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नागपुर यूनिवर्सिटी से पीएचडी अब बेहद कठिन नहीं, 50 अंकों की होगी पेट परीक्षा, थीसिस सबमिट होते ही 120 दिन में होगा वायवा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज विश्वविद्यालय की पीएचडी प्रक्रिया में बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। नियमों को शिथिल करने पर पिछले कई वर्षों से विचार चल रहा था। बीते डेढ़ वर्ष से विश्वविद्यालय की समितियां इस दिशा में अध्ययन कर रही थीं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और प्रदेश के 14 विश्वविद्यालयों के पीएचडी नियमों का अध्ययन कर पीएचडी के नए नियमों को लागू करने की तैयारी है। 5 और 6 नवंबर को इस संबंध में संयुक्त समिति की बैठक हुई। इसमें डॉ.भोयर समिति और डॉ.पेशवे समिति की सिफारिशों पर मंथन किया गया। एकमत से प्रस्ताव पास कर प्राधिकरणों की अनुमति के लिए इसे आगे बढ़ाया है। आगामी 20 से 25 दिन में नई अधिसूचना जारी हो सकती है।
इनका रहा विशेष योगदान
नए नियमों के पीछे नागपुर यूनिवर्सिटी के कई शिक्षाविदों का अहम योगदान रहा है। वरिष्ठ सीनेट सदस्य डॉ.आर.जी.भोयर, डॉ. निरंजन देशकर, डॉ. अखिलेश पेशवे, डॉ. अनंत पांडे समेत कई विशेषज्ञों ने इसके पीछे मंथन किया है। नए कुलगुरु डॉ. सुभाष चौधरी ने भी बदलाव के प्रति उदार रवैया अपनाया है। शुक्रवार की बैठक में उनका अभिनंदन प्रस्ताव भी पारित किया गया। नागपुर यूनिवर्सिटी का यह नया बदलाव कितना सफल होगा, इस पर समूचे शिक्षा वर्ग की निगाहें टिकी हुई हैं।
2015 में अपनाए थे कठिन नियम
दरअसल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने वर्ष 2009 में पीएचडी संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए थे। विश्वविद्यालय ने वर्ष 2015 में इसे अपनाने का फैसला लिया। इसके अनुसार यूनिवर्सिटी ने अपने तत्कालीन पीएचडी नियमों में संशोधन किया। पीएचडी प्रवेश परीक्षा के लिए पेट-1 और पेट-2 लागू की गई। इस प्रवेश परीक्षा की कठिनाई अधिक होने के कारण चुनिंदा अभ्यर्थी ही पीएचडी के लिए पात्र होने लगे। ह्यूमेनिटिज संकाय की तो स्थिति और बुरी हो गई।
गाइड के नियम बदलेंगे
अब तक यदि किसी शिक्षाविद को पीएचडी सुपरवाइजर का दर्जा दिया है, लेकिन उनके काॅलेज को रिसर्च सेंटर के रूप में मान्यता नहीं है, तो उन्हें गाइड के रूप में मान्यता नहीं मिलती थी। नए नियम में ऐसे सुपरवाइजर को किसी दूसरे कॉलेज स्थित रिसर्च सेंटर में जाकर विद्यार्थियों का गाइड बनने की छूट मिलेगी। वहीं, पुराने नियम में यदि सेवानिवृत्ति को 3 वर्ष से कम का समय बचा है, तो गाइड बनने की अनुमति नहीं थी। अब इस नियम को भी हटाया जा रहा है।
अनेक बदलाव होंगे
नए फैसले में पीएचडी मिलते ही गाइड बनने के लिए पात्र होने, मान्यता प्राप्त अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के शिक्षकों को गाइड बनाने, एम.फिल धारकों को कोर्स वर्क करने से छूट देने, 4 हजार रुपए की लैब फीस जैसे नियम सारे शोधार्थियों पर लागू न करने जैसे कई बदलाव भी शामिल हैं।
ये होंगे बदलाव
अब तक नागपुर यूनिवर्सिटी पेट-1 और पेट-2 दो प्रवेश परीक्षा लेता था। पेट-2 में अभ्यर्थियों के पसीने छूट जाते थे। कठिन प्रवेश परीक्षा के कारण अभ्यर्थी दूसरे विश्वविद्यालय में पीएचडी के लिए जाने लगे थे। इस समस्या को देखते हुए पेट-2 परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया है। पेट-1 के प्रारूप में भी कई बड़े बदलाव होंगे। पेट-1 परीक्षा में पहला चरण रिसर्च मैथेडोलॉजी और दूसरा विषय ज्ञान पर आधारित होगा। 50 अंकों के लिए बहुवैकल्पिक प्रश्न पूछे जाएंगे। पूर्व में विश्लेषणात्मक प्रश्न होते थे, जो अब नहीं पूछे जाएंगे।
समयबद्धता पर जोर
पूर्व में रिसर्च पूरी कर शोध प्रबंध जमा करने के बाद अभ्यर्थी का वायवा होने में वर्षों लग जाते थे। नए प्रारूप में इस बात पर जोर दिया गया है कि शोध प्रबंध का मूल्यांकन तय समय सीमा में हो। अभ्यर्थी के शोध प्रबंध जमा करते ही 120 दिनों में उसका मूल्यांकन और वायवा पूरा किया जाएगा। वायवा होने के 15 दिन के बाद उसे पीएचडी नोटिफाई हो जाएगी। यदि इस प्रक्रिया में प्रशासनिक स्तर पर देरी होती है, तो देरी करने वाले अधिकारी-कर्मचारी पर कार्रवाई का भी प्रावधान किया गया है।
Created On :   6 Nov 2020 9:59 PM IST