कहीं राह नहीं आसान : अधिकांश मुकाबले त्रिकोणीय, भाजपा- शिवसेना नेताओं में ‘असहयोग आंदोलन’ तेज

Nowhere is the easier destination : more triangular fight
कहीं राह नहीं आसान : अधिकांश मुकाबले त्रिकोणीय, भाजपा- शिवसेना नेताओं में ‘असहयोग आंदोलन’ तेज
कहीं राह नहीं आसान : अधिकांश मुकाबले त्रिकोणीय, भाजपा- शिवसेना नेताओं में ‘असहयोग आंदोलन’ तेज

डिजिटल डेस्क, नागपुर। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुकाबला किसी भी दल के लिए आसान नजर नहीं आता। अधिकांश जगहों पर मुकाबले त्रिकोणीय रहेंगे। इस चुनाव में करीब बीस साल बाद उत्तर भारतीयों के विरोध का कोई मुद्दा नहीं रह गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव पूरे देश में लोकसभा चुनाव के दौरान दिखा। अब भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में भी अनुच्छेद 370 और तीन तलाक खत्म करने को मुख्य मुद्दा बना रही है। इसके अलावा खेती-किसानी की समस्याएं और युवाओं को रोजगार मुद्दे पर भी मुखर भाजपा अपने कार्यकाल में हुए विकास की तस्वीर पेश कर रही है। ऐसे में न केवल कांग्रेस-एनसीपी बल्कि दशकों तक उत्तर भारतीय विरोध को अपने एजेंडे में रखने वाली शिवसेना तक चुनाव रणनीतियों और मुद्दों के लिए भाजपा के फैसले पर आश्रित हैं। शहरों में भाजपा का प्रभाव है और कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष सियासत कारगर नहीं हो पा रही है। शिवसेना और राज ठाकरे की उत्तर भारतीय विरोधी राजनीति का लाभ कांग्रेस को वर्षों तक मिला, मगर अब उसके ज्यादातर वोट भाजपा के पास पहुंच चुके हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ खड़े अधिकतर उत्तर भारतीय नेता अब भाजपा में हैं। 

कांग्रेस, एनसीपी के लिए मुश्किलें कम नहीं

महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं। एनसीपी की ताकत भी सिर्फ शरद पवार परिवार ही हैं। पार्टी के बाकी सभी बड़े नेता बीजेपी और शिवसेना में शामिल हो गए हैं। इस चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बड़ा फैक्टर बनती हुई नहीं दिखाई दे रही है।

आंबेडकर की पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है

प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन आघाड़ी पार्टी कुछ नुकसान जरूर कर सकती है। प्रकाश आंबेडकर की पार्टी को लोकसभा चुनाव में करीब 10 फीसदी वोट मिले थे, वहीं कई जगहों पर इस पार्टी ने कांग्रेस और राकां को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। ‘वंचित बहुजन आघाड़ी’ (वीबीए) विस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाना चाहती है। लोकसभा चुनाव में वीबीए ने असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के साथ चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव में वंचित बहुजन आघाड़ी और एमआईएम गठबंधन उम्मीदवार इम्तियाज जलील ने औरंगाबाद की सीट जीतकर यह बता दिया कि पार्टी राज्य में अपना वोट बैंक बना रही है।

विस चुनाव के लिए कुल  5534 प्रत्याशियों ने 7584 नामांकन पर्चे दाखिल किए हैं। सबसे अधिक प्रत्याशी भोकर में, सबसे कम माहिम और शिवड़ी में हैं।मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दक्षिण पश्चिम नागपुर निर्वाचन क्षेत्र से, शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने ठाणे जिले के कोपरी पचपाखाड़ी सीट से और राकांपा नेता अजित पवार ने बारामती सीट से पर्चा भरा है। नामांकन पर्चों की छानबीन के बाद 798 प्रत्याशियों के नामांकन खारिज किए गए

‘सैनिक’ बागी...भाजपा और शिवसेना नेताओं में ‘असहयोग आंदोलन’ तेज

उधर भाजपा के पास नाशिक शहर के तीन विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं, पर उनके उम्मीदवार के प्रचार में शिवसेना के पदाधिकारियों के साथ नगरसेवक शामिल नहीं हो रहे हैं। दूसरी तरफ, शिवसेना के पास देवलाली विधानसभा चुनाव क्षेत्र है, लेकिन यहां पर भाजपा के नेता और कार्यकर्ता उम्मीदवार के प्रचार में शामिल नहीं हो रहे हैं। नाशिक पश्चिम विधानसभा में शिवसेना के 22 नगरसेवकों ने बगावत कर दिया है, लेकिन शिवसेना द्वारा कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिसे लेकर भाजपा ने तीव्र टिप्पणी की। भाजपा के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में हुई महायुति के कार्यकर्ता सम्मेलन में शिवसेना के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल नहीं हुए। कुल मिलाकर दोनों राजनीतिक दलों ने युति धर्म का पालन करने के बजाए असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया है। इसका लाभ महाघाड़ी के उम्मीदवारों को मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। 

नाराजी के कारण इस्तीफा

बता दें कि शिवसेना के कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा की गई युति शिवसेना के कार्यकर्ताओं को नहीं भाने से राज्य के साथ नाशिक जिले में शिवसैनिकों ने बगावत की। राज्य में शिवसेना और भाजपा के पदाधिकारियों ने 50 से अधिक विधानसभा चुनाव क्षेत्र में बगावत की। सीट वितरण में भाजपा ने शिवसेना को कम जगह देने से शिवसैनिक नाराज हैं। इसके चलते कल्याण में 26 नगरसेवकों ने इस्तीफे दिए। 

