राधाष्टमी: जानिए व्रत का महत्व और पूजा विधि 

Radha Ashtami: Know the Date, Puja Vidhi and Significance of Radha Ashtami
राधाष्टमी: जानिए व्रत का महत्व और पूजा विधि 
राधाष्टमी: जानिए व्रत का महत्व और पूजा विधि 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। सनातन धर्म में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। जो इस वर्ष 17 सितम्बर 2018 को है। पुराणों में इस दिन को श्री राधाजी का अवतार दिवस माना जाता है। राधा जी वृषभानु के यज्ञ से प्रकट हुई थीं। शास्त्र, पुराणादि में इनका ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है। राधा जी सदा श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली साध्वी कृष्णप्रिया थीं।

राधा अष्टमी पूजन विधि

इस दिन प्रात: उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए।

इनकी पूजन हेतु मध्याह्न (दोपहर) का समय उपयुक्त माना गया है। इस दिन पूजन स्थल में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरण आदि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों एवं फलों से श्री राधा जी की स्तुति करनी चाहिए।

पूजन स्थल में पांच रंगों से मंडप सजाएं, उनके भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें।

बंधु बांधवों सहित अपनी सामर्थ्यानुसार पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गान करें। रात्रि को नाम संकीर्तन करें। एक समय फलाहार करें। मंदिर में दीपदान करें।

श्रीराधा जी का इस मन्त्र के द्वारा ध्यान करें

हेमेन्दीवरकान्तिमंजुलतरं श्रीमज्जगन्मोहनं नित्याभिर्ललितादिभिःपरिवृतं सन्नीलपीताम्बरम्।
नानाभूषणभूषणांगमधुरं कैशोररूपं युगंगान्धर्वाजनमव्ययं सुललितं नित्यं शरण्यं भजे।।


अर्थ- जिनकी स्वर्ण और नील कमल के समान अति सुंदर कांति है, जो जगत को मोहित करने वाली श्री से संपन्न हैं, नित्य ललिता आदि सखियों से परिवृत्त हैं, सुंदर नील और पीत वस्त्र धारण किए हुए हैं तथा जिनके नाना प्रकार के आभूषणों से आभूषित अंगों की कांति अति मधुर है, उन अव्यय, युगलकिशोररूप श्री राधाकृष्ण के हम नित्य शरणापन्न हैं।’ इस प्रकार राधा-कृष्ण का ध्यान करके अर्चना करें।

श्री राधा रानी के विशेष वंदना श्लोक

मात मेरी श्री राधिका पिता मेरे घनश्याम। इन दोनों के चरणों में प्रणवौं बारंबार।।

राधे मेरी स्वामिनी मैं राधे को दास। जनम-जनम मोहि दीजियो वृन्दावन को वास।।

श्री राधे वृषभानुजा भक्तनि प्राणाधार। वृन्दा विपिन विहारिणि  प्रणवौं बारंबार।।

सब द्वारन कूं छांड़ि के आयो तेरे द्वार। श्री वृषभानु की लाड़िली मेरी ओर निहार।।

राधा-राधा रटत ही भव व्याधा मिट जाय। कोटि जनम की आपदा राधा नाम लिये सो जाय।।

राधे तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन। तीन लोक तारन तरन सो तेरे आधीन।।

राधा अष्टमी कथा:

देव ऋषि नारद जी ने एक बार देवों के देव महादेव जी से पूछा ‘हे महादेव! मैं आपका दास हूं। कृपया कर आप ये बतलाएं कि श्री राधा जी लक्ष्मी हैं या देवपत्नी। महालक्ष्मी हैं या सरस्वती हैं? क्या वे अंतरंग विद्या हैं या वैष्णव प्रकृति हैं? वेदकन्या हैं, देवकन्या हैं या कोई मुनिकन्या हैं?’

तब शिव जी बोले कि- हे ऋषि वर लक्ष्मी की बात क्या कहें, कोटि-कोटि महालक्ष्मी उनके चरण कमल की शोभा के सामने तुच्छ ही कही जाती हैं। मैं तो श्री राधा के रूप, लावण्य और गुण का बखान करने में अपने को असमर्थ ही पाता हूं। तीनों लोकों में कोई भी किसी में ऐसा समर्थ नहीं है जो उनके रूपादि का बखान कर सके। उनका मोहित करने वाला रूप श्रीकृष्ण को भी मोहित करता है। अनेक मुख लगाने पर भी चाहूं तो भी उनका बखान करने की मुझमें योग्यता नहीं है।’

तब नारद जी बोले - ‘हे प्रभु श्री राधिकाजी के जन्म का माहात्म्य सब प्रकार से श्रेष्ठ है। मैं आप के श्री मुख से उनके सभी व्रतों में श्रेष्ठ व्रत श्री राधाष्टमी के विषय में सुनना चाहता हूँ। कृपया आप बतलाने की कृपा करें।’

तब शिवजी बोले की - वृषभानुपुरी के राजा वृषभानु बहुत ही उदार थे। वे एक महान कुल में उत्पन्न हुए तथा सब शास्त्रों के ज्ञाता थे। आठों प्रकार की सिद्धियों से युक्त, श्रीमान्, धनी और उदार थे। वे बहुत संयमी, कुलीन, सद्विचार से युक्त तथा श्री कृष्ण के पूजक थे। उनकी भार्या श्री कीर्तिदा थीं। जो रूप-यौवन से संपन्न थीं और महान राजकुल में पैदा हुई थीं। लक्ष्मी के समान भव्य रूप वाली और श्रेष्ठ सुंदरी थीं। सर्वविद्याओं और गुणों से युक्त तथा पतिव्रता थीं। उनके ही गर्भ में शुभदा भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मध्याह्न काल में श्रीवृन्दावनेश्वरी श्री राधिका जी ने जन्म लिया था।

जो मनुष्य श्रद्धा भक्तिपूर्वक राधाजन्माष्टमी का यह व्रत करता है, और जो भी नर-नारी श्री राधाजन्म महोत्सव मनाता है, वह श्री राधाकृष्ण के सान्निध्य में श्रीवृंदावन में वास करता है। वह राधाभक्ति से युक्त होकर बृजवासी बनता है। श्री राधाजन्म गुण-कीर्तन करने से मनुष्य भव-बंधन से मुक्त हो जाता है।

‘राधा’ नाम की तथा राधा जन्माष्टमी-व्रत की महिमा जो मनुष्य राधा-राधा का स्मरण करता है, वह सब तीर्थों के संस्कार से युक्त होकर सब प्रकार की विद्याओं का ज्ञानी हो जाता है। जो मनुष्य राधेकृष्ण नाम का कीर्तन करता है, उसका वर्णन मैं भी नहीं कर सकता और न उसका पार पा सकता हूं। राधा नाम स्मरण कभी निष्फल नहीं जाता, यह सभी तीर्थ करने के समान फल देने वाला है। उस भक्त से लक्ष्मी कभी विमुख नहीं होती हैं।

जो मनुष्य इस लोक में राधाजन्माष्टमी-व्रत की यह कथा को श्रवण करता है, वह सुखी, धनी और सर्वगुणसंपन्न हो जाता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक श्री राधा का मंत्र जप तथा स्मरण करता है, वह धर्मार्थी हो तो धर्म प्राप्त करता है, अर्थार्थी हो तो धन पाता है, कामार्थी पूर्णकामी हो जाता है और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त करता है। कृष्णभक्त वैष्णव सर्वदा श्री राधा की भक्ति प्राप्त करता है तो सुखी, विवेकी और निष्काम हो जाता है। 

Created On :   16 Sep 2018 4:23 AM GMT

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