जन्म के समय बदले बच्चे, DNA से खुलासा, लेकिन अब बदलने को तैयार नहीं

जन्म के समय बदले बच्चे, DNA से खुलासा, लेकिन अब बदलने को तैयार नहीं

डिजिटल डेस्क,असम। अक्सर हमें कई बार ऐसे किस्से या घटना सुनने को मिल जाते है जो कई फिल्मों की कहानी से मेल खाते हैं, लेकिन आज जो खबर हम आपको बताने वाले हैं वो भी किसी फिल्मी की नहीं बल्कि दो परिवारों की असल जिंदगी की कहानी है। इसमें किसी फिल्म की तरह ही दो परिवार हैं और दोनों परिवार में दो बच्चे है जो जन्म के समय आपस मेबदल गए थे। 

ये कहानी मुस्लिम और आदिवासी हिंदू परिवार के बीच की है। मुस्लिम परिवार मंगलदोई का रहने वाला है तो वहीं आदिवाली हिंदू परिवार मेनापारा, बेजपारा गांव में रहता है। ये कहानी जुड़ी है दो बच्चों के जन्म के समय बदल जाने को लेकर।

दरअसल असम के एक सिविल अस्पताल में 11 मार्च 2015 को इन दोनों परिवार में बच्चों का जन्म हुआ। बच्चों के जन्म के कुछ समय बाद असम के मंगलदोई के रहने वाले शहाबुद्दीन अहमद और उनकी पत्नी सलेमा परबीन को बच्चे के नाक-नक्शे को देखकर लगा कि ये उनकी संतान नहीं हैं। क्योंकि वो किसी आदिवासी की तरह लग रहा था।

डॉक्टरों की सलाह लेने पर डॉक्टरों ने कहा कि वह किसी मनोवैज्ञानिक परेशानी की शिकार है जो आजकल की आम बात है,लेकिन शहाबुद्दीन को इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं था कि उनकी ही संतान है। शहाबुद्दीन का कहना था कि ये किसी आदिवासी परिवार का बच्चा है। इसी के बाद उन्होंने अपने असली बच्चे की तलाश शुरू की।

इसके लिए शाहबुद्दीन ने RTI के जरिए 11 मार्च को पैदा होने वाले सभी बच्चों के परिवार वालों का नाम और पता हासिल किया। जानकारी के बाद उन्होंने मेनपारा में रहने वाले आदिवासी हिंदू परिवार से मुलाकात करने की ठानी। शहाबुद्दीन को पक्का यकीन था कि इसी परिवार के बच्चे से उनका बच्चा बदला है।

काफी संकोच के बाद आदिवासी परिवार अनिल और सेवाली बोरो उनसे मिलने के लिए तैयार हुए। इस मुलाकात के तुरंत बाद ही दोनों परिवारों ने ये पहचान लिया कि कौन सा बच्चा किसका है। कानूनी प्रक्रिया के चलते वो उस वक्त बच्चों को बदल नहीं सके।

बोरो परिवार को भी था शक
शहाबुद्दीन के जैसे ही अनिल और सेवाली बोरो को भी शक था कि जिस बच्चे को वो अपना समझ के पाल रहे हैं असल में वो उनका है ही नहीं। यही कारण है कि जब शहाबुद्दीन ने मिलने की बात कही तो उन्होंने भी मान लिया कि बच्चों की अदला-बदली हुई है। इसलिए उन्होंने DNA टेस्ट के लिए भी हामी भर दी। 

DNA टेस्ट से खुलासा
इसके बाद शहाबुद्दीन अहमद ने मंगलदोई सिविल हॉस्पिटल के सुपरिन्टेंडेंट से शिकायत की। 4 महीने बाद जांच समिति ने शिकायत को गलत माना। इसके बाद शहाबुद्दीन ने अपने, पत्नी और बच्चे का DNA टेस्ट कराने की ठानी।  

2016 में DNA टेस्ट के लिए सभी हैदराबाद गए। जहां जांच रिपोर्ट में साफ हो गया कि दंपति और बच्चे का कोई बायोलॉजिकल लिंक नहीं है। इसी रिपोर्ट के आधार पर हॉस्पिटल के सुपरिन्टेंडेंट से बात की गई, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया। आखिरकार मंगलदोई पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया गया।

हॉस्पिटल में पैदा हुए थे 11 बच्चे
बताया जा रहा है कि 11 मार्च 2015 को असम के मंगलदोई सिविल हॉस्पिटल में 11 बच्चे पैदा हुए थे। सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से दो बच्चे आपस में बदल गए थे। लापरवाही के चलते ही डिलीवरी के बाद दोनों बच्चों को एक-दूसरे के परिवार को सौंप दिया था। जो असल में उनके थे ही नहीं।
 

ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई
काफी लंबी सुनवाई के बाद मंगलदोई के चीफ ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने दोनों परिवारों को अपने असली बच्चों को बदलने की मंजूरी दी। 4 जनवरी 2018 को जब बच्चों के बदलने की बात आई तो दोनों ही परिवार काफी भावुक दिखाई दिए। परिजनों के अलावा बच्चों ने भी अपनी मांओं से अलग होने से मना कर दिया। ये नजारा देख वहां मौजूद हर शख्स की आंखों में आंसू आ गए। 

24 जनवरी को आखिरी फैसला
वहीं बच्चों की अपनी मांओं के प्रति लगाव और प्यार को देखते हुए दोनों परिवारों ने बच्चों को ना बदलने का फैसला लिया है। कोर्ट ने भी दोनों ही परिवारों को अपने-अपने फैसले का हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. जिसके लिए अगली तारीख 24 जनवरी निर्धारित की है। शहाबुद्दीन का कहना है कि अगर हम बच्चों को उनकी मां से अलग करेंगे तो अल्लाह इस काम के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। दोनों ही परिवार आपसी सहमति से एक दूसरे के बच्चों के साथ आसपास रहने के लिए तैयार हो गए हैं।

Created On :   12 Jan 2018 4:47 AM GMT

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