श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर यहीं रचा था महारास, 6 माह तक रही 'शरद पूर्णिमा' की रात

CHANDRA SAROVAR  where Lord Krishna performed Rasalila with the Gopis
श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर यहीं रचा था महारास, 6 माह तक रही 'शरद पूर्णिमा' की रात
श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर यहीं रचा था महारास, 6 माह तक रही 'शरद पूर्णिमा' की रात

डिजिटल डेस्क, मथुरा। 5 अक्टूबर अर्थात आज गुरुवार को शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है।  पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6.15 से रात 12.15 बजे तक है। वहीं चंद्र दर्शन का समय 6.20 है। मान्यता है कि शरद पूर्णिामा की रात ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इस अवसर पर हम आपको उसी स्थान पर लेकर जा रहे हैं, जहां शरद पूर्णिमा की रात 6 माह के लिए भगवान का रास देखने के लिए रुक गई थी...

यहां रची थी लीला

ब्रज के कण-कण में आज भी श्रीकृष्ण का स्वरूप व उनकी लीलाएं निराले रूप में देखने मिलती हैं। जिस स्थान पर कान्हा ने महारास की लीला रची वह है गोवर्धन पर्वत के पास बसा पारसोली गांव। कहा जाता है कि आज से करीब 5200 वर्ष पूर्व शरद पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने यहां सूर श्याम सरोवर पर अपनी गोपियों के साथ महारास किया था। जिसे देखने के लिए चंद्रमा ठहर गया था।

मगन हो गया चंद्रमा 

शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रास रच रहे थे तो चंद्रमा उसे देखने इतना मगन हो गए कि अपनी गति को ही स्थिर कर दिया और 6 माह तक भोर ही नहीं हुई। इस महारास में सभी गोपियां चाहती थीं कि कृष्ण उनके साथ नृत्य करें जब कृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने सभी के साथ नृत्य की हामी भर दी और एक ही रात पर प्रत्येक गोपी के साथ नजर आए। यह स्थान मथुरा से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोवर्धन धाम से 2 किलोमीटर सौख गांव की ओर चलते हुए रास्ते में सूर श्याम चंद्र सरोवर बताया जाता है। 

भगवान शिव भी आए 

ऐसा भी उल्लेख मिलता है पुरूष होने की वजह से गोपियों ने भगवान शिव महारास देखने अंदर नहीं आने दिया, जिस पर वे इसे देखने के लिए गोपी का रूप धर कर आए थे। वहीं भगवान शिव का यही रूप गोपेश्वर कहलाया। वहीं बलदाउ जब इस महारास में शामिल होते हैं तो गोपियां उन्हें पहचानकर पकड़ने के लिए जाती हैं तब वे भागकर सिंह का रूप लेते हैं और दूर से नृत्य देखते हैं। 

ऐसे बना सरोवर

6 महीने में चंद्रमा की शीतलता से जो घनीभूत रस धरती पर गिरा वही रस एकत्रित होकर सरोवर बन गया। तब से इस सरोवर का नाम चंद्र सरोवर पड़ गया। इस सरोवर का आचमन और स्नान अति सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला बताया गय है। 

Created On :   5 Oct 2017 3:13 AM GMT

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