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मेडिकल कॉलेज में प्रभावित हो सकती हैं इमरजेेंसी सेवाएं
डिजिटल डेस्क शहडोल मेडिकल कॉलेज का संचालन शुरु हुए लगभग तीन वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन सम्पूर्ण व्यवस्था के संचालन के लिए बजट का प्रावधान नहीं होने की वजह से बिजली, पानी, इलेक्ट्रिक आदि की व्यवस्थाएं चरमराने लगती हैं। संस्थान में इमरजेंसी सेवाओं के लिए बाहरी व स्थानीय कंपनियों को मिलाकर कुल ३.५० करोड़ रुपए का सालाना खर्च होता है। लेकिन अभी तक मात्र ९० लाख रुपए का भुगतान ही हो पाया है। जो भी आउटसोंर्सिंग संस्थाएं इमरजेंसी सेवा दे रही हैं वे एक वर्ष के अनुबंध पर हैं। इनका अनुबंध ३० नवंबर को समाप्त हो गया था, तीन महीने के लिए एक्सटेंशन दिया गया था। जो २८ फरवरी को समाप्त हो जाएगी। ऐसे में चिकित्सा महाविद्यालय की जरूरी सेवाओं के एक बार फिर प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है। अनुबंध नहीं बढ़ा तो मेडिकल कॉलेज की लिफ्ट, डब्ल्यूटीपी, एसटीपी, ईटीपी, सीसीटीवी, डीजी सेट, एसी तथा इलेक्ट्रिकल की सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। हालांकि १० फरवरी को होने वाली प्रशासनिक समिति की बैठक में इनका निराकरण किया जा सकता है।
इमरजेंसी सेवाओं का काम जिन आउटसोर्स संस्थाओं से लिया जाना है, उनका निर्णय टेंडर के माध्यम से होना है। जिस पर महीने डेढ़ महीने का समय लग सकता, लेकिन अभी तक टेंडर जारी नहीं किए गए हैं। जिन संस्थाओं से कम लिया जा रहा है उन्हें भी पूरा भुगतान नहीं किया गया है। तीन माह का दिया समय भी फरवरी में पूरा हो रहा है। स्थानीय संस्थाओं ने मांग की है कि लोकल स्तर पर नियमानुसार उन्हें भी कार्य देकर बकाया भुगतान शीघ्र ही किया जाए।
अधिक दर पर कार्य का विरोध
इमरजेंसी सेवा दे रहीं स्थानीय संस्थाओं ने कमिश्नर को पत्र लिखकर जहां भुगतान कराने की मांग की है वहीं उस प्रक्रिया पर विरोध जताया है, जिसमें हाइडस के माध्यम से यूडीएस को पूरा कार्य देने पर विचार किया जा रहा है। कंपनी को प्रस्ताव भी दिया जा चुका है। लेकिन उक्त कंपनी को बहुत अधिक दर पर काम दिए जाने से शासन को राजस्व का भी नुकसान होगा, क्योंकि उससे कम दर पर स्थानीय संस्थाएं सेवाएं दे रही हैं। यूडीएस आफिस स्टॉफ के साथ उद्यान और सिक्योरिटी का काम देख रही है। लोकल फॉर वोकल को बढ़ावा देने के तहत स्थानीय संस्थाओं को काम देने की मांग करते हुए यह भी बताया गया कि पूर्व में इसी कंपनी के दरें अधिक होने के कारण रीवा, जबलपुर, इंदौर जैसे मेडिकल कॉलेज में मंजूर नहीं किया गया था, तो शहडोल में क्यों इसकी पहल की जा रही है।
इनका कहना है
भारत शासन के निर्देशानुसार हाइडस कंपनी को ही टेंडर करना है। इसमें स्थानीय संस्थाएं भी शामिल हो सकती हैं। एक्टेंशन की सीमा इसी महीने खत्म हो रही है, इस बारे में १० को होने वाली प्रशासकीय समिति की बैठक में निर्णय लिया सकता है।
डॉ. मिलिंद सिरालकर, डीन मेडिकल कॉलेज
Created On :   9 Feb 2022 4:31 PM IST