ऋषि पंचमी व्रत 2018: ऋषि पंचमी व्रत कथा, पूजा विधि एवं  महत्व 

Rishi Panchami: Know the Date, Time and The Story of Rishi Panchami
ऋषि पंचमी व्रत 2018: ऋषि पंचमी व्रत कथा, पूजा विधि एवं  महत्व 
ऋषि पंचमी व्रत 2018: ऋषि पंचमी व्रत कथा, पूजा विधि एवं  महत्व 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। ऋषि पंचमी व्रत हिन्दू पंचाग से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को आती है। इस बार यह तिथि 14 सितम्बर 2018 को है। ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। माहेश्वरी समाज में राखी इसी दिन बांधी जाती है। बहन भाई की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है, पूजा करती है उसके बाद ही खाना खाती है।

इसके अलावा महिलाएं इस दिन सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं। यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा, समर्पण और सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है। सप्त ऋषि की विधि विधान से पूजा की जाती है। ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनी और सुनाई जाती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी माना जाता है। ऋषि पंचमी के इस व्रत को करने से रजस्वला दोष भी मिट जाता है। माहवारी समाप्त हो जाने पर ऋषि पंचमी के व्रत का उद्यापन किया जाता है।

रजस्वला दोष

हिन्दू धर्म में किसी स्त्री के रजस्वला (माहवारी) होने पर रसोई में जाना, खाना बनाना, पानी भरना तथा धार्मिक कार्य में शामिल होना और इनसे सम्बंधित वस्तुओं को छूना वर्जित माना जाता है। यदि भूलवश इस अवस्था में इसका उल्लंघन होता है तो इससे रजस्वला दोष उत्पन्न हो जाता है। इस रजस्वला दोष को दूर करने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। कुछ स्त्रियां हरतालिका तीज से इस व्रत का पालन ऋषि पंचमी के दिन तक कराती हैं।

पूजा विधि 

  • प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें। 
  • घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी, कुमकुम, रोली आदि से चौकोर मंडल (चोक) बनाकरक उस पर सप्तऋषि की स्थापना करें। 
  • शुद्ध जल एवं पंचामृत से स्नान कराएं। 
  • चन्दन का टीका, पुष्प माला व पुष्प अर्पित कर यग्योपवीत (जनेऊ) पहनाएं। 
  • श्वेताम्बरी वस्त्र अर्पित करें। शुद्ध फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं। 
  • अगरबत्ती, धूप, दीप आदि जलाएं। पूर्ण भक्ति भाव से प्रणाम करें।


इस व्रत में कई स्थानों पर हल की मदद से पैदा होने वाला अनाज नहीं खाया जाता। कुछ जगह सिर्फ एक विशेष प्रकार का चावल (मोर धान) ही खाया जाता है। साथ ही पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाता है।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे जो ऋषियों के समान ही थे। उनके राज में एक कृषक (किसान) सुमित्र भी रहता था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत  ही पतिव्रता थी। एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेत के कुछ कार्य में जुटी हुई थी, तो अचानक से वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया था फिर भी वह घर के काम में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। तब जयश्री तो कुतिया बनी और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था।

इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए। जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर (उगल) दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी।

पुत्र की पत्नी के आने पर उसने अपने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी। बेचारी वह कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके (रसोई) में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब भोजन का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा शुद्ध भोजन बना कर ब्राह्मणों को खिला कर विदा किया।

रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज भोजन दे देता था, किन्तु आज मुझे कुछ नहीं मिला और चूल्हे की लकड़ी से जला और दिया। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके अयोग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।

तब वह बैल बोला, हे प्रिये भद्रे तेरे पाप के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर ही टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल ही कर दिया।

अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने तत्काल उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर सर्वातमा ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता के किन पाप कर्मों के कारण वे नीच योनि को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है।  तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका जो भी फल मिले उसे संकल्प से अपने माता-पिता को दो।

भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न के समय में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी वस्त्र धारणकर पत्नी सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नी सहित विधि-विधान और नियम-संयम से व्रत-पूजन किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट कर बैकुंठ धाम को गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है। 

Created On :   12 Sep 2018 9:31 AM GMT

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