बढ़ता प्रभाव भी परेशानी का कारण

दरअसल, नाशिक शहर के पश्चिम विधानसभा चुनाव क्षेत्र को लेकर शिवसेना और भाजपा में शुरू विवाद सातवें आसमान पर पहुंच गया है। शिवसेना की क्षमता होने के बाद भी यह चुनाव क्षेत्र भाजपा को मिलने से 22 नगरसेवकों ने बगावत का झंडा लहराया। विलास शिंदे ने पर्चा दाखिल करने के बाद 21 नगरसेवक उनके समर्थन में खड़े रहे। भाजपा शिवसेना को खत्म करने का आरोप कर शिवसेना ने भाजपा के साथ शहर में असहकार आंदोलन शुरू कर दिया है। नाशिक पूर्व विधानसभा चुनाव क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार राहुल ढिकले के प्रचार में नाशिक रोड विभाग के शिवसेना के नगरसेवक और पदाधिकारी शामिल नहीं हो रहे हैं, तो नाशिक मध्य विधानसभा चुनाव क्षेत्र में भाजपा की उम्मीदवार देवयानी फरांदे के प्रचार से शिवसेना नगरसेवकों के साथ पदाधिकारी दिखाई नहीं दे रही हैं। भाजपा ने भी शिवसेना के इस ‘असहयोग आंदोलन’ को आगे बढ़ाते हुए देवलाली और नांदगांव विधानसभा चुनाव क्षेत्र में अपने अंदाज में करारा जवाब दे रहे हैं। इन दो राजनीतिक दलों में शुरू ‘असहयोग आंदोलन’ से महाआघाड़ी के उम्मीदवारों को लाभ होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। सूत्रों की मानें, तो शिवसेना पदाधिकारी, नगरसेवक और शिवसैनिक भी युति का धर्म नहीं निभाना चाहते हैं, क्योंकि वह भी भाजपा के बढ़ते प्रभाव और दबदबे से परेशान हैं।

विवाद सुलझाने में विफल रहे राऊत

शिवसेना नेता संजय राऊत ने एक होटल में बागी नगरसेवकों को बुलाकर समझाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे। बैठक में विलास शिंदे के साथ 21 नगरसेवक बैठक में हाजिर थे। बागियों ने याद दिलाया कि मनपा चुनाव में हम भाजपा के खिलाफ थे, इसलिए विधानसभा चुनाव में मदद नहीं की जाएगी। अगर मदद की, तो आगामी मनपा चुनाव में शिवसेना का अस्तित्व खतरे में आएगा। बैठक में शिवसेना के संपर्क प्रमुख भाऊ चौधरी, मनपा के विपक्ष नेता अजय बोरस्ते, जिला प्रमुख विजय कंरजकर आदि उपस्थित थे।

पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों से सीख लेते हुए इस बार राज्य में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठबंधन कर चुनाव लड़ रहीं हैं, लेकिन गड़चिरोली जिले का अहेरी विधानसभा क्षेत्र गठबंधन की धज्जियां उड़ाता प्रतीत हो रहा है। इस सीट पर दोनों पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े कर गठबंधन में सेंध लगा दी है। बता दें कि कांग्रेस के विपक्षी नेता विधायक विजय वडेट्टीवार के जोर डालने पर पार्टी ने सर्वप्रथम अहेरी विस में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक दीपक आत्राम को टिकट सौंपी। एक दिन बाद ही राकांपा प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील ने भी अपने पार्टी के उम्मीदवारों की सूची प्रकाशित करते हुए अहेरी के लिए पूर्व राज्यमंत्री धर्मरावबाबा आत्राम के नाम की घोषणा की। चुनाव प्रचार का बिगुल बजते ही दोनों प्रत्याशी जनाधार बटोरने की होड़ में डट गए हैं। 

वर्ष 2009 के चुनावों पर नजर डालें तो निर्दलीय प्रत्याशी दीपक आत्राम ने चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस पार्टी को अपना समर्थन दिया था। वहीं पिछले अनेक वर्षों से राकांपा के बड़े पदों पर कार्य करने के बाद इस विस चुनाव में धर्मरावबाबा आत्राम ने भाजपा खेमे में प्रवेश करने का मन बनाया था, लेकिन भाजपा हाईकमान ने पूर्व राज्यमंत्री व विद्यमान विधायक राजे अम्ब्रीशराव आत्राम पर फिर एक बार भरोसा जताया। इस कारण धर्मरावबाबा आत्राम ने राकांपा का दामन थामकर चुनाव लड़ना उचित समझा। टिकट पाने की मची होड़ से वर्तमान में अहेरी विस क्षेत्र में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन पूरी तरह बिखर गया है। मित्र दलों के दोनों प्रत्याशी अब एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार करने लगे हैं।  इस बार के विस चुनाव के लिए कांग्रेस ने पहली बार किसी महिला उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। डॉ. चंदा नितिन कोडवते को कांग्रेस-राकांपा गठबंधन का प्रत्याशी घोषित किया गया है।

Created On :   13 Oct 2019 11:53 AM GMT

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