आषाढ़ एकादशी पर भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए पहुंचे लाखों श्रद्धालु 

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आषाढ़ एकादशी पर भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए पहुंचे लाखों श्रद्धालु 
आषाढ़ एकादशी पर भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए पहुंचे लाखों श्रद्धालु 

डिजिटल डेस्क, महाराष्ट्र। पंढरपुर महाराष्ट्र का एक जाना-माना तीर्थ स्थल है। भीमा नदी के तट पर स्थित इस तीर्थ स्थल पर भगवान विट्ठल के दर्शन करने लाखों की संख्या में श्रृद्धालु पहुंचते हैं। आषाढ़ महीने में इस स्थान का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। देश के कोने-कने से श्रद्धालु पताका-डिंडी लेकर यहां भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए पैदल चलकर पहुंचते हैं। इस यात्रा क्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आलंदि में जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से जाना जाता है।

प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मिणी की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। इस अवसर पर राज्यभर से लोग पैदल चलकर ही मंदिर नगरी पहुंचते हैं। इस स्थल पर विशेषरूप से 4 त्यौहार मनाए जाते हैं। जिनमें से आषाढ़ माह में मनाया जाने वाला ये त्योहार महत्वपूर्ण है और इसके लिए श्रृद्धालु भी बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 700 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं।

700 साल पुरानी है यह यात्रा

ये पालकी यात्रा तकरीबन 700 साल पहले शुरू हुई थी। इसकी शुरुआत महाराष्ट्र के कुछ प्रमुख संतों ने की थी। उन्हीं संतों के अनुयायियों ने इस प्रथा को अब तक जीवित रखा है। इन अनुयायियों को वारकरी कहा जाता है। कोने-कोने से वारकरी पालकियों और दिंडियों के साथ पंढरपुर में विट्ठल के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। पालकी के साथ एक मुख्य संत के मार्गदर्शन में समूह यानी दिंडी (कीर्तन/भजन मंडली) चलता है। जिसमें वारकरी शामिल होते हैं। हर साल पंढरपुर की वारी (तीर्थयात्रा) करने वाला वारकरी कहलाता है, जो विट्ठल के भक्त होते हैं। पंढरपुर के वारकरी संप्रदाय के उपास्य विट्ठल की प्राचीनता अट्ठाईस गुना यानी सात सौ चौरासी युगों से अधिक बताई जाती है।

आज होगा यात्रा का समापन

हर साल होने वाली इस यात्रा में इस बार करीब 12 लाख श्रृद्धालु शामिल हुए हैं। इस मौके पर पूरा क्षेत्र भगवान विट्ठल के जयकारों से गूंज उठा। पवित्र पंढ़परपुर यात्रा का आज समापन हो रहा है। इस मौके पर विट्ठल रुक्मणी जी को सजाया जाता है। उनकी भव्य पूजा की जाती है। ये पर्व हर साल मनाया जाने वाला पर्व है जिसमें देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आकर भक्त शामिल होते हैं। कई विदेशी लोग यहां अपनी रिसर्च करने भी पहुंचते हैं। 

Created On :   23 July 2018 5:14 AM GMT

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