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सीलिंग की जमीन से जुड़े आदेश में शासकीय और कोटवारों की भूमि के दस्तावेज जाँचने को कहा था,

किसान कह रहे - रजिस्ट्री कराने माँग रहे अनुचित पैसे, कलेक्टर से लेकर सीएम तक कर चुके फरियाद
तत्कालीन कलेक्टर के आदेश की गलत व्याख्या करने से हजारों किसानों को अपने पुरखों की जमीन छिनने का गम
डिजिटल डेस्क जबलपुर । सीलिंग की निजी भूमि की रजिस्ट्री तत्कालीन कलेक्टर के जिस आदेश का हवाला देकर रोकी गई है वैसा आदेश कभी जारी ही नहीं हुआ। जो आदेश 30 जनवरी 2019 को जारी हुआ था, वो सरकारी जमीन के लिए था, क्योंकि तत्कालीन कलेक्टर छवि भारद्वाज ने अनेक सरकारी भूमि की निजी रजिस्ट्री के मामले पकड़ लिए थे। साथ ही कहा था कि रजिस्ट्री के पहले पंजीयक इस बात की जाँच कर लें कि किसी भी प्रकार से शासकीय भूमि, कोटवारों की सेवा भूमि अथवा सीलिंग की भूमि का रजिस्ट्रीकरण न हो जाए। उन्होंने आदेश में कहा था कि इसके लिए वे संबंधित राजस्व अधिकारियों से अभिमत ले सकते हैं। वहीं आदेश की गलत व्याख्या करने से हुआ ये कि किसान परेशान हो गए। किसानों ने कहा कि उनके पुरखों की जमीन को विवाद में उलझा दिया है, जो कि गलत है। हालांकि अब तहसीलदार, एसडीएम और सीलिंग सेल के जरिए इन मामलों को निराकृत करने की कोशिश की जा रही है पर किसानों का कहना है कि गलत तरीके से सीलिंग चढ़ा देना उनके गले की फांस बन गया है।
निर्देश स्पष्ट हैं पर कोई मान नहीं रहा
भूमि को लेकर जबलपुर में जिस तरह के मामले सामने आ रहे हैं उनमें पहले से ही यह भी आदेश है कि सब रजिस्ट्रार कॉलम नंबर 12 को ही देखें, कॉलम 3 पर उन्हें ध्यान देने की जरूरत नहीं है। हालाँकि सब रजिस्ट्रार के लिये ये भी आदेश हैं कि वे दस्तावेज के पंजीकरण के दौरान स्टाम्प ड्यूटी देखें कि वह गलत तो नहीं है। अगर वे कभी विक्रेता का नाम जानना चाहते हैं तभी उन्हें कॉलम 3 देखना चाहिये। कॉलम नंबर 12 में क्या दर्ज है इससे पंजीयक का कोई सीधा संबंध नहीं है, वास्तव में कॉलम नंबर 12 कैफियत का कॉलम कहलाता है जिसमें सामान्य रूप से उन आदेशों के हवाले दर्ज किए जाते हैं जिनके माध्यम से खसरे में कोई परिवर्तन किया जाता है। ये नियम स्पष्ट हैं, लेकिन स्वार्थपूर्ति के कारण उन्हें उलझा दिया गया है।
नियमानुसार यह होना चाहिए
खसरे में जो भी दर्ज किया जाता है उसमें भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों का ध्यान रखा जाता है। वर्तमान में कॉलम नंबर 12 में सीलिंग से प्रभावित कि जो प्रविष्टि की गई है वह बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के की गई है। ऐसी प्रविष्टि एक अवैध प्रविष्टि है और इसे हटाने का दायित्व तहसीलदार का है। मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 114 के अंतर्गत तहसीलदार को स्वयं ऐसी सभी प्रविष्टियों को हटा देना चाहिए, जो बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के खसरे में की गई हैं।
अधिकारियों का कहना
इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि धारा 115 के तहत किसी भी राजस्व रिकॉर्ड में सुधार करना है तो उसका आवेदन संबंधित एसडीएम के पास प्रस्तुत किया जायेगा। लेकिन उसमें इस बात का ध्यान रखा जायेगा कि जिस रिकॉर्ड में सुधार किया जा रहा है वह 5 साल पहले का तो नहीं है। अगर ऐसा है तो इस प्रकरण को कलेक्टर के पास परमीशन के लिये भेजा जायेगा। अगर कोई दस्तावेज में सुधार 5 साल से कम का है तो उसमें एसडीएम अपने स्तर पर सुधार कर सकता है। अगर संबंधित अधिकारी को यह समझ में आता है कि इसमें शासकीय हित प्रभावित हो सकता है तो प्रकरण कलेक्टर के पास भेज दिया जाता है।
Created On :   11 Oct 2020 6:31 PM IST