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जवाब पेश नहीं करने पर हाईकोर्ट ने सरकार पर लगाई 5 हजार रुपए की कॉस्ट, याचिकाकर्ता कर रहा 20 साल से न्याय का इंतजार
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। हाईकोर्ट ने 20 साल से न्याय का इंतजार कर रहे याचिकाकर्ता के मामले में जवाब पेश नहीं करने पर राज्य सरकार पर 5 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने कॉस्ट की राशि आर्मी वेलफेयर फंड में जमा करने का निर्देश दिया है। एकल पीठ ने राज्य शासन को 6 सप्ताह में जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
यह कहा दायर याचिका में-
डीएन गजभिए की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि उनकी नियुक्ति 1988 में लोक सेवा आयोग की सीधी भर्ती के जरिए नायब तहसीलदार के पद पर हुई थी। विभागीय जांच की वजह से उन्हें पदोन्नति नहीं दी गई। विभागीय जांच में क्लीनचिट मिलने के बाद उन्हें डीपीसी का लिफाफा खोलकर पदोन्नति के अयोग्य ठहरा दिया गया। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश प्रशासनिक अधिकरण (सेट) में याचिका दायर की थी। सेट के बंद होने के बाद वर्ष 2003 में उनकी याचिका की सुनवाई शुरू हुई। वर्ष 2016 में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को एसीआर की कॉपी देने का आदेश दिया, लेकिन उन्हें एसीआर की कॉपी नहीं दी गई। इसके बाद अवमानना याचिका दायर की गई। अवमानना याचिका पर आदेश के बाद उन्हें एसीआर की कॉपी दी गई, लेकिन उन्हें पदोन्नति के अयोग्य ठहराते हुए वरिष्ठता का लाभ देने से इंकार कर दिया।
जानबूझकर राज्य सरकार नहीं रही थी जवाब पेश-
वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका को आगे चलने योग्य न मानते हुए नए सिरे से याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दे दी। इसके बाद वर्ष 2019 में नए सिरे से याचिका दायर की गई। 20 मार्च को एकल पीठ ने राज्य सरकार को जवाब पेश करने के लिए अंतिम अवसर दिया था, इसके बाद भी जवाब पेश नहीं किया गया। अधिवक्ता विठ्ठलराव जुमड़े ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता 20 साल से न्याय का इंतजार कर रहा है। इसके बाद भी राज्य सरकार जानबूझकर जवाब पेश नहीं कर रही है। सुनवाई के बाद एकल पीठ ने राज्य सरकार पर 5 हजार रुपए की कॉस्ट लगाते हुए 6 सप्ताह में जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
Created On :   22 April 2019 4:24 PM GMT