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अंतरिम राहत के प्रश्न पर 4 फरवरी को होगी सुनवाई - याचिका के निर्णयाधीन रहेंगे पीएससी प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम

डिजिटल डेस्क जबलपुर । मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बैंच ने पीएससी प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम को याचिका के निर्णयाधीन रखने का आदेश दिया है। डिवीजन बैंच ने इस मामले में राज्य शासन और पीएससी को जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। अंतरिम राहत के प्रश्न पर 4 फरवरी को सुनवाई की जाएगी। यह याचिकाएँ सामाजिक संगठन अपाक्स एवं अन्य की ओर से दायर की गई हैं। याचिका में कहा गया है कि पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा-2019 के परिणाम में अनारक्षित वर्ग को 40 प्रतिशत, 27 प्रतिशत ओबीसी, 16 प्रतिशत एससी, 20 प्रतिशत एसटी और 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस को मिलाकर कुल 113 प्रतिशत आरक्षण कर दिया है। अनारक्षित श्रेणी में केवल अगड़ी जाति के आवेदकों का ही चयन किया गया है। परीक्षा परिणाम तैयार करते समय आरक्षण के प्रावधानों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया है। इससे आरक्षित वर्ग के कई आवेदक प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने से वंचित रह गए। सिविल सेवा परीक्षा नियम 2015 के संशोधनों को भूतलक्षी प्रभाव से लागू कर दिया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ, रामेश्वर पी. सिंह और विनायक शाह ने तर्क दिया कि परीक्षा के परिणाम तैयार करते समय लोक सेवा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 (4) के प्रावधानों को लागू कर दिया गया है, जिसके तहत अंतिम चयन के समय आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। पीएससी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत सिंह और राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली ने पक्ष प्रस्तुत किया। सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने पीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम को याचिका के निर्णयाधीन रखा है।
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।