वन्यजीव प्रेमियों ने जताई चिंता, लुप्त होने की कगार पर भेड़ियों की प्रजाति

Wildlife lovers expressed concern, wolf species on the verge of extinction
वन्यजीव प्रेमियों ने जताई चिंता, लुप्त होने की कगार पर भेड़ियों की प्रजाति
गोंदिया वन्यजीव प्रेमियों ने जताई चिंता, लुप्त होने की कगार पर भेड़ियों की प्रजाति

डिजिटल डेस्क, गोंदिया. ग्रामीण इलाकों में हमेशा एक आवाज सुनाई देती थी ‘लांडगा आला रे लांडगा आला’ लांडगा अर्थात वन्यजीव भेड़िया हैं। लेकिन अब यह आवाज विगत कई वर्षों से सुनाई नहीं दे रही हैं, बल्कि अब बाघ और तेंदुए के आने की आवाज सुनाई देती हैं। इसका संकेत दे रहा है कि भेड़ियों की प्रजाति लुप्त हो रही हैं। इस पर पर्यावरण प्रेमियों ने चिंता जताई है कि, कहीं वन्यजीव भेड़ियों की प्रजाति गोंदिया के जंगलों से नष्ट न हो जाए। उल्लेखनीय है कि गोंदिया जिला प्राकृतिक संपदा से घिरा होकर जिले में 35 प्रतिशत से अधिक जंगल हैं।

नागझिरा व न्यू नागझिरा नवेगांवबांध इन अभयारण्यों में बाघ, तेंदुए, भालू, नीलघोड़े, हिरण, चित्तल, भेड़िए तथा विभिन्न वन्यजीवों की प्रजाति बड़े पैमाने पर पाई जाती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे छोटे प्रजाति के वन्यजीवों की संख्या कम होती जा रही हैं। इधर, दुर्लभ प्रजाति में गिने जानेवाले बाघ, तेंदुए का संवर्धन करने के लिए शासन विभिन्न उपाय योजना कर रही हैं। लेकिन ऐसे भी कुछ वन्यजीव है, जिनके संवर्धन को अब तक गंभीरता से नहीं लिया गया है। परिणामस्वरूप, जंगल एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक संख्या में पाया जाने वाले भेड़ियों की संख्या अब नहीं के बराबर रह गई है। कहते है कि भेड़ियों यह वन्यप्राणी समूह के साथ रहता है और उसका भोजन छोटे वन्यप्राणी एवं छोटे पशुधन होता हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे छोटे प्रजाति के वन्यजीवों की संख्या कम हो रही है। 

इसी तरह जंगल एवं खेत परिसर में आवागमन करने वालों को हमेशा भेड़ियों के दर्शन होते थे तथा ग्रामीण क्षेत्रों में आवाज गूंजती थी कि "लांडगा आला रे आला" लेकिन अब यह आवाज कुछ वर्षों से सुनाई नहीं दे रही हैं, बल्कि इसके स्थान पर बाघ और तेंदुए के आने की आवाजे सुनाई दे रही हैं। ऐसे में भेड़ियों की प्रजाति धीरे-धीरे लुप्त होने की आशंका वन्यजीव प्रेमियों ने जताई है। 

बाघ के दर्शन, लेकिन भेड़ियों के नहीं  

एड्. प्रशांत मडावी, विधि अधिकारी महावितरण के मुताबिक जब जंगलों में या अभयारण्यों में वन्यजीवों के दर्शन करने के लिए सफर करते है तो हमेशा बाघ, तेंदुए, नीलघोड़े, भालू, हिरण, चीतल जैसे वन्यजीवों के दर्शन होते हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से भेड़ियों के दर्शन नहीं हो रहे हैं। जबकि इसके पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े ही आसानी से भेड़ियों के समूह को देखा जाता था। लेकिन अब भेड़ियों के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। शासन ने भेड़ियों की प्रजाति बचाने के लिए उचित कदम उठाकर उनका संवर्धन करना चाहिए। 

खाद्य पदार्थ न मिलना प्रमुख कारण 

मुकुंद धुर्वे, मानद वन्यजीव संरक्षक के मुताबिक भेड़ियों का भोजन छोटे-छोटे प्रजाति के वन्यजीव व छोटे पशुधन होता हैं। भेड़िए इतने चतुर व शर्मिले होते हैं कि मनुष्य या कोई बड़ा जीव दिखाई दे तो तुरंत छुप जाता है। पहले भेड़ियों के दर्शन सहजता से हो जाते थे, लेकिन अब दुर्लभ हो गए हैं। उसके विभिन्न कारण हैं, लेकिन उनमें से एक मुख्य कारण यह है कि भेड़ियों की अन्न श्रृंखला कम होने से भेड़ियों की संख्या कम हो रही हैं। उनके संवर्धन के लिए भी शासन ने उचित कदम उठाना चाहिए। 

Created On :   22 Aug 2022 6:01 PM IST

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