भौम (मंगल) प्रदोष व्रत का महत्व,कथा,फल,एवं पूजा विधि, उद्यापन विधि

know the Importance of Bhaum  (Mangal) Pradosha vrat
भौम (मंगल) प्रदोष व्रत का महत्व,कथा,फल,एवं पूजा विधि, उद्यापन विधि
भौम (मंगल) प्रदोष व्रत का महत्व,कथा,फल,एवं पूजा विधि, उद्यापन विधि


डिजिटल डेस्क। जो प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ता है वो भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत कहलाता है। इस बार यह 10 जुलाई 2018 को पड़ रहा है। इस व्रत को रखने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याए दूर होती हैं और उनके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आता और जीवन में समृद्धि लाता है। भौम (मंगल) प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिए। पूरे दिन मन ही मन "ऊँ नम: शिवाय" का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सtर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिए। भौम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है।

जातक को शाम को फिर पुन: स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें । पूजा स्थान या पूजा घर को शुद्ध कर लें। जातक चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। ऊँ नम: शिवाय या  ॐ जूम सा: कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जो‌ड़कर शिव जी का ध्यान करें।

 

 

ध्यान का स्वरूप

करोड़ों चंद्रमा के समान कांतिवान, त्रि नेत्रधारी, मस्तक पर चंद्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीलकण्ठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी,कंठ में नागों और कान में बिच्छु के कुण्डल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किये हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिव जी हमारे सारे कष्टों को दूर कर सुख समृद्धि प्रदान करें। ध्यान के बाद, भौम प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनाएं।

 

भौम (मंगल) प्रदोष व्रत के लिए इमेज परिणाम

 

भौम प्रदोष व्रत कथा  

एक नगर में एक वृद्ध महिला निवास करती थी । उसके मंगलिया नामक एक पुत्र था । वृद्धा की हनुमान जी पर गहरी आस्था थी । वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमान जी की आराधना करती थी । उस दिन वह न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी । वृद्धा को व्रत करते हुए अनेक दिन बीत गए । एक बार हनुमान जी ने उसके श्रद्धा की परीक्षा लेना चाहा और हनुमान जी साधु का वेश धारण कर उसके पास गए और पुकारने लगे है कोई शिव या हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा पूर्ण करें? 

 

यह पुकार सुन वृद्धा महिला बाहर आई और बोली- ‘आज्ञा महाराज?’ 

 

हनुमान जी महाराज बोले- मैं भूखा साधू हूं, तू थोड़ी जमीन लीप दे और भोजन बनाने का सामन दे में खुद अपने हाथों से भोजन बनाकर भोजन करूंगा । वृद्धा दुविधा में पड़ गई वाह महिला हाथ जोड़ बोली- महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दे  मैं अवश्य पूरी करूंगी । साधु वेषधारी हनुमान जी ने तीन बार प्रतिज्ञा करवाने के बाद कहा- ‘तू अपने बेटे को बुला । मै उसकी पीठ पर अग्नि प्रज्योलित कर भोजन बनाउंगा । वृद्धा के पैरों तले से भूमि सरक गई, वह क्या करती प्रतिज्ञाबद्ध थी। 

 

उसने मंगलिया को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया और स्वमं रोते बिलखते अन्दर चली गई। मगर साधु रूपी हनुमान जी ऐसे ही मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल सुलाया और उसकी पीठ पर आग जलाई । 

 

इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्ध महिला को बुलाया ओर कहा की अब - ‘मंगलिया को पुकारो, ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। इस पर वृद्ध महिला बहते आंसुओं को पौंछकर बोली - उसका नाम लेकर मुझे अब और कष्ट न पहुंचाओ, किन्तु जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगाई । पुकारने की देर थी कि मंगलिया दौड़ा-दौड़ा आ पहुंचा । मंगलिया को जीवित देख वृद्धा को सुखद आश्चपर्य हुआ । वह साधु के चरणों मे गिर पड़ी । 

 

साधु महाराज अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए । हनुमान जी को अपने घर में देख वृद्धा का जीवन सफल हो गया । सूत जी बोले- मंगल प्रदोष व्रत से शंकर (हनुमान भी रुद्र हैं) और पार्वती जी इसी तरह भक्तों को साक्षात् दर्शन दे कर कृतार्थ करते हैं ।

 

कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार “ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा ” मंत्र से आहुति दें । उसके बाद शिव जी की आरती करें। उपस्थित जनों को आरती दें। सभी को प्रसाद वितरित करें । उसके बाद भोजन करें । भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का उपयोग करें । स्कंद पुराण के अनुसार जातक को कम-से-कम 11 अथवा 26 त्रयोदशी व्रत के बाद उद्यापन करना चाहिये।

 

 

भौम प्रदोष व्रत उद्यापन विधि 

उद्यापन के एक दिन पहले(द्वादशी तिथि को) श्री गणेश भगवान का विधिवत विधि से पूजन करें तथा पूरी रात शिव-पार्वती और श्री गणेश जी के भजनों के साथ जागरण करें। उद्यापन के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रमों से निवृत हो जायें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। पूजा स्थल पर रंगीन वस्त्रों और रंगोली से मंडप बनायें । मण्डप में एक चौकी अथवा पटरे पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। अब शिव-पार्वती की विधि-विधान से पूजा करें। भोग लगायें। 

 

हवन की विधि

अब हवन के लिए सवा किलो (1.25 किलोग्राम) आम की लकड़ी को हवन कुंड में सजायें।  हवन के लिये गाय के दूध में खीर बनायें। हवन कुंड का पूजन करें । दोनों हाथ जोड़कर हवन कुण्ड को प्रणाम करें इसके बाद अग्नि प्रज्वलित करें। तदंतर शिव-पार्वती के उद्देश्य से खीर से ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 बार आहुति दें। 

 

हवन पूर्ण होने के पश्चात् शिव जी की आरती करें । ब्राह्मणों को सामर्थ्यानुसार दान दें एवं भोजन करायें। आप अपने इच्छानुसार एक या दो या पाँच ब्राह्मणों को भोजन एवं दान करा सकते हैं। यदि भोजन कराना सम्भव ना हो तो किसी मंदिर में यथाशक्ति दान करें। इसके बाद बंधु बांधवों सहित प्रसाद ग्रहण करें एवं भोजन करें।

 

इस प्रकार उद्यापन करने से जातक पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ होता है। इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर शिवधाम को प्राप्त करता है।

Created On :   5 July 2018 3:48 AM GMT

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