सुबह के समय स्नान आदि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर हाथ में गंध, चावल, पुष्प, दूर्वा, द्रव्य, पुंगीफल और जल लेकर विधिवत नाम गोत्र वंशादि का उच्चारण कर व्रत का संकल्प लें।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन विशेष रूप से गाय के दूध पर बछड़े का अधिकार होता है।
इस दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई भी सामग्री नहीं खाएं।
इस दिन उपवास रखकर मिट्टी से बने शेर, गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।
इस बहुला चतुर्थी के दिन श्री कृष्ण की कथा सुनने से यश और सौभाग्य मिलता है।
शाम के समय भगवान गणेश, गौरी, भगवान शिव, श्रीकृष्ण और बछड़े के साथ गाय का पंचोपचार पूजन करें।
दूर्वा से चित्रों पर पानी के छींटे मारें, तिल के तेल का दीपक जलाएं और चंदन की धूप जला कर रखें।
चंदन का तिलक, पीले पुष्प अर्पित कर गुड़ और चने का भोग लगाएं।
इसके उपरांत चावल, फूल, दूर्वा, रोली, सुपारी और दक्षिणा दोनों हाथों में लेकर भगवान श्रीकृष्ण और गाय की इस श्लोक के साथ वंदना करें।
श्लोक:-
कृष्णाय वासुदेवाय गोविन्दाय नमो नमः।।
त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।
पूजन के बाद मिट्टी से बने शेर और गाय और बछड़े पर चावल, फूल, दूर्वा, रोली, सुपारी और दक्षिणा चढ़ा दें और इस मंत्र का तुलसी की माला से जाप करें।
मंत्र :-
याः पालयन्त्यनाथांश्च परपुत्रान् स्वपुत्रवत्।
ता धन्यास्ताः कृतार्थश्च तास्त्रियो लोकमातरः।।
रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्ध्य दें। शंख में दूध, सुपारी, गंध तथा चावल से भगवान श्री गणेश और चतुर्थी तिथि को अर्ध्य दें। जौ और सत्तू का भोग लगाएं तथा पूजन से निवृत होकर भोग प्रसाद का ही सेवन करें।
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बहुला चतुर्थी व्रत: संतान और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए करें गाय माता की पूजा
डिजिटल डेस्क, भोपाल। ज्योतिष पंचाग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी बहुला चौथ या बहुला चतुर्थी कहलाती है। जो इस बार 30 अगस्त 2018 को है। हमारी सनातन संस्कृति का यह उद्देश रहा है की प्राणियों में सद्भाव रहे और विश्व का कल्याण हो। हमारी संस्कृति में सभी जीव-जंतुओं के महत्व को स्वीकार किया है। धार्मिक रूप से यह बहुला चतुर्थी गाय माता के पूजन का पर्व है। जिस प्रकार गाय माता दूध पिलाकर पोषित करती हैं उसी समर्पण की भावना से हम सभी को गाय को सम्मान देकर पूजना चाहिए।
बहुला चतुर्थी पूजन संतान प्रदान करने वाला तथा ऐश्वर्य को बढ़ाने वाला है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि जीवन में माता से भी बढ़कर गौ माता को स्थान दिया गया है। माना जाता है कि बहुला चतुर्थी के दिन भगवान श्री कृष्ण शेर बनकर बहुला नामक गाय की परीक्षा लेते हैं। इसलिए इस दिन गाय माता की पूजा की जाती है। मिट्टी की गाय, शेर और बछड़ा बनाकर इनकी पूजा की जाती है।


इस पूजन और उपाय से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है तथा संतान के सुखों में वृद्धि होती है। घर-परिवार में सुख और शांति बनी रहती है। जातक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जातक को मानसिक तथा शारीरिक कष्टों एवं पीड़ा से शांति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति संतान प्राप्ति या संतान के दुख से पीड़ित हैं उन्हें संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएं दूर करने के लिए इस बहुला चतुर्थी व्रत को अवश्य करना चाहिए।