माँगा है। राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव और उप महाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली उपस्थित हुए। 
 

Created On :   30 Jan 2021 8:24 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story