साल का पहला गुरु प्रदोष व्रत 3 जनवरी को, जानिए क्यों है खास?

Guru Pradosha fast of the year on Jan 3,know why it is special
साल का पहला गुरु प्रदोष व्रत 3 जनवरी को, जानिए क्यों है खास?
साल का पहला गुरु प्रदोष व्रत 3 जनवरी को, जानिए क्यों है खास?

डिजिटल डेस्क। इस बार वर्ष का पहला गुरु प्रदोष व्रत 3 जनवरी 2019 को पड़ रहा है जो बहुत ही विशेष है। इस बार गुरु प्रदोष व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। सूतजी के अनुसार गुरु प्रदोष व्रत का पालन करने वाले की सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यदि आप गुरु प्रदोष व्रत रख रहे है तो किसी योग्य ब्राहमण से पूजा करवाएं। सनातन धर्म में प्रदोष व्रत प्रत्येक मास के दोनों पक्ष में किया जाता है। इस बार पौष मास कृष्ण पक्ष को गुरु प्रदोष पड़ रहा है। इस व्रत में महादेव शिव जी की पूजा की जाती है।  सूतजी के अनुसार इस गुरू प्रदोष व्रत का पालन करने वाले की हर प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शास्त्र पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस तिथि पर भगवान शिव कैलाश पर्वत पर प्रसन्नचित होकर नृत्य करते है। जानिए इस व्रत की पूजा विधि, कथा और महत्व।


 

इस बार के गुरु प्रदोष व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि पौष मास कृष्ण पक्ष गुरु प्रदोष व्रत को रखने से आपको दो गाय को दान देने के समान पुण्य फल मिलता है। इस दिन व्रत रखने और शिव की आराधना करने पर शिव जी की कृपा आप पर सदा बनी रहती है। इस गुरु प्रदोष व्रत को करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से आप और आपका परिवार सदा निरोगी रहता है। साथ ही आप की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती है। गुरु प्रदोष व्रत गुप्त शत्रुओं के नाश के लिए किया जाता है। पौष मॉस कृष्ण पक्ष प्रदोष गुरुवार के दिन होने से सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला होता है।


ऐसे करें प्रदोष व्रत में पूजा
प्रथम इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर सभी नित्य कार्यों से निवृत्त होकर शिवजी का स्मरण करें और साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन कोई भी अन्न आहार न लें। संध्या को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें। फिर ईशान कोण में किसी एकांत स्थान पर पूजा का स्थान बनायें। पूजा के लिए सबसे पहले गंगाजल से उस स्थान को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक या रंगोली तैयार करें।

इसके बाद कुश के आसन पर उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर महादेव शिव की पूजा करें। शिवजी का जलाभिषेक करें साथ में “ॐ नम: शिवाय:” मन्त्र का जाप भी करते रहें। फिर विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद सभी को बाटें। स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ संयोग से मंदिर गई। वहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। शिवजी की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भी जातक गुरु प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती है।

Created On :   1 Jan 2019 9:54 AM GMT

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