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स्मार्ट सिटी के तहत करोड़ों खर्च कर चौराहों पर लगाने थे सेंसर ट्रैफिक सिग्नल, लेकिन सौगात मिली सेंस लैस सिग्नल की
डिजिटल डेस्क जबलपुर । शहर में जिस रोड से भी निकलो वहाँ जाम का सामना राहगीरों को करना पड़ता है। पूरी तरह शहर का नसीब बन चुके जाम से शहरवासी परेशान हैं। जाम की समस्या से निपटने शहर में 12 करोड़ की लागत से "सेंसर" वाले ट्रैफिक सिग्नल 20 चौराहों पर लगने थे, लेकिन दिल्ली की कंपनी ने सिर्फ 5 चौराहों पर "सेंस लैस" ट्रैफिक सिग्नल लगा छुट्टी पा ली। इस पूरे गेम में सिग्नल लगाने वाली कंपनी ने 7 से 8 करोड़ की राशि का गोलमाल किया है। इधर स्माार्ट सिटी के जिम्मेदार बेखबर बैठे हैं। इसे एडेप्टिव ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम तकनीक कहा जाता है। जो सेंसर पर आधारित होती है। इस तरह के सिग्नल में हरी बत्ती के सिग्नल की अवधि स्वत: घटती, बढ़ती रहती है। ये यातायात प्रबंधन के लिए बेहद महत्वपूर्ण व्यवस्था है। इसमें ट्रैफिक के मूवमेंट को सीसीटीवी कैमरों की मदद से कैच किया जाता है। कई बार ऐसा होता है कि सिग्नल हरा होने के बावजूद पीछे गाडिय़ाँ नहीं होतीं। ऐसे में समय बर्बाद होता है। पुराने मैनुअल ट्रैफिक सिग्नल में उतने सेकेंड का टाइम दर्ज होता है। परंतु सेंसर सिग्नल में ऐसा नहीं होता, अगर किसी चौराहे पर किसी रास्ते पर गाडिय़ाँ नहीं होंगी तो उस ओर ट्रैफिक सिग्नल खुद-ब-खुद लाल हो जाएगा और दूसरे कैरेज की लाइट हरी हो जाएगी। ये सिग्नल रास्ते पर ट्रैफिक का दबाव देखकर वाहनों को रुकने या जाने का सिग्नल देते हैं।
4 माह पहले ट्रैफिक एएसपी लिख चुके पत्र
गत चार माह पहले ट्रैफिक एएसपी ने नगर निगम आयुक्त को पत्र लिखा था। पत्र के जरिए बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने लगाए गए ट्रैफिक सिग्नल में तीन अहम बिंदुओं की कमी उजागर की थी। इसमें पैदल चलने वालों के सिग्नल पर सही तरह से दिखने वाला साइन, व्हीकल डिटेक्टर, काउंट डाउन टाइमर आदि लगाने की बात कही थी। ताकि सिग्नल पर ट्रैफिक को सुगम किया जा सके। उसके बाद भी आज तक नगर निगम की तरफ से कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए हैं।
अभी ये हो रहे हालात
* ट्रैफिक सिग्नलों की टाइमिंग अलग-अलग है।
* कई ट्रैफिक सिग्नल नंबर नहीं दिखा रहे।
* बत्ती लाल से सीधे हरी हो रही, नौदरा सिग्नल इसका उदाहरण है।
* पैदल चलने वाले बीच रास्ते आ जाते हैं, घायल होने की संभावना बनी रहती है।
Created On :   6 Jan 2021 3:35 PM IST