200 साल पुराना कुकुरदेव मंदिर, यहां होती है श्वान की पूजा

डिजिटल डेेस्क, दुर्ग। इस मंदिर में श्वान की पूजा होती है। इसकी वजह से इसका नाम कुकरामठ पड़ा है। जबकि यहां श्वान को कुकरदेव कहा जाता है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग भी मौजूद हैं एवं अन्य देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएं लगी हैं। कहा जाता है कि यहां पूजन से कुकुर खांसी या श्वान के काटने का भय नही रहता। इस मंदिर में श्वान की एक भव्य प्रतिमा भी बनी हुई है, जो कि प्राचीन बतायी जाती है।
फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14वीं 15वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। कुकुरदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध ये स्थान करीब दो सौ साल पुराना बताया जाता है। लोग यहां भगवान शिव की पूजा तो करते ही हैं साथ ही कुकुरदेव की भी पूजा करते हैं। आसपास के ग्रामीण इलाके में इस मंदिर को लेकर बड़ी मान्यता है।
नागों के चित्रों के साथ सुसज्जित
मंदिर का गुंबद भी चारों दिशाओं में नागों के चित्रों के साथ सुसज्जित है। पुराने शिलालेख यहां मौजूद हैं लेकिन स्पष्ट ना होने की वजह से इन पर कुछ देख पाना संभव नही है। इन पर चांद व सितारों की आकृति देखने मिलती है। भगवान राम के साथ लक्ष्मण और शत्रुघ्न व गणेश की प्रतिमा भी यहां देखने मिलती है।
प्रचलित है ये कथा
इसे लेकर एक कथा भी प्रचलित है कहा जाता है कि श्वान अपने मालिक का बड़ा भक्त था। एक दिन उसका मालिक कहीं बाहर गया और अपना धन उसे सुरक्षित रखने दे गया। चोरों ने उसे चुराने का प्रयास किया, किंतु श्वान ने मालिक के लिए उनसे झगड़कर उसे वापस ले आया। श्वान के मुंह में धन की पोटरी देख मालिक को लगा वह उसे लेकर भाग रहा था इससे उसने बिना कुछ जाने उस पर हमला कर दिया। इससे श्वान की मृत्यु हो गई। किंतु बाद में जब उसे सच्चाई पता चली तो वह बहुत दुखी हुआ। कहा जाता है कि इसी वफादारी की याद में उसने श्वान का मंदिर बनवाया।

Created On :   30 Nov 2017 12:07 PM IST