देवउठनी एकादशी: इस दिन से शुरू होंगे सभी मांगलिक कार्य, जानें पूजा की विधि

Dev Uthani Ekadashi: All manglik work will begin from this day, know worship method
देवउठनी एकादशी: इस दिन से शुरू होंगे सभी मांगलिक कार्य, जानें पूजा की विधि
देवउठनी एकादशी: इस दिन से शुरू होंगे सभी मांगलिक कार्य, जानें पूजा की विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है, जो कि इस वर्ष कल यानी कि बुधवार 25 नवंबर को है। देवउठनी एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी व देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के निंद्रा के जागने पर तुलसी शालिगराम विवाह होने के बाद मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। श्रद्धालु इस दिन श्री हरि को जगाते हैं और अविवाहितों के विवाह कराओ आदि विनती करते हैं। 

बता दें आज से छह माह के लिए देवताओं का दिन प्रारंभ हो जाता है। सभी देव आज से पूरे 6 माह के लिए जागेंगे और सभी मांगलिक कार्यों में उपस्थिति देते हुए कार्य संपन्न कराएंगे। एकादशी के बाद से पुनः शादी-विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। आइए जानते हैं इस एकादशी के बारे में...

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देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी पृथ्वी लोक से वैकुंठ लोक में चली जाती हैं और देवताओं की जागृति होकर उनकी समस्त शक्तियों पृथ्वी लोक में आकर लोक कल्याणकारी बन जाती हैं। एकादशी को ये पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। देव प्रबोधिनी एकादशी का महत्व शास्त्रों में उल्लेखित है। एकादशी व्रत और कथा श्रवण से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों के आरंभ करने की प्रार्थना की जाती है। 

ऐसे की जाती है पूजा
देवउठनी ग्यारस पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाती है। मंडप में शालिग्राम की प्रतिमा एवं तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाता है। मंदिरों के व घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर,चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित किया जाता है।

इसके बाद मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाती है। तुलसी को माता कहा जाता है क्योंकि तुलसी पत्र चरणामृत के साथ ग्रहण करने से अनेक रोग दूर होते हैं। शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है लेकिन उनके पत्र मंजरी पूरे वर्ष भर देवपूजन में प्रयोग होते हैं। तुलसी दल अकाल मृत्यु से भी बचाता है।

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तुलसी जी का महत्व
वैष्णवजन के लिए तुलसी जी का विशेष महत्व होता है। वह तुलसी की माला धारण करते हैं और जपते हैं। तुलसी पत्र के बिना भोजन नहीं करतें हैं। कहा जाता है कि तुलसी पत्र डालकर जल या दूध चरणामृत बन जाता है तथा भोजन भी प्रसाद बन जाता है। इसीलिए तुलसी विवाह का महोत्सव वैष्णवों को परम संतोष देता है। साथ ही प्रत्येक घर में छह महीने तक हुई तुलसी पूजा का इस दिन तुलसी विवाह के रूप में होता है। तुलसी के गमले को गोमय एवं गेरू से लीप कर उसके पास पूजन की चौकी पूरित की जाती है। 

Created On :   24 Nov 2020 5:30 AM GMT

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