किशोरी से रेप का आरोपीबरी, प्रमाणपत्र से साबित नहीं हो सकी लड़की की उम्र

Rape accused of teenager discharged certificate of girls age could not be proved
किशोरी से रेप का आरोपीबरी, प्रमाणपत्र से साबित नहीं हो सकी लड़की की उम्र
किशोरी से रेप का आरोपीबरी, प्रमाणपत्र से साबित नहीं हो सकी लड़की की उम्र

डिजिटल डेस्क,नागपुर। किशोरी से रेप के आरोप से एक युवक को कोर्ट ने बरी कर दिया। पीड़िता के पिता द्वारा बोनाफाइड सर्टिफिकेट से उम्र साबित न हो सकी।  बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने अपने हालिया आदेश में स्पष्ट किया है कि अपहरण और दुष्कर्म के मामले में पुलिस को पीड़िता की उम्र से जुड़े दस्तावेजों की गहन पड़ताल करना अनिवार्य है। जांच कर रहे अधिकारी को शिकायत मिलने के बाद केवल शिकायतकर्ता की ओर से ही नहीं, बल्कि निष्पक्ष तरीके से मामले की जांच करनी चाहिए।

पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए केवल स्कूल से बोनाफाइड प्रमाण-पत्र लाना ही काफी नहीं है। जांच अधिकारी को ग्राम पंचायत, नगर परिषद या अन्य स्थानीय स्वराज संस्था से पीड़िता के जन्म प्रमाण-पत्र का सत्यापन करना जरूरी है। किशोरी से अपहरण और दुष्कर्म के ऐसे ही एक मामले में सरकारी पक्ष पीड़िता की सही उम्र साबित कर पाने में नाकाम हुआ। लिहाजा हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषमुक्त करके रिहा कर दिया।

यह था मामला 
मामला गोंदिया जिले के वड़गांव का है। आरोपी सुजॉय चक्रवर्ती (25) बंगाल के गिपीगंज का निवासी है। वह वड़गांव की ज्वेलरी शॉप में काम करता था। इसी क्षेत्र में किशोरी का भी घर है। इसी कारण दोनों में जान-पहचान थी। घटना दिसंबर 2013 की है। पिता ने आरोपी के खिलाफ तिरोड़ा पुलिस थाने में बेटी का अपहरण करने का मामला दर्ज कराया था। पुलिस ने बंगाल जाकर दोनों को ढूंढ निकाला।  पुलिस को जानकारी हुई कि दोनों में शारीरिक संबंध भी स्थापित हुए हैं। ऐसे में  पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अपहरण और दुष्कर्म का मामला दर्ज किया था। गोंदिया सत्र न्यायालय ने भादवि 363, 376 और अन्य के तहत उसे दोषी मान कर 10 साल की जेल की सजा सुनाई थी। 

जन्मतिथि के पुख्ता दस्तावेज प्रस्तुत करना जरूरी 
दरअसल, पीड़िता के घर से गायब होने के बाद पिता ने पुलिस में मामले की शिकायत कराई, लेकिन पीड़िता की जन्मतीथि दर्ज न कराकर उसकी उम्र 15 वर्ष लिखा दी। हाईकोर्ट में न तो पीड़िता, परिजन या कोई अन्य गवाह उसकी सही जन्मतिथि बता पाया। पीड़िता को 15 वर्ष का दर्शाने के लिए सरकारी पक्ष ने स्कूल बोनाफाइड सर्टिफिकेट कोर्ट में प्रस्तुत किया। लेकिन कोर्ट के अनुसार यह प्रमाणपत्र केवल मुकदमा साबित करने के लिए बनवाया गया हो सकता था।

सरकारी पक्ष को ग्राम पंचायत, नगर परिषद या अन्य स्वराज संस्था द्वारा प्रमाणित पीड़िता के जन्म का कोई पुख्ता दस्तावेज लाना चाहिए था। लिहाजा कोर्ट ने केवल बोनाफाइड प्रमाण-पत्र को जन्मतिथि दर्शाने का आधार मानने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने निरीक्षण में पाया कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ भाग कर संबंध स्थापित किए थे। पीड़िता की सही उम्र साबित न कर पाने के कारण कोर्ट ने आरोपी को रिहा कर दिया। मामले में आरोपी की ओर से एड.मीर नगमान अली ने पक्ष रखा।

Created On :   16 April 2018 7:27 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story