एक पिता की बेबसी पर हाईकोर्ट ने कहा- 'क्या सिस्टम इससे भी यादा है बीमार

On the helplessness of a father, the High Court said - Is the system worse than this
एक पिता की बेबसी पर हाईकोर्ट ने कहा- 'क्या सिस्टम इससे भी यादा है बीमार
एक पिता की बेबसी पर हाईकोर्ट ने कहा- 'क्या सिस्टम इससे भी यादा है बीमार


डिजिटल डेस्क जबलपुर। अपने चार साल के बेटे को हुई गौचर नाम की लाईलाज बीमारी से जूझ रहे एक पिता की बेबसी को हाईकोर्ट ने काफी संजीदगी से लिया है। इस असाधारण बीमारी को लेकर 9 माह में बनने वाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति एक साल में भी न बन पाने पर नाखुशी जताते हुए जस्टिस नंदिता दुबे ने अपने 8 पन्नों के अंतरिम आदेश में कहा- "केन्द्र व राÓय में एक ही पार्टी की सरकारें होने पर दोनों को यह मसला आपस में ही सुलझाना था।Ó अदालत ने याचिकाकर्ता के पुत्र के इलाज के लिए केन्द्र सरकार को अपने हिस्से की 60 फीसदी राशि तत्काल जारी करने के निर्देश दिए। साथ ही यह भी कहा कि जो नई नीति बनने वाली है उसमें एक बार की आर्थिक सहायता और गरीबी रेखा जैसी नीति को शामिल न किया जाए, क्योंकि ऐसी असाध्य बीमारी किसी की आर्थिक स्थिति देखकर नहीं आती। अदालत ने साफ तौर पर कहा है कि याचिकाकर्ता की आर्थिक मदद को लेकर यदि केन्द्र व राÓय सरकार द्वारा राशि जारी नहीं की जाती तो फिर इस बारे में उचित कार्रवाई की जाएगी। अगली सुनवाई 20 जुलाई को होगी।
जबलपुर में रहने वाले पीडि़त पिता ने अपने ब"चे का इलाज कराने यह मामला 16 अगस्त 2018 को हाईकोर्ट में दायर किया था। उन्होंने राहत चाही थी कि गौचर नाम की बीमारी से लड़ रहे उनके बेटे के इलाज के लिए आर्थिक मदद दिलाने केन्द्र व राÓय सरकार को आवश्यक निर्देश दिए जाएं। याचिकाकर्ता का कहना था कि उनके बेटे की जान बचाने हर 14 दिनों में एन्जाईम रिप्लेसमेंट थैरेपी कराना जरूरी है। आखिरी थैरेपी बीते 17 जून को हुई, लेकिन उस दौरान एक दवा छूट गई। यदि वह समय पर न दी गई तो उनके बेटे की जान को खतरा है। मामले पर आगे हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता निखिल तिवारी ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि मौजूदा कोरोना संक्रमण काल के दौरान उनके मुवक्किल अब अपने बेटे का इलाज करा पाने में पूरी तरह से नाकाम हैं। आज की स्थिति में बेटे के इलाज में 59 लाख रुपए का खर्च आ रहा है। पूर्व में केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया था कि असाधारण बीमारियों को लेकर राष्ट्रीय नीति 9 माह में बन जाएगी, लेकिन 1 साल बाद भी स्थिति जस की तस है।
राÓय ने ड्राफ्ट पॉलिसी पर अपनी राय ही नहीं दी-
सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की ओर से कहा गया कि प्रस्तावित नई नीति के ड्राफ्ट पॉलिसी को लेकर राÓय सरकार द्वारा अभी तक कोई राय नहीं दी है। जब तक नई नीति नहीं बन जाती, तब तक याचिकाकर्ता को किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं दी जा सकती है। ऐसी परिस्थिति में राÓय सरकार को ही असाधारण बीमारी के इलाज को लेकर जरूरी राशि उपलब्ध कराना होगी। अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकती है केन्द्र सरकार: कोर्ट अपने अंतरिम आदेश में अदालत ने कहा- "भारत के संविधान के अनु"छे  21 में नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है। उसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है। अब केन्द्र के साथ राÓय सरकार की जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित कराए। केन्द्र सरकार यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती कि राÓय सरकार के असहयोग के कारण नई नीति फाईनल नहीं हो पा रही। दोनों सरकारों को आपस में इस मुद्दे को सुलझाना होगा।
केन्द्र व राÓय सरकार को हाईकोर्ट ने दिए निर्देश-
(1) राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत नेशनल हेल्थ मिशन ने मानवता के आधार पर अपने हिस्से की 40 फीसदी राशि दे दी। अब केन्द्र सरकार अपने हिस्से की 60 फीसदी राशि तत्काल जारी करे।
(2) शेष राशि राÓय सरकार अदा करे। साथ ही याचिकाकर्ता के पुत्र के एक साल तक के बाधारहित उपचार के लिए वह जरूरी राशि उपलब्ध कराए। यह राशि राष्ट्रीय नीति बनने पर केन्द्र सरकार से वसूली जाए।
() केन्द्र सरकार 6 माह के भीतर असाधारण बीमारी से संबंधित राष्ट्रीय नीति बनाए। दोनों ही सरकारें उठाए गए कदमों को लेकर अपने-अपने हलफनामें 15 जुलाई तक दायर कर दें।
क्या है गौचर बीमारी-
गौचर एक तरह की जेनेटिक बीमारी है, जो ग्लूकोस ब्राइट एंजाइम (लिपिड) में डिफेक्ट के कारण होती है। इसके कारण किडनी, लीवर व अन्य अंगों का आकार लगातार बढ़ता है, जिससे पीडि़त का पेट लगातार फूलने लगता है। वर्ष 1990 तक विश्व में इसका उपचार ही नहीं था। फिलहाल एक साल के इलाज (एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी) का खर्च 50 लाख रुपए से दो करोड़ तक (डोज के अनुसार) आता है, क्योंकि इसकी दवाएं विदेश से मंगानी पड़ती है।

Created On :   28 Jun 2020 12:48 PM GMT

